आज का वचन 3, 1 पतरस 5:7 में लिखा है, “और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।”
देखिए संसार के लोगों के लिए चिंता एक ऐसी समस्या है, जो इसके दायरे में होकर सभी को गुजरना पड़ता है। चिंता बहुत प्रकार के होते हैं, जैसे कि खाने-पीने की चिंता, पहनने की चिंता, शारीरिक समस्या, बिमारी, नौकरी, घर, गाड़ी, धन प्राप्ति और तरह-तरह की बहुत सी चिंताएं होती है। पर सबसे पहले हमें वचन की ओर ध्यान लगाना चाहिए। क्योंकि मनुष्य चिंता तो कर सकता है, पर चिंता कर के कुछ भी हासिल नहीं कर पाता है। आज युवाओं को अच्छी पढ़ाई और नौकरी की चिंता सताती रहती है। फिर मनुष्य होने के नाते चिंता होना भी स्वाभाविक है।
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आज का वचन 3 को प्रभु यीशु की दृष्टिकोण से देखें
देखिए आज का वचन 3 क्या कहता है, यदि आप बाइबल की मानते हैं, प्रभु यीशु की वचन को सुनते हैं। तो चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है। एक बात हमें बताइए यदि आप चिंता करके कुछ हासिल करने में सक्षम हैं, तो आप निश्चित रूप से चिंता कर सकते हैं। पर जो लोग मसीह विस्वासी हैं, उन्हें अपने बारे में चिंता करने से पहले, मत्ती 6:25 से 34 तक की वचन को ध्यान पूर्वक और अच्छी तरह से पढ़ लेना चाहिए। जब आप इस वचन का अर्थ पूरी तरह से समझ जाएंगे, तो फिर आप बेवजह से चिंता करना छोड़ देंगे। तो चलिए हम मत्ती 6:25 से 34 तक की वचन को पढ़ लेते हैं।
सबसे पहले हम मत्ती 6 अध्याय 25 की आयत को पढ़ते हैं, “इसलिये मैं तुम से कहता हूं, कि अपने प्राण के लिये यह चिन्ता न करना कि हम क्या खाएंगे? और क्या पीएंगे? और न अपने शरीर के लिये कि क्या पहिनेंगे? क्या प्राण भोजन से, और शरीर वस्त्र से बढ़कर नहीं?”
प्रभु यीशु की इस वचन में बहुत बड़ी रहस्य छिपी है, और वह यह है, कि मनुष्य की जीवन के संरक्षण का दायित्व स्वयं परमेश्वर के हाथ में। अन्यथा प्रभु यीशु यह नहीं कहा होता, कि अपनी प्राण के लिए चिंता न करना। दोस्तों मनुष्य अपने प्राणों के लिए इसलिए चिंता करता है, की उसे वह जीवित रख सके। फिर प्राण को जीवित रखने के लिए खाने-पीने और बहुत सारी चीजों की आवश्यकता होती है।
आज का वचन 3 के अनुसार प्रभु यीशु यहां पर चिंता की वजह से होने वाली समस्याओं से बचाने के लिए लोगों को यह वचन कह रहे हैं। क्योंकि प्रभु जानते हैं, कि मनुष्य की चिंताएं व्यर्थ ही होती है। तो चलिए, मत्ती 6 अध्याय 26 की आयत को पढ़ते हैं, कि प्रभु यीशु क्या कह रहे हैं।
“आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, और न खेत्तों में बटोरते हैं; तौभी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उन को खिलाता है; क्या तुम उन से अधिक मूल्य नहीं रखते।”
लोग दिन-रात परिश्रम करने के पश्चात भी अपने जीवन के लिए चिंता करते रहते हैं। यहां पर प्रभु यीशु पक्षियों की उदाहरण देकर लोगों को समझाना चाह रहे हैं, कि मनुष्य की तरह परिश्रम किए बिना भी उन्हें जीवित रखने के लिए, स्वर्गीय पिता भरपूर खिलाते हैं। दोस्तों इसका गलत अर्थ निकालने की कोशिश मत करना कि पक्षी काम नहीं करते हैं, तो हम भी काम नहीं करेंगे।
पर भाइयों परमेश्वर के लिए एक जोरदार ताली बजाकर धन्यवाद देने की जरूरत है, कि मनुष्य, परमेश्वर की दृष्टि में पशु पक्षी या सृष्टि के सभी प्राणियों से बहुत ही मूल्य रखते हैं। अर्थात परमेश्वर मनुष्य को सृष्टि के सभी प्राणियों से ज्यादा अहमियत देते हैं। क्या बात है, भाई यह वचन ने तो मेरा दिल खुश कर दिया। रुकिए रुकिए आगे मत्ती 6 अध्याय 27 और 28 की आयत को भी सुन लीजिए।
“तुम में कौन है, जो चिन्ता करके अपनी अवस्था में एक घड़ी भी बढ़ा सकता है”। “और वस्त्र के लिये क्यों चिन्ता करते हो? जंगली सोसनों पर ध्यान करो, कि वै कैसे बढ़ते हैं, वे न तो परिश्रम करते हैं, न काटते हैं।”
इस वचन से प्रभु स्पष्ट कर देना चाहते हैं, कि लोगों के पास वह क्षमता नहीं है, कि वे चिंता करके अपने आयु को घटा बढ़ा सकते हैं। फिर अच्छे पहनने की सोच रखने वाले लोगों को भी जंगली फूलों के बारे में भी प्रभु उदाहरण देकर बता रहे हैं, कि उनकी देखभाल के पीछे भी परमेश्वर पिता की ही हाथ है। यूं कहें तो सब की रखवाली परमेश्वर करते हैं।
फिर मत्ती 6:29 आयत को भी पढ़ लेते हैं कि उसमें प्रभु क्या कह रहे हैं,“तौभी मैं तुम से कहता हूं, कि सुलैमान भी, अपने सारे विभव में उन में से किसी के समान वस्त्र पहिने हुए न था।”
आज का वचन 3 के अनुसार बाइबल बताती, है कि सुलैमान की तरह बुद्धिमान और वैभवशाली कोई भी नहीं था। क्योंकि जरा उस जमाने की बात सोचिए जहां कोई टेक्नोलॉजी नहीं था फिर भी सुलेमान को परमेश्वर ने बुद्धिमान बनाया था और हर चीज से उसे परिपूर्ण किया था। 1 राजा 10 अध्याय में देखने को मिलता है कि शीबा की रानी सुलेमान की बुद्धिमानी को सुनकर उसे परखने के लिए जाती है। फिर सुलेमान की रहन सहन, पहनना और विभव को देखकर चकित हो जाती है।
अर्थात प्रभु यीशु की माने तो परमेश्वर ने सुलेमान को इतनी वैभवशाली बनाया था, फिर भी पहिनने में एक जंगली फूल के समान नहीं पहना था। कहने का मतलब यदि कोई व्यक्ति अपने धन दौलत से यदि खुद की श्रृंगार करता है, तो वह परमेश्वर की ओर से की गई श्रृंगार के बराबर करने में नाकामयाब रहती है।
इसलिए मत्ती 6 अध्याय 30 और 31 की आयत में प्रभु यह कहते हैं, कि जब परमेश्वर मैदान की घास को, जो आज है, और कल भाड़ में झोंकी जाएगी, ऐसा वस्त्र पहिनाता है, तो हे अल्पविश्वासियों, तुम को वह क्योंकर न पहिनाएगा? इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना, कि हम क्या खाएंगे, या क्या पीएंगे, या क्या पहिनेंगे?
अर्थात जिसकी कोई वैल्यू नहीं है, यदि परमेश्वर उसकी इतनी ध्यान रखते हैं, तो लोगों को अविश्वासीयों की तरह बेवजह चिंता नहीं करना चाहिए। यदि आप प्रभु को जानते हैं, प्रभु को मानते हैं, प्रभु पर विश्वास भी करते हैं, तो चिंता क्यों करते हैं। जो आज है कल नहीं उस प्रकार की चीजों की परमेश्वर इतनी अहमियत देते हैं तो आपको क्या बताऊं कि आप परमेश्वर की दृष्टि में कितना मूल्यवान हैं। चिंता कौन करता है? देखिए जरा ध्यान से सुनिए कि मैं क्या कहने वाला हूं।
क्योंकि जो लोग मसीह विश्वासी हैं, और प्रभु की आज्ञाओं के अनुसार जीवन जीते हैं, उन लोगों को मत्ती 6 अध्याय 32 और 33 की आयत को अच्छी तरह से समझते कोशिश करना है। उसमें इस प्रकार लिखा है, क्योंकि अन्यजाति इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं, और तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है, कि तुम्हें ये सब वस्तुएं चाहिए। इसलिये पहिले तुम उसकी राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।
अर्थात जो लोग प्रभु को नहीं जानते हैं, वे खासकर के चिंतित रहते हैं। वे विभिन्न विषयों पर चिंता करते रहते हैं। पर आप लोग प्रभु को जानते हैं, प्रभु को मानते भी हैं, और प्रभु की पुत्र पुत्रियां भी हैं। तो वचन कहता है, कि चिंता किस बात की करते हैं। आपको प्रभु की वचन के मुताबिक क्या करना चाहिए? वचन कहता है, कि तुम्हारा चिंता को परमेश्वर जनता है। और यदि आप चाहते हैं, कि परमेश्वर आपके लिए चिंता करें। तो आपको परमेश्वर की राज्य की अनुरूप जो सत्य, न्याय, प्रेम और पाप रहित होती है, उस प्रकार की जीवन जीना होगा।
आज का वचन 3 की सारांश
लोगों को परमेश्वर की इच्छा के अनुसार धार्मिकता से चलना होगा। अर्थात यदि आप पाप को छोड़कर परमेश्वर के मर्जी के अनुसार जीवन जीते हैं, और आपकी चिंता परमेश्वर को ढूंढने में लगी रहती है, तो समझ लीजिए कि आपको सभी चीजें परमेश्वर को ढूंढते ढूंढते ही मिल जाएंगी।
इसलिए हमें 1 पतरस 5:7 वचन वापस पढ़ना होगा जिसमें लिखा है, “और अपनी सारी चिन्ता उसी पर डाल दो, क्योंकि उस को तुम्हारा ध्यान है।”
निष्कर्ष
अर्थात खुद चिंता करने के बजाए अपनी चिंताओं को परमेश्वर के ऊपर छोड़ दें। क्योंकि परमेश्वर आपका ध्यान रखता है। परमेश्वर आपको सही मार्ग दिखाएगा। आपके हर प्रकार की घटी, बड़ी, सुख दुख में साथ देगा। पर दोस्त आपको एक काम करना है, और वह ये है कि आप पाप को छोड़ें! परमेश्वर को पकड़े और परमेश्वर की आज्ञा और नियम को मानकर जीवन गुजारें। दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं कि आज का वचन 3 से आपकी चिंता का समाधान हो गया होगा। धन्यवाद।