लौदीकिया की कलीसिया को लिखे गए पत्र की तरह ही कभी-कभार लोगों के जीवन कुछ घटनाओं को घटते हुए, देखा जाता है। क्योंकि संसार में ऐसे भी कुछ लोग मौजूद हैं, जो कि उनके द्वारा कि जाने वाली प्रत्येक काम को वे सर्वोत्तम मानते हैं। परन्तु उनको यह भी नहीं पता, कि क्या उनका काम उपर में बैठा, ईश्वर की दृष्टि में भी उत्तम है, या नहीं? अगर आप प्रभु यीशु के द्वारा कहा गया, प्रकाशित वाक्य 3:14-22 में लिखी लौदीकिया की कलीसिया के पत्र के बारे में जानना चाहते हैं, तो इस लेख को जरूर पढ़ने की कष्ट करें। हो सकता है, कि इस वचन को पढ़ने के द्वारा आपका जीवन में भी कुछ बदलाव आ जाए।
प्रकाशित वाक्य 3:14
- ¹⁴ और लौदीकिया की कलीसिया के दूत को यह लिख, कि, जो आमीन, और विश्वासयोग्य, और सच्चा गवाह है, और परमेश्वर की सृष्टि का मूल कारण है, वह यह कहता है।
लौदीकिया की कलीसिया को लिखे गए पत्र के इस वचन प्रभु के बारे में बताता है, कि जो आमीन है; अर्थात जो परमेश्वर का वचन को स्थिर करता है, क्योंकि यीशु के द्वारा परमेश्वर का वचन जगत में आया था। अर्थात प्रभु यीशु पिता की इच्छा को पूरा किये थे, इसलिए वह खुद आमीन है। क्योंकि सर्वशक्तिमान परमेश्वर के द्वारा कहा गया वचन को समर्थन करने की एक सम्मानित शब्द को आमीन कहते हैं। स्वर्ग दूतों के द्वारा ईश्वर की स्तुति करने के समय में भी (प्रकाशित वाक्य 7:11-12) आमीन कहा जाता है। (मत्ती 6:13) में प्रभु यीशु के द्वारा सिखाया गया, प्रार्थना के बाद भी आमीन शब्द का उच्चारण किया गया है। बाइबल के वचनों से पता चलता है, कि प्रार्थना, आशीष (गलातियों 6:18) और शाप देने के समय (व्यवस्थाविवरण 27:15) भी आमीन कहा जाता है।
- लौदीकिया की कलीसिया को लिखे गए पत्र से पता चलता है कि प्रभु विश्वास योग्य ईश्वर है,(क्योंकि व्यवस्थाविवरण 7:9) कि वचन कहता है; कि तेरा परमेश्वर विश्वासयोग्य ईश्वर है। क्योंकि जो लोग उससे प्रेम रखते हैं, वह उनसे हजार पीढ़ी तक वाचा पालता है। परंतु संसारिक मनुष्य झूठा और धोखा देने में माहिर है। इसलिए मनुष्य को नहीं, बल्कि ईश्वर पर भरोसा करना चाहिए।
- और लौदीकिया की कलीसिया को लिखे गए इस पत्र के वचन से मालूम चलता है, कि प्रभु सच्चा गवाह है, क्योंकि (यूहन्ना 5:36) के वचन से पता चलता है, की जो जो काम प्रभु ने किया था, जैसे की सुसमाचार सुनाना, बीमारियों को चंगा करना और बहुत सारे आश्चर्य कर्म करना इत्यादि इत्यादि, बताता है, कि वह सत्य अर्थात परमेश्वर के पुत्र थे। यही उनकी गवाही थी; यूं कहें तो प्रभु पिता परमेश्वर का अर्थात सत्य (यूहन्ना 18:37) के सच्चे गवाही थे।
- फिर लौदीकिया की कलीसिया को लिखे गए पत्र के पहला वचन कहता है, कि प्रभु यीशु सृष्टि का मूल कारण है। अर्थात (यूहन्ना 1:1-14) के वचनों से पता चलता है, कि प्रभु यीशु वचन हैं, और सब कुछ उसी के द्वारा उत्पन्न हुआ है। (कुलुस्सियों 1:16) के वचन भी कहता है, कि उसी के द्वारा देखी अनदेखी सारी वस्तुओं की सृष्टि हुई। इन वचनों से पता चलता है; कि प्रभु यीशु सृष्टि का मूल कारण हैं।
प्रकाशित वाक्य 3:15-16
- ¹⁵ कि मैं तेरे कामों को जानता हूं कि तू न तो ठंडा है और न गर्म: भला होता कि तू ठंडा या गर्म होता। प्रकाशित वाक्य 3:15
- ¹⁶ सो इसलिये कि तू गुनगुना है, और न ठंडा है और न गर्म, मैं तुझे अपने मुंह में से उगलने पर हूं। प्रकाशित वाक्य 3:16
प्रकाशित वाक्य अध्याय तीन वचन संख्या पंद्रह और सोलह में लौदीकिया की कलीसिया के दूत को लिखे गए पत्र के द्वारा प्रभु कहते हैं, कि तू न तो ठंडा है और न ही गर्म है। बेहतर यह होता की तु ठंडा या गर्म होता! प्रभु कहते हैं, की तू गुनगुना अर्थात न्यूट्रल है। न्यूट्रल का मतलब सबको पता है, जैसे कि न्युट्रल में गाड़ी आगे या पीछे को नहीं जाती। क्योंकि लौदीकिया की कलीसिया के लोगों की आत्मिक स्थिति भी इसी प्रकार की थी। संसार में भी कोई कोई ऐसे मनुष्य हैं; जो न तो खुद तरक्की करते हैं; और न दूसरे को तरक्की करने देते हैं। ईश्वरीय चिंता धारा, विश्वास और धर्म कर्म के कार्य में न तो वे आगे बढ़ते हैं, और न ही वे पीछे हटते हैं। इसलिए ऐसे लोगों को प्रभु न्यूट्रल कहते हैं। क्योंकि (रोमियो 12:11) का वचन के अनुसार अच्छे काम करने में आलसी न होकर, आत्मिक उन्माद में प्रभु की सेवा करने में तत्पर रहना चाहिए।
- गुनगुना या न्यूट्रल अर्थात किसी भी काम के लायक न रहने वाले मनुष्य को प्रभु अपने पास और अपने अंदर में रखना नहीं चाहते! बल्कि अपने मुंह से उन लोगों को वह उल्टी करना चाहते हैं, अर्थात अपने पास यहां से हटाना चाहते हैं; क्योंकि प्रभु नहीं चाहते कि कोई भी व्यक्ति न्यूट्रल अर्थात नालायक रहे; इसलिए वह पहले से ही कलीसियाओं को चेतावनी दे रहे हैं, अन्यथा वह अपने अंदर से निकाल कर बाहर फेंक देंगे। एक बात बताइए, 10 साल पहले एक व्यक्ति का हालात जैसे था; क्या 10 साल के बाद भी उसका वैसे ही होगा! नहीं न, उसके जीवन में कुछ न कुछ तो बदलाव जरूर होगा। और सोचिए यदि प्रभु में विश्वास करने वाले लोग भी अगर सेम टू सेम वैसे ही रहेंगे तो क्या प्रभु को अच्छा लगेगा! बिल्कुल भी नहीं; है न। प्रभु चाहते हैं, कि मनुष्य अपने जीवन में ईमानदारी, विश्वास, प्रेम; धीरज, ज्ञान, प्रभु के वचन और सामर्थ में दीन व दिन आगे बढ़ते जाए।
प्रकाशित वाक्य 3:17-18
- ¹⁷ तू जो कहता है, कि मैं धनी हूं, और धनवान हो गया हूं, और मुझे किसी वस्तु की घटी नहीं, और यह नहीं जानता, कि तू अभागा और तुच्छ और कंगाल और अन्धा, और नंगा है। प्रकाशित वाक्य 3:17
- ¹⁸ इसी लिये मैं तुझे सम्मति देता हूं, कि आग में ताया हुआ सोना मुझ से मोल ले, कि धनी हो जाए; और श्वेत वस्त्र ले ले कि पहिन कर तुझे अपने नंगेपन की लज्ज़ा न हो; और अपनी आंखों में लगाने के लिये सुर्मा ले, कि तू देखने लगे। प्रकाशित वाक्य 3:18
जो व्यक्ति अपने आप को धनवान कहता है, वह ईश्वर की दृष्टि में धनी नहीं है। इसलिए धनवान लोगों को अपने धन पर घमंड नहीं करना चाहिए। क्योंकि (मरकुस 10:23) के वचन कहता है, धनवानों को को स्वर्ग जाना कितना कठिन है। इसलिए (मत्ती 6:19) के वचन के अनुसार पृथ्वी में धन इकट्ठा करने से चींटी, कीड़ा-मकौडा नष्ट करते हैं और चोर भी चोरी कर सकते हैं। इसलिए प्रकाशित वाक्य की तीन अध्याय वचन संख्या सत्रह और अठारह में लौदीकिया की कलीसिया के दूत को प्रभु कहते हैं,
- तू जो अपने आप को धनी और धनवान कह रहा है, फिर किसी भी वस्तु की कमी न होने की दावा कर रहा है; परंतु यह नहीं जानता कि तु कितना अभागा और तुच्छ मनुष्य है। देखिए जो मनुष्य ईश्वर को छोड़कर अपने धन पर घमंड करता है; वह वाकई में ईश्वर की दृष्टि से कितना अभागा और तुच्छ मनुष्य है। क्योंकि यदि परमेश्वर किसी को न दे तो, कोई भी मनुष्य कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकता, और अगर कोई गलत तरीके से धन प्राप्त भी कर ले तो वह ज्यादा दिन तक नहीं टिकता है। इसलिए प्रभु यहां पर कंगाल, अंधा और नंगा कह रहे हैं। क्योंकि (यिर्मयाह 9:23) में कहा गया है, कि धनी अपने धन पर घमंड न करे।
- इसलिए लौदीकिया की कलीसिया के दूत तथा सभी मनुष्य को प्रभु सुझाव देना चाहते हैं, कि तुम मुझसे आग में ताया हुआ सोना लेलो, जिससे तुम धनी हो जाओ। फिर आप पूछेंगे कि आग में ताया हुआ सोना क्या है? देखिए 1 (तीमुथियुस 6:18) कहता है, भलाई करें और भोले कामों के लिए धनी बने। अर्थात सदा सर्वदा पाप से दूर रहकर इमानदार बने और अच्छाई और सच्चाई का धन कमाए; जिसे कोई भी नष्ट नहीं कर सकता। इसके साथ सत्य के मार्ग पर चलकर श्वेत वस्त्र धारण कर लें जिससे परमेश्वर की दृष्टि में नंगेपन की लज्जा न हो और आंख में सुर्मा लगा ले अर्थात प्रभु की वचन को पढ़ ले जिससे तुम देख सकोगे।
प्रकाशित वाक्य 3:19
- ¹⁹ मैं जिन जिन से प्रीति रखता हूं, उन सब को उलाहना और ताड़ना देता हूं, इसलिये सरगर्म हो, और मन फिरा।
लौदीकिया की कलीसिया के दूत को लिखे पत्र की यह वचन भी जान लें, जिस में प्रभु कहते हैं, जिससे मैं प्रेम करता हूं, उसे ताड़ना भी देता हूं। देखिए परमेश्वर का प्रेम तो अमूल्य है; पर उसकी ताड़ना लोगों को निखरता है। जैसे एक अच्छे बाप अपने पुत्र को इसलिए डांटता है, कि उसका पुत्र सबसे उत्तम बन जाए। वैसे ही (नीतिवचन 3:12) जिसे ईश्वर प्रेम करता है, उसे डांटता भी है। इसलिए (इब्रानियों 12: 5) कहता है प्रभु की ताडना को मामूली मत सोचो और जब वह डांटे तो हियाव न छोड़ो। बल्कि अपने किए हुए बुरे कर्मों के प्रति सचेत होकर मन फिराओ। ईश्वर चाहता है, की सारी सृष्टि के मानव जाति बुराई को छोड़कर अच्छे बन जाएं।
प्रकाशित वाक्य 3:20
- ²⁰ देख, मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं; यदि कोई मेरा शब्द सुन कर द्वार खोलेगा, तो मैं उसके पास भीतर आ कर उसके साथ भोजन करूंगा, और वह मेरे साथ।
संसार में एक व्यक्ति बहुत सारे लोगों के बीच में घिरा हुआ रहता है, सांसारिकता से लेकर आत्मिक विषयों पर लोगों की चर्चा उसके कानों में गूंजती रहती है। सवाल यह है, कि वह व्यक्ति सांसारिक और आत्मिक में से किसकी आवाज को सुनना पसंद करती है? क्योंकि प्रभु कहते हैं; मैं द्वार पर खड़ा हुआ खटखटाता हूं, यदि कोई वचन या शब्द सुनकर द्वार खोलेगा, तनिक सोचिए प्रभु द्वार कैसे खटखटाते हैं? यही न की वह आत्मिक शब्द और अध्यात्मिक वचन के द्वारा कानों के रास्ते हृदय के द्वार को खटखटाते हैं। जो व्यक्ति प्रभु की वचन को सुनता है, अर्थात संसारिक विषय-वस्तु और बुरी बातों को छोड़कर; आध्यात्मिक बातें और आत्मिक विषय-वस्तुओं पर ध्यान केंद्रित करता है, उसके अंदर प्रभु निवास करते हैं।
- लोग शारीरिक आहार के स्वरूप में दाल चावल रोटी सब्जी और कुछ भी खाते हैं; परंतु आत्मा के लिए भी आहार होता है, और वह प्रभु यीशु का वचन है। जिस तरह अच्छी स्वास्थ्य के लिए लोग दिन में तीन चार बार खाते हैं, वैसे ही प्रभु का वचन को कान से सुनकर, आंख से देख कर और मुंह से पढ़ कर आत्मा के लिए भोजन करना चाहिए। क्योंकि प्रभु कहते हैं, मैं भीतर आकर तुम्हारे साथ भोजन करूंगा और तुम मेरे साथ। देखिए प्रभु आत्मा है, और आपकी आत्मा के लिए प्रभु का वचन चाहिए। परन्तु प्रभु को आपसे क्या चाहिए? प्रभु का भोजन क्या हो सकता है? मनुष्य का सत्य और धार्मिकता पर पर चलना ही प्रभु का भोजन है। क्योंकि प्रभु को धार्मिक व्यक्ति चाहिए।
प्रकाशित वाक्य 3:21-22
- ²¹ जो जय पाए, मैं उसे अपने साथ अपने सिंहासन पर बैठाऊंगा, जैसा मैं भी जय पा कर अपने पिता के साथ उसके सिंहासन पर बैठ गया।
- ²² जिस के कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है॥
जो ईश्वर से उत्पन्न हुआ है; वह संसार, पाप और बुराई से विजय प्राप्त करता है, (1 यूहन्ना 5:4) और विजय प्राप्त करने का एकमात्र जरिया विश्वास है। इसलिए लौदीकिया की कलीसिया के साथ-साथ प्रभु विश्व के सभी कलीसिया के लोगों को बताना चाहते हैं; कि जिस तरह उन्होंने संसार से जय पाकर पिता के साथ सिंहासन पर बैठा है, वैसे से ही जो मनुष्य पाप और बुराई से इस संसार में जय पाएगा, वह प्रभु का सिहासन पर प्रभु के साथ बैठेगा। इसलिए प्रभु की आत्मा के द्वारा कलीसियाओं को कहा गया वचन को ध्यान से सुनना चाहिए।
निष्कर्ष
लौदीकिया की कलीसिया के पत्र से पता चलता है, कि सभी मनुष्य को अपना पुराना स्वभाव छोड़कर नया बन जाना चाहिए। क्योंकि जब भी कोई बच्चा का जन्म होता है, तो उम्र के साथ-साथ उसका बदलाव भी दिन-व-दिन होते रहता है। इसलिए लोगों को पाप जैसी जीवन को छोड़कर आत्मिक उन्नति पर ध्यान देना चाहिए। क्योंकि ईश्वर भी यही चाहते हैं; कि मनुष्य अपना पापमय कार्यकलाप और बुरे सोच विचार को त्याग दे और सत्य का अनुगामी बन जाएं।