परमेश्वर पुत्र यीशु (Jesus) की प्रचार का विरोध क्यों होता है? bible Vachan in hindi 2021

मनुष्य का विरोध तो कोई भी कर सकता है। परंतु परमेश्वर का विरोधी बनने से, मनुष्य के जीवन और किस्मत पर ताला लग सकता है। अर्थात पल भर के लिए, सत्य की राह पर कोई भी बाधा उत्पन्न करने में सक्षम हो भी जाए। परंतु सत्य अर्थात परमेश्वर को रोकना मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। क्योंकि ( प्रकाशित वाक्य 22:13 ) कि वचन में परमेश्वर कहता है, अल्फा, ओमेगा, पहिला, पिछला आदि और अंत मैं ही हूं। अगर आप आज के वचन के बारे में गहराई से, जानना चाहते हैं; कि प्रभु यीशु की प्रचार में सतावट और रुकावट क्यों होता है, तो इस लेख को पढ़ने की जरूर कष्ट करें।

परमेश्वर के वचन का प्रचार क्यों किया जाता है?

सबसे पहले सुसमाचार प्रचार के बारे में प्रभु यीशु क्या कहते हैं; आइए हम उसे वचन की माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं। ( मरकुस 16:15 ) की वचन में प्रभु यीशु चेलों को यह आदेश दिए थे; की सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो। अगर यह आदेश मनुष्य की ओर से होता, तो शायद पास्टर, सेवक और विश्वासी लोग प्रभु की वचन का प्रचार न करते। परंतु यह प्रचार का आदेश प्रभु की ओर से मिला है। इसलिए परमेश्वर के वचन का प्रचार किया जाता है।

फिर ( प्रेरितों के काम 10:42-43 ) में पतरस कहता है; प्रभु यीशु ने आज्ञा दी है, कि उसके नाम का प्रचार किया जाए। क्योंकि परमेश्वर पिता ने प्रभु यीशु को जीवित और मरे हुए दोनों का न्यायकर्ता ठहराया है। और भविष्यवक्ता भी प्रभु के बारे में गवाही देते हैं। क्योंकि प्रभु यीशु के नाम के द्वारा पापों की क्षमा मिलती है।

एक बात यह भी है, कि लोग संसारिक बातों के बारे में ज्यादा सोचते हैं। जैसे कि काम-काज, पहनना, खाना-पीना, शादी-व्याह, धन-दौलत; हंसी-खुसी इत्यादि इत्यादि। परंतु परमेश्वर के वचन का बारे में लोगों को सोचने और सुनने का समय नहीं मिलता है। इस कारण लोग दिन प्रतिदिन पाप गुनाह करते रहते हैं।

परमेश्वर पुत्र यीशु (Jesus) की प्रचार का विरोध क्यों होता है?

प्रभु यीशु के प्रचार का विरोध और सतावट के बारे में बाइबल क्या कहती है?

देखिए सत्य को ग्रहण करना इतना आसान नहीं है। क्योंकि परमेश्वर, बुराई को लोगों के मध्य से अलग करता है। इसलिए बुराई से चलने वाले लोगों को प्रभु का वचन ग्रहण करने में कठिनाई लगता है। प्रभु यीशु के सुसमाचार प्रचार करते वक्त भी फरीसी, शास्त्रियों के द्वारा प्रभु का विरोध किया जाता था। विरोध करने का कारण यह था, की प्रभु यीशु खुद को परमेश्वर का पुत्र कहते थे। और यह बात सत्य भी है, कि वह परमेश्वर का पुत्र हैं।। दूसरी बात यह है; की यहूदी धर्म शास्त्रियों की शिक्षा में परमेश्वर की आज्ञा का पालन कम, परंतु सांसारिक रीति-रिवाजों पर चलने की शिक्षा ज्यादा थी।

इसलिए प्रभु यीशु उस शिक्षा का विरोध करते थे। तीसरी बात यह है; कि प्रभु यीशु की शिक्षा मनुष्य के पाप को उजागर करता है। विरोध करने का चौथा कारण ( यूहन्ना 15:21 ) की वचन के अनुसार यह है; की लोग प्रभु यीशु और पिता परमेश्वर के बारे में नहीं जानते हैं। इसलिए अन्य जाति के लोग प्रचारक, सेवक, प्रभु के दास और विश्वासी लोगों को सताते हैं।

क्योंकि प्रभु यीशु पहले से ही बाइबिल में सतावट के बारे में बता दिए हैं। ( मरकुस 13:9-13 ) ( लूका 21:12-13) के वचन में लिखा है; कि सावधान रहना! क्योंकि प्रभु यीशु के नाम के लिए लोग तुम्हें पंचायतों ले जाकर पिटेंगे और हाकिमों के आगे खड़ा करेंगे। ऐसा इसलिए करेंगे, क्योंकि तुम परमेश्वर की गवाही दे सकोगे।

यह न कहना की प्रभु के नाम के कारण हमें सताया जा रहा है। क्योंकि विरोध और सतावट में भी परमेश्वर का प्रचार होता है। इससे नये लोगों को प्रभु के बारे में अधिक जानने का मौका मिलता है। सत्य तो यह है, कि प्रभु के मार्ग को आज तक न तो कोई रोक सका है; न रोक पाएगा।

क्योंकि आरंभ से ही जो लोग प्रभु यीशु के नाम को मिटाने चले थे, वे खुद मिट गए या तो प्रभु के अनुयायी बन गए। ( प्ररितों के काम 22:3-16 ) के वचन में पौलुस अपना गवाही देता है; कि वह प्रभु की कलीसिया का बहुत बड़ा विरोधी था। जिस पौलुस ने प्रभु की मार्ग को रोकना चाहता था। वह खुद प्रभु का बहुत बड़ा सेवक बन गया।

समझने वाली बात यह है; कि प्रथम सदी से लेकर आज तक न जाने कितनो ने प्रभु यीशु और उनके लोगों का विरोध किया होगा; परन्तु परिणाम यह है, कि उतनी ही तेजी से प्रभु यीशु का नाम सारे संसार में फ़ैल रहा है। इसलिए लोगों को ( यूहन्ना 15:25 ) की वचन के अनुसार व्यर्थ ही परमेश्वर का बैरी नहीं बनना चाहिए।

परमेश्वर की योजना क्या है?

परमेश्वर की योजना यह था, कि अपने इकलौते पुत्र यीशु को इस धरती पर भेजेगा। भेजने का कारण यह नहीं था; की संसार को दंड दिया जाए! (यूहन्ना 3:17 ) परन्तु यीशु के नाम से लोगों को उद्धार मिले। अगर परमेश्वर दंड देना चाहता तो कोई भी विरोधी जीवित न बचता।

जब परमेश्वर, मिस्र के गुलामी से छुड़ाकर इस्राएलियों को कनान देश ले जा रहे थे; तब बहुत से राजा और महाराजाओं ने इसराएलीयों के मार्ग को रोकने की कोशिश किए थे। परंतु उनका मार्ग रोक न पाए। क्योंकि इसराएलीयों को रोकने का मतलब परमेश्वर को रोकना था। फिर जो कोई भी इसराएलीयों का रास्ता रोका, उनका विनाश ही विनाश हुआ।

दरअसल परमेश्वर की योजना यह थी; कि वह अपने प्रजा इसराएलीयों को जहां दूध और मधु की नदी बहती है: वहां ले जा रहा था। ईश्वर अपने प्रजा का उद्धार के लिए मिस्र में 10 महामारी भेजकर मिस्रीयों को पीड़ित किया। यहां तक कि लाल सागर का पानी को दो भाग में बांट कर अपनी प्रजा की रक्षा की; तथा मरुभूमि में जहां खाने पीने को कुछ नहीं मिलता है, वहां भी उन्हें भरपूर खाना पीना दिया।

परंतु इस युग में परमेश्वर की योजना यह है, की सारे संसार के लोगों को सुसमाचार सुनाया जाए। पर दंड देकर नहीं! बल्कि प्रेम के साथ प्रभु का वचन को सुनाया जाए। क्योंकि परमेश्वर अपने क्रोध को न्याय के दिन के लिए संचित करके रखा है। ( मरकुस 13:10 ) की वचन के अनुसार वह चाहता है, कि न्याय के दिन से पहले सारी सृष्टि के जातियों को सुसमाचार सुनाया जाए। इसलिए प्रभु की मार्ग में रुकावट बनने के बजाय, उसकी मार्ग का सहभागी बनना चाहिए।

परमेश्वर पुत्र यीशु (Jesus) की प्रचार का विरोध क्यों होता है?

क्या विश्वासियों को परमेश्वर के लिए दुख उठाना चाहिए?

( 1 पतरस 3:17 ) में वचन कहता है, की बुराई करने के कारण दुख उठाने से बेहतर यह है, कि भलाई के कारण दुख उठाओ। क्योंकि बुराई करने वालों के साथ निंदा, अपमान गाली और मारपीट होना स्वाभाविक है। परंतु परमेश्वर का काम अर्थात् अच्छाई के बदले अगर किसी को निंदा अपमान सहना पड़ता है, तो उसके लिए खुशी की खबर है। क्योंकि अगर परमेश्वर की इच्छा यह है, कि आप दुख उठाएं, सुसमाचार के लिए, अपमान सहें, तो भलाई करने के कारण मिलने वाली दुःख से बेहतर कुछ भी नहीं है।

( 1 पतरस 2:20 ) में लिखा है, यदि कोई बुराई करने के पश्चात मार खाकर धीरज धरता है, तो उसमें कौन सा बड़ाई की बात है? परंतु भला काम करके अगर कोई दुख उठाए, तो परमेश्वर को वह अच्छा लगता है। ( 1 पतरस 4:19 ) के वचन में लिखा है; इसलिए जो प्रभु की इच्छा के अनुसार दुख उठाते हैं; वे भलाई करते हैं। जैसे प्रभु यीशु भी अधर्मीयों के लिए एक बार दुख उठये थे।

इसलिए प्रभु यीशु ( मत्ती 5:10 ) के वचन में कहते हैं, की धर्म के कारण सताए जाने वाले लोग धन्य हैं। समय समय पर प्रभु के दास, सेवक और विश्वासी लोग धर्म के कारण सताए जातें हैं। परन्तु सताने वाले लोगों को यह नहीं पता कि प्रभु यीशु पहले से ही ( लूका 21:17 ) में कह चुके हैं; की मेरे नाम के कारण लोग तुम से बैर करेंगे। परमेश्वर की राह पर चलना इतना आसान नहीं है, जैसे कि संसारिक लोग चलते हैं। इसलिए प्रभु धार्मिकता के लिए दुख उठाने वालों को धन्य कहते हैं।

सुसमाचार के विरोधियों को प्रभु यीशु की चेतावनी

जब भी किसी गांव, नगर और शहर में प्रभु के लोगों का विरोध या सुसमाचार का ग्रहण नहीं किया जाता है, उसके लिए ( मत्ती 10:14 ) में प्रभु यीशु यह कहते हैं; कि वहां से निकलते वक्त अपने पांवों की धूल भी झाड़ दो। इस से यह पता चलता है, कि सुसमाचार को ग्रहण न करने वाले गांव, या नगर के धूल को भी प्रभु यीशु को पसंद नहीं है। इसलिए परमेश्वर की वचन को कभी भी हल्का में मत लेना। क्योंकि ( मत्ती 10:15 ) वचन में प्रभु यीशु की प्रचार को ग्रहण न करने वाले उस नगर की दशा; सदोम और अमोरा से भी अधिक भयानक होने की बात लिखी गई है।

क्योंकि ( उत्पत्ति 19:24-25 ) के वचन में परमेश्वर यहोवा सदोम और अमोरा को गन्धक तथा आग से नष्ट किया था। इसलिए प्रभु यीशु का विरोध सोच समझ कर करना चाहिए। क्योंकि वह मनुष्य नहीं! बल्कि ईश्वर है। क्योंकि ( लूका 11:23 ) के वचन में प्रभु यीशु यह कहते हैं; कि जो मेरे साथ नहीं है, वह मेरे विरोध में है। और आगे यह भी कहते हैं, कि जो मेरे साथ नहीं बटोरता वह बिखरता है। अर्थात जो प्रभु के साथ नहीं चलता वह अपना नुकसान करता है।

निष्कर्ष

प्रभु के दास, सेवक और विश्वासी लोग विरोधियों के सामने इसलिए चुप रहते हैं; कि उन्हें प्रभु की आज्ञा का पालन करना है। कमजोर वे हो सकते हैं, परन्तु परमेश्वर नहीं। इसलिए प्रेम की परिभाषा को समझने की कोशिश करना चाहिए। क्योंकि ( यूहन्ना 13:34-35 ) की वचन के अनुसार प्रभु यीशु की नई आज्ञा यह है; कि एक दूसरे को प्रेम करना है। और प्रभु के दास लोग दुःख सहकर यह प्रमाण देते हैं, कि वे प्रभु के चेले हैं। शान्ति दाता ईश्वर विश्वासियों को शान्ति प्रदान करता रहे। आमीन।।

2 thoughts on “परमेश्वर पुत्र यीशु (Jesus) की प्रचार का विरोध क्यों होता है? bible Vachan in hindi 2021”

  1. सभी भाईयो और बहनों को जय येशु
    प्रभु यीशु मसीह का प्रेम सदा और सर्वदा के लिए आप पर कायम बना रहे, आमीन

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