पाप किसे कहते हैं: आज का बाइबल पाठ: Paap kya hai

मनुष्य जाति की कर्म से पाप और पुण्य की पहचान होती है। परंतु ऐसे भी कुछ पाप है, जो बिना कर्म के मनुष्य को पापी बना देती है। मेरी छोटी सी कोशिश है कि लोग अच्छी तरह जान लें कि पाप क्या है? और पाप किसे कहते हैं? अगर आप पाप के बारे में जानना चाहते हैं, तो अंत तक मेरे साथ बने रहें। तो चलिए विस्तार से इसके बारे में चर्चा करते हैं।

Paap ka arth kya hai?

देखिए, Paap क्या है? या पाप का अर्थ क्या है? यह एक जटिल विषय है। इसे लोगों को शांत चित्त के बगैर समझना आसान नहीं होगा। क्योंकि लोगों को पूछना तो आसान लगता है; कि पाप क्या है? परन्तु, जानकारी के लिए मैं आपको यह बता देना चाहता हूं, कि पाप ईश्वर और मनुष्यों के बीच की दीवार का नाम है। Paap अच्छाई की दुश्मन और बुराई का दोस्त है।

अभी तो आप जान लिया है, कि पाप ईश्वर और मनुष्य के बीच की दीवार है। अर्थात पाप ईश्वर और मनुष्य के प्रेम में कड़वाहट या एक दूसरे से अलग होने का कारण है। तो यह भी जान लेते हैं, की Paap कब से और क्यों ईश्वर तथा मनुष्य के सम्बन्ध में दीवार बना है?

इसके बारे में जानने के लिए, ( उत्पत्ति 3 ) अध्याय को पढ़ लें। क्योंकि सृष्टि के प्रारंभ में परमेश्वर मनुष्य को बनाने के पश्चात अदन की वाटिका में रखा था। परमेश्वर ने आदम और हव्वा को ( उत्पत्ति ,2:17 ) में भले और बुरे के ज्ञान की वृक्ष का फल खाने से मना किया था। परन्तु वे शैतान की छल का शिकार हो कर परमेश्वर की आज्ञा का उलंघन करके पाप करते हैं।

आदम और हव्वा के पाप करने से पहले परमेश्वर उनसे मिलने के लिए प्रत्येक दिन आया करते थे। परन्तु जिस दिन वे आज्ञा न मानकर पाप किए, उनको परमेश्वर से अलग होना पड़ा। क्योंकि पाप को परमेश्वर घृणा करते हैं। इसलिए पाप रूपी दीवार की वजह से मनुष्य परमेश्वर से दूर हो गए। क्योंकि परमेश्वर पवित्र हैं। इसलिए पापीयों के साथ वह नहीं रह सकते। परन्तु पवित्र होने के नाते वह चाहते हैं, कि हर कोई पवित्र बनें। ( 1 पतरस 1:16 ) तो आप समझ चुके होंगे कि पाप एक दीवार ही है; जो ईश्वर और मनुष्य को एक दूसरे से दूर करता है।

आगे आप देख लिया है, कि ईश्वर और मनुष्य के बीच की दीवार पाप है। पर क्या आप यह भी जानते हैं, कि पाप एक ऐसा दरार है; जो लोगों की आपसी संबंध को भी बिगाड़ देता है। जैसे कि पति-पत्नी की संबंध में दरार का कारण पाप है। अर्थात शादी के बंधन में बंध कर भी बाहर वाला और बाहर वाली के साथ गलत संबंध रखना पाप है। भाई-भाई में झगड़ा या दरार का कारण भी पाप बनता है।

पाप के कारण से ही जिगरी दोस्तों में अनबन होती है। क्योंकि कोई भी व्यक्ति किसी का जितने भी अच्छे मित्रों क्यों न हो, पर वह कभी नहीं चाहेगा कि मित्र के हर कर्म में साथ दे। अर्थात अच्छे काम के लिए तो वह साथ दे सकता है, पर बुराई के लिए कतई साथ नहीं देना चाहेगा। क्योंकि पाप का अंतिम पड़ाव बहुत ही कष्टमय होता है। इसलिए पाप से दूर रहना चाहिए। क्योंकि पाप के कारण अच्छे और बुरे लोगों के बीच की दोस्ती में दरार उत्पन्न होती है। तो यह भी समझ गए होंगे कि पाप मनुष्य की आपसी संबध को तोड़ने की एक दरार है।

पाप किसे कहा जाता है

मनुष्य को नुकसान या दुःख पहुंचाने वाली किसी भी प्रकार की गलत गतिविधि और परमेश्वर के आज्ञा के विरुद्ध कर्म करने को पाप कहा जाता है।

पाप किसे कहते हैं

देखिए, मैं आगे बता चुका हूं, कि सबसे पहले मनुष्य के मध्य में पाप का प्रवेश परमेश्वर की आज्ञा को न मानने की वजह से हुआ था। पर क्या आप लोग परमेश्वर की आज्ञा को मान कर चलते हैं। अगर नहीं! तो खुद को परमेश्वर की वचन से जांच लें कि क्या आप सही या गलत हैं। इसके लिए परमेश्वर की 10 आज्ञा ( निर्गमन 20:1-17 ) वचन को पढ़ लेने से ही अच्छा होगा। तो चलिए इसके बारे में विस्तार से जानने हैं, कि उसमें क्या लिखा है।

1) आराधना

परमेश्वर को छोड़कर किसी का भी आराधना न करना, और न ही किसी दूसरे को ईश्वर मानकर पूजा करना। तु अपने लिये कोई मूर्ति खोदकर न बनाना, न ही किसी कि प्रतिमा बनाना, जो आकाश में, पृथ्वी पर, वा पृथ्वी के जल में है। अर्थात आकाश में स्थित सूर्य, चंद्र तारा गण और दृश्य अदृश्य जो भी है; पृथ्वी पर स्थित मनुष्य, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे तथा उसमें जो कुछ भी है; पृथ्वी के जल में स्थित जल जंतु, मछली और किसी भी प्रकार की प्राणी की प्रतिमा और मूर्ति खोदकर अपने लिए न बनना। परमेश्वर को छोड़कर किसी को भी दंडवत और उपासना न करना।

2) परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना

देखिए लोगों का नाम तो हम बारंबार ले सकते हैं। क्योंकि लोगों के नाम में कुछ सामर्थ नहीं है। फिर लोग एक नहीं! बल्कि अनेक हैं। इसके विपरीत परमेश्वर का नाम पवित्र, सबसे ऊंचा, महान तथा सामर्थ्यवान है। क्योंकि परमेश्वर के नाम से भी काम होता है। इसलिए परमेश्वर का नाम को अनावश्यक और बिना किसी उद्देश्य के नहीं लेना चाहिए।

3) विश्रामदिन को पवित्र रखना

विश्राम दिन अर्थात प्रभु का दिन को इसलिए पवित्र रखना चाहिए क्योंकि यहोवा परमेश्वर ने आकाश, पृथ्वी, समुद्र और उसमें जो कुछ भी है, उसे छ: दिन में बनाया। फिर सातवां दिन अर्थात विश्रामदिन को पवित्र ठहरा कर आशीष दी है।

4) माता-पिता का आदर करना

माता-पिता की अनादर होने से परमेश्वर को भी बुरा लगता है। वह यह नहीं चाहता है, कि कोई भी पुत्र पुत्रीयां अपने माता-पिता का असम्मान करें। क्योंकि ( व्यवस्थाविवरण 5:16 ) की वचन के अनुसार परमेश्वर की इस आज्ञा का पालन करने के द्वारा मनुष्य को लंबी आयु तथा अच्छी जिंदगी की आशीष मिलती है।

5) हत्या न करना

परमेश्वर कभी नहीं चाहता है, कि अपने बनाए हुए मनुष्य ही हत्यारा बने। क्योंकि हत्या करने के बाद सबको पता है, कि जेल की सजा होती है। परन्तु ( मत्ती 5:21-22 ) की वचन में प्रभु यीशु कहते हैं, कि हत्या न करना यह बात तुम्हारे पूर्वजों से तुम सुन चुके हो। परन्तु जो अपने भाई को क्रोध करता है, वह भी जेल जाने के योग्य पाप करता है।

अर्थात प्रभु यीशु की मानें तो अपने भाई को क्रोध करना भी हत्या के बराबर पाप है। अपने भाई को निकम्मा कहना महासभा अर्थात लोगों के भीड़ के बीच दंड का योग्य और मूर्ख कहना नरक की आग का दंड जैसा है। इसलिए अपने भाई के साथ सही संबंध रखें।

6) व्यभिचार न करना

बाइबल के अनुसार व्यभिचार तीन प्रकार का होता है।

(i) शारीरिक व्यभिचार (ii) मानसिक व्यभिचार (iii) आत्मिक व्यभिचार

(i) शारीरिक व्यभिचार

(i) शारीरिक व्यभिचार शादी से पहले की शारीरिक संबंध तथा शादी के बाद पति-पत्नी के अलावा गैर औरत और गैर मर्द के साथ गलत संबंध को परमेश्वर इजाजत नहीं देता है। क्योंकि परमेश्वर की दृष्टि में यह पाप है। ( 1 कुरिन्थियों 6:18 ) की वचन के अनुसार व्यभिचार एक ऐसा पाप है, जिसे मनुष्य खुद अपने शरीर के विरुद्ध पाप करता है। परन्तु अन्य सभी पाप मनुष्य के देह के बाहर होता है।

(ii) मानसिक व्यभिचार

बहुत लोगों को पता नहीं होगा कि मानसिक व्यभिचार क्या होता है? क्योंकि यह एक ऐसा पाप है जो मनुष्य के मन के द्वारा होता है। यह सुनकर कोई भी आश्चर्यचकित न हों कि क्या मन से भी व्यभिचार होता है। तो चलिए आगे इसके बारे में जानते हैं।

मानसिक पाप के बारे में बिल्कुल आप सही सुन रहे हैं। क्योंकि मन से भी व्यभिचार होता है। देखिए शारीरिक व्यभिचार में एक शरीर का दूसरे शरीर के साथ गलत संबंध होता है। परंतु मानसिक व्यभिचार में शरीर तो एक जगह पर ही रहता है। पर मन के द्वारा कोई भी किसी शरीर के पास चला जा सकता है। उदाहरण के लिए यह कहना चाहता हूं, की जब भी कोई व्यक्ति किसी खूबसूरत लड़की को बुरी नजर से देखता है, और गंदी सोच में पड़ जाता है।

तब वह शारीरिक रूप से तो उसके पास नहीं पहुंच सकता है। परंतु मन में उत्पन्न बुरे खयालों की वजह से वह मानसिक रूप से उसके पास पहुंच जाता है। इसलिए किसी भी स्त्री पर कुदृष्टि नहीं डालना चाहिए। क्योंकि ( मत्ती 5:28 ) की वचन में प्रभु यीशु का कहना यह है; यदि कोई किसी स्त्री पर को दृष्टि डाले, तो वह मन में उससे व्यभिचार कर चुका है। इसलिए बुरी नजर और गंदी ख्याल की सोच से बच के रहना चाहिए।

क्योंकि ( मत्ती 15:19 ) की वचन कहता है; कुचिन्ता, हत्या, पर स्त्रीगमन, व्यभिचार, चोरी, झूठी गवाही और निन्दा मन ही से निकलतीं है।” फिर मन से होने वाले पाप को मानसिक पाप कहा जाता है।

(iii) आत्मिक व्यभिचार क्या है?

जिस तरह शारीरिक व्यभिचार शरीर से और मानसिक व्यभिचार मन से होता है; उसी तरह आत्मिक व्यभिचार भी आत्मा के द्वारा होता है। तो सवाल यह है, कि यह व्यभिचार आत्मा के द्वारा किस प्रकार होता है? तो चलिए इसके बारे में विस्तार से जानने की कोशिश करते हैं।

देखिए ( यशायाह 45:23 ) की वचन में यहोवा परमेश्वर कहते हैं; कि मैंने अपनी ही शपथ खाई, अर्थात परमेश्वर से बड़ा और कोई नहीं है जो परमेश्वर उसका नाम लेकर सपथ खा सके। इसलिए यहां पर वह अपनी ही सपथ खा रहे हैं। फिर आगे लिखा है कि धर्म के अनुसार परमेश्वर के मुख से जो वचन निकला है, वह नहीं टलेगा। देखिए, परमेश्वर के मुख से जो वचन निकलता है, वह बगैर काम किए वापस नहीं लौटता।

तो परमेश्वर किस वचन के बारे में कह रहे। वह यह कह रहे हैं, कि प्रत्येक घुटना मेरे सामने झुकेगा। अर्थात संपूर्ण सृष्टि परमेश्वर के सम्मुख झुकेगा। पर यदि कोई सृष्टिकर्ता परमेश्वर के सामने न झुक कर दूसरे किसी की भी आराधना करता है, तो वह आत्मिक व्यभिचार करता है।

क्योंकि ( रोमियो 14:11 ) की वचन में भी परमेश्वर अपने जीवन की सौगंध खाकर कहते हैं; कि प्रत्येक घुटना मेरे सामने झुकेगा और प्रत्येक जीभ परमेश्वर को स्वीकार करेगा। फिर ( फिलिप्पियों 2:10 ) कि वचन में भी लिखा है, की स्वर्ग, पृथ्वी और जो पृथ्वी के नीचे हैं, वे सभी प्रभु यीशु के नाम पर घुटने टेकें। घुटने टेकने का अर्थ आराधना, पूजा, या उपासना करने को कहा जाता है। पर यदि कोई प्रभु यीशु को छोड़ दूसरों की आराधना कर रहा है, तो वह आत्मिक व्यभिचार कर रहा है।

इसलिए मसीही लोग जरा ध्यान दें, क्योंकि बहुत से इस्राएली लोगों का पतन इस प्रकार की पाप में पड़ने की वजह से हुआ था। ( 1 राजा 14:9 ) की वचन में परमेश्वर यारोबाम से अहिय्याह नबी के द्वारा कहता है, कि “तू ने उन सभों से बढ़कर जो तुझ से पहिले थे बुराई, की है, और जा कर पराये देवता की उपासना की और मूरतें ढालकर बनाईं, जिस से मुझे क्रोधित कर दिया और मुझे तो पीठ के पीछे फेंक दिया है।”

परमेश्वर ने यारोबाम को राज्य दिया था। परन्तु ( 1 राजा 14 ) में लिखित वचन के अनुसार उसका पतन परमेश्वर को त्यागने की वजह से हुआ था। इसलिए मसीह प्रभु को पहचानने में गलती न करें, और आत्मिक पाप से बचे रहें।

पाप किसे कहते हैं

7) चोरी न करना

लानत है, उस मनुष्य को जो चोरी करता है। क्योंकि परमेश्वर मनुष्य को हाथ, पैर तथा बुद्धि दिया है; कि वह उसका उपयोग करके दो वक्त की रोटी इज्जत से खा सके। देखिए, ( नीतिवचन 20:17 ) में लिखा है; कि चोरी-छिपे की रोटी मनुष्य को भले ही मीठी लगती हो, परन्तु पीछे उसका मुंह क्या होता है? कंकड़ से भर जाता है। अर्थात अपराध का फल के रूप में जेल की हवा खानी पड़ती है। इसलिए चोरी नहीं करना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर को भी इस से नफरत है।

8) झूठी गवाही न देना

गवाही क्या होता है? दरअसल सत्य को प्रमाणित करने और न्याय का संतुलन बनाए रखने के लिए गवाहों की जरूरत पड़ती है। कचहरी में बिना साक्षी के दंड नहीं सुनाया जाता है। परमेश्वर चाहता है, कि जब भी कोई गवाही दे तो सच्ची गवाही दें। क्योंकि झूठी गवाही से न्याय बिगड़ जाता है, और धार्मिक लोगों को बेवजह ही सलाखों के पीछे जाना पड़ता है।

9) परस्त्री का कामना या लालच न करना

परस्त्री पर दिलचस्पी रखना, बातें करना, उसे बार-बार निहारना और बुरी अभिलाषाओं की कामना करना घोर पाप है। परमेश्वर को यह मंजूर नहीं, की कोई व्यक्ति दूसरों की स्त्रीयों पर कुदृष्टि डालें। इसलिए भाईयों इन पापों को सदा स्मरण करते रहना। क्योंकि पाप क्या है? इसकी जानकारी अच्छी तरह न होने से बेवजह ही परमेश्वर के क्रोध का शिकार होना पड़ता है।

10) किसी वस्तु या धन का लालच न करना

कहते हैं, की लालच एक बुरी बला है। जिस मनुष्य के मन में लालच होता है, वह एक अपराधी बन जाता है। इसलिए दूसरों की चीज को लालच न करो। बल्कि मेहनत करो और झोली भरो। इसलिए भाईयों लालच करके बेवजह ही स्राप को क्यों दावत दी जाए, है, न। आप लोग तो जानते ही हैं, कि परमेश्वर की आज्ञा न मानना पाप है। तो फिर नाश का कारण बनकर, अपने सिर पर क्यों पाप को ढोते फिरे। अगर दीर्घायु होना चाहते हैं, तो ( नीतिवचन 28:16 ) की वचन के अनुसार लालच का बैरी बने।

पाप का ज्ञान

ऊपर हमने परमेश्वर के वचन को ना मानने के कारण होने वाले पाप के बारे में देख लिया। तो अभी हम कुछ ऐसे पापों के बारे में बात करेंगे, जो मनुष्य के इर्द-गिर्द घूमते रहता है।

निन्दा

यह एक ऐसा पाप है, जिसे एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति के साथ आपस में बातचीत करते वक्त करता है। लोग खुद को दूसरों से अच्छे समझते हैं। क्योंकि लोगों को खुद का दोष गुनाह दिखाई नहीं देता है, हर बार दूसरों की निन्दा बदनाम करते हैं। इसलिए अनुचित बातों से खुद को बचाए रखना चाहिए।

गाली देना, झगड़ा और मारपीट करना

गाली झगड़ा और मारपीट करने की वजह से मनुष्य के जीवन पर दुख पहुंचता है। यह जानना अति आवश्यक है, कि किसी भी मनुष्य को दुख देना पाप है। इसलिए लोगों को दुख नहीं देना चाहिए। यदि आप किसी को दुख देने के बजाय, यदि किसी का दुख दूर करने में सहायक होते हैं; तो आप धन्य हैं। क्योंकि दुख तो हर कोई दे सकता है। पर दुखियों की सहायता करने वाला व्यक्ति संसार में बहुत कम मिलते हैं।

क्योंकि बाइबल का वचन कहता है ; “सावधान! कोई भी किसी से बुराई के बदले बुराई न करे; पर सदा भलाई करने पर तत्पर रहो आपस में और सब से भी भलाई ही की चेष्टा करो।” 1 थिस्सलुनीकियों 5:15

गंदी बात न बोलना

गंदी बातों का मजाक बहुत लोगों को बोलना और सुनना अच्छा लगता होगा। पर यह जान लें कि गंदी बात बोलना और सुनना भी पाप है। क्योंकि ( इफिसियों 4:29 ) की वचन में लिखा है; “कोई गन्दी बात तुम्हारे मुंह से न निकले, पर आवश्यकता के अनुसार वही जो उन्नति के लिये उत्तम हो, ताकि उस से सुनने वालों पर अनुग्रह हो।”

क्योंकि ( गलातियों 5:19-21 ) की वचन में मनुष्य का शारीरिक पाप के बारे में बताया गया है। क्योंकि उसमें लिखा है, शरीर के काम तो प्रगट हैं, अर्थात व्यभिचार, गन्दे काम, लुचपन। मूर्ति पूजा, टोना, बैर, झगड़ा, ईर्ष्या, क्रोध, विरोध, फूट, विधर्म। डाह, मतवालापन, लीलाक्रीड़ा, और इन के जैसे और और काम हैं, इन के विषय में मैं तुम को पहिले से कह देता हूं जैसा पहिले कह भी चुका हूं, कि ऐसे ऐसे काम करने वाले परमेश्वर के राज्य के वारिस न होंगे। इसलिए इन सब पापों से खुद को बचाए रखें।

Video call & गंदी chatting

पहले के जमाने में इतना साधन नहीं था, कि कोई लड़का किसी लड़की से मिलकर गुफ्तगू करे। परंतु इक्कीसवीं सदी में स्मार्टफोन के जरिए इस प्रकार की काम को लोग बहुत आसानी से कर रहे हैं। अच्छे कामों के लिए Video calling और chatting करना कोई ग़लत नहीं है। पर अश्लील हरकत और गंदे कामों के लिए, इसका इस्तेमाल करना पाप है। बहुत से माता-पिता और अभिभावकों को यह भी पता नहीं होगा, कि उनके बच्चे किस काम के लिए स्मार्टफोन का इस्तेमाल कर रहे हैं।

और एक बात यदि लड़का, लड़का के साथ दोस्ती करें और लड़की, लड़की की दोस्ती करे तो कोई दिक्कत नहीं है। पर यदि लड़का, लड़की के साथ और लड़की, लड़का के साथ बड़ों की नजरों से छिप छिपकर Video calling और chatting कर रहा है; तो यह समझ लीजिए कि दाल में कुछ काला है। इसलिए प्रत्येक माता-पिता और अभिभावकों भी अपने बच्चों की हरेक गतिविधियों पर ध्यान देना चाहिए। वरना बाद में पछताने से कोई लाभ नहीं मिलेगा।

गंदी मूवी न देखना

देखिए मूवी तो सब कोई देखना पसंद करते हैं। परंतु गंदी मूवी और गंदी फोटो को निहारना भी पाप है। इसलिए इस प्रकार के बुरी चिजों से खुद को बचाए रखें। परंतु मैं एक बात कहना चाहता हूं, यदि वीडियो देखना ही है, तो कुछ सीखने की जैसे वीडियो को देखें, जिससे आगे चलकर आपके जीवन में काम आ सके। आप लोगों ने अंधों को तो देखा ही होगा। उनको दिखाई न देने की वजह से कितनी परेशानियां मिलती है। परंतु परमेश्वर ने आपको खूबसूरत आंख दिया है, जिसके द्वारा आप परमेश्वर की महिमा कर सकते हैं। पर लानत है, उस मनुष्य को जो गंदी मूवी और वीडियो देखने की आदत बना लेता है।

नशापान न करना

नशापान करना भी पाप है। क्योंकि नशापान करने से लोगों के मन में अपराधिक प्रवृत्ति जागती है। नशा पान करने के पश्चात ज्यादातर लोगों को झगड़ते हुए देखा जाता है। लोगों के द्वारा गाली देना, मार-पीट करना तथा अनेक प्रकार की नीच कर्म इसके सेवन के पश्चात होता है। इसलिए नशा पान नहीं करना चाहिए। क्षणस्थाई आनंद प्राप्ति के लिए लोगों का मान-सम्मान नष्ट हो जाता है। इसलिए नशा पान की आदत न बनाएं।

दुष्कर्म न करना

दुष्कर्म करना सिर्फ पाप नहीं! बल्कि महापाप है। क्योंकि दुष्कर्म करना और दुष्कर्म करने में साथ देना भी पाप है। इसलिए इस से हमेशा दूर रहना चाहिए। दुष्कर्म जैसी पाप से बचने के लिए, नशा पान और दुष्टों के साथ मित्रता नहीं करना चाहिए। फिर गंदी मूवी और अश्लील तस्वीरें भी नहीं देखना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार की गंदी आदत के कारण मन में दुष्कर्म की भावना उत्पन्न होती है।

इसके पश्चात लड़कियों को भी अपने परिधान पर ध्यान देना चाहिए। लड़कियां हमेशा भड़कीले परिधान से खुद को वर्जित करना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार की परिधान की वजह से दूसरों का पतन होता है। इसलिए तंग परिधान से किसी के पाप का कारण न बने। एक बात हमेशा याद रखना, की पाप और गुनाह हमेशा अंधेरे तथा कालकोठरी की ओर ले जाता है। परंतु आत्मसंयम तथा सच्चाई और अच्छाई में उज्जवल भविष्य है।

निष्कर्ष

देखिए पाप तो बहुत प्रकार के हैं, परंतु वही मैंने बताने की कोशिश करी है, जो ज्यादातर लोग जानें अनजाने में करते हैं। क्योंकि बहुत सारे लोगों को पाप क्या है, यह भी पता नहीं है। क्योंकि लोग धीरे-धीरे प्रभु का वचन और धर्मशास्त्र की अध्ययन से दूर होते जा रहे हैं। वजह यह है, कि लोग सत्य को छोड़कर संसारिक और काल्पनिक विषय वस्तु में ज्यादातर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। मैं उम्मीद करता हूं, कि जो भी वचन आपके सामने रखा है, वह आपके जीवन को परिवर्तन करने के साथ-साथ, वर्तमान और आने वाले समय के लिए लाभकारी साबित हो सके। धन्यवाद।

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