परमेश्वर की इच्छा क्या है? यह सवाल परमेश्वर की व्यक्तिगत इच्छा को दर्शाता है। जैसे कि लोगों का भी कुछ अपनी अपनी इच्छाएं होती है। पर लोगों कि इच्छाओं में ज्यादातर स्वार्थ ही निहित रहती है। परन्तु परमेश्वर की इच्छाओं में दुनिया का कल्याण छिपा हुआ रहता है। परमेश्वर की इच्छा क्या है? देखिए मैं तो क्या कोई भी मनुष्य इसे बताने में असमर्थ है, जब तक स्वयं परमेश्वर की ओर से इसका प्रकाश न मिले। पर पवित्र बाइबल के आधार पर जो वचन मुझे प्राप्त है, उसे मैं आपके सामने रख रहा हूं। मुझे आशा है, कि इस वचन के माध्यम से परमेश्वर, आपसे जरुर बात करेंगे।
क्या पाप की वजह से परमेश्वर मनुष्य का सबकुछ छिन सकता है
परमेश्वर की इच्छा को कैसे जानें
परमेश्वर की इच्छा क्या है? इसे समझने के लिए एक संसारिक पिता की इच्छा को जानना बेहद जरूरी है। मान लीजिए कि आपका भी एक परिवार है। तो सबसे पहले आपकी सोच यही होगा कि आपके परिवार को धन दौलत, गाड़ी बंगला और संसार के सभी प्रकार की खुशियां मिले। दूसरा सोच यह होगा कि आपके बच्चे पढ़ लिख कर एक अच्छे इंसान बनें। क्योंकि कोई भी मातापिता अपने बच्चों को गुंडा, बदमाश, आवारा बनते देखना नहीं चाहते हैं। तो जरा सोचिए सर्वोच्च परमेश्वर जो सबका सृष्टि कर्ता है, क्या वह किसी को गुंडा, बदमाश, आवारा, बदचलन, व्यभिचारी, पियक्कड़ और पापी बनते देखना चाहेंगे। कभी नहीं।
देखिए आपका एक परिवार होता है, और उसमें 8 से 10 या ज्यादा भी सदस्य हो सकते हैं। फिर आप एक मनुष्य होने पर भी एक पिता होने के नाते अपने परिवार के लोगों से अच्छे इंसानों की तरह जीवन गुजारने की उम्मीद लगाए रहते हैं। तो जरा बताइए परमेश्वर का तो एक परिवार नहीं है। बल्कि सारी सृष्टि उसका परिवार है। तो वह मुझसे, आपसे और सारी सृष्टि के लोगों से क्या चाहता होगा? परमेश्वर की अपनी इच्छा क्या हो सकता है?
इसका जवाब यह है, कि पाप न करें, पवित्र जीवन जिएं और अच्छे इंसान बनें। क्योंकि 1 थिस्सलुनीकियों 4:3 की वचन कहता है, “क्योंकि परमेश्वर की इच्छा यह है, कि तुम पवित्र बनो: अर्थात व्यभिचार से बचे रहो।”परमेश्वर चाहते हैं कि लोग पाप को छोड़कर पवित्र जीवन जिएं। क्योंकि लैव्यवस्था 20:7 की वचन में लिखा है, “इसलिये तुम अपने आप को पवित्र करो; और पवित्र बने रहो; क्योंकि मैं तुम्हारा परमेश्वर यहोवा हूं।”
देखिए सबसे बड़ी बात यह है, कि परमेश्वर महापवित्र हैं। इसलिए वह यह चाहता है, कि सब कोई पवित्र बन कर अच्छी जीवन जीएं। पर पाप को जाने बिना पाप से बचना भी मुश्किल है। इसलिए पाप किसे कहते हैं, या पाप क्या है? इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ लिजिए।
परमेश्वर कहते हैं, कि पवित्र बनो और व्यभिचार से बचे रहो। इस वचन में परमेश्वर की इच्छा का बहुत बड़ा रहस्य छुपा है। क्योंकि व्यभिचार मनुष्य को परमेश्वर से सम्पूर्ण रूप से अलग कर देता है। व्यभिचार के बारे में जानने के लिए पाप किसे कहते हैं? लिंक में जा कर पढ़ सकते हैं। परमेश्वर कभी नहीं चाहते हैं कि कोई भी मनुष्य व्यभिचार और किसी भी प्रकार के पाप में लिप्त हो कर सत्य के मार्ग से दूर चले जाएं।
क्योंकि स्वयं परमेश्वर पवित्र हैं। मान लिजिए कि कोई व्यक्ति अपने बदन में कीचड़ लगा कर आपके साथ सट कर बैठना चाहे, तो क्या आप उसे अपने पास बैठने की इजाजत देंगे। बिल्कुल भी नहीं है न! क्योंकि दोनों एक साथ बैठने से आपके बदन में भी कीचड़ लग सकता है। जिस तरह आप कीचड़ लगा हुआ व्यक्ति से आप घृणा करते हैं। परमेश्वर भी उसी तरह पाप और व्यभिचार करने वाले लोगों से घृणा करते हैं।
चाहे वह शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक व्यभिचार क्यों न हो। क्योंकि परमेश्वर को व्यभिचार से घिन आती है। वह लड़का हो, या लड़की, मर्द हो या औरत, विवाहित हो या अविवाहित कोई भी क्यों न हों। इसलिए लोगों को व्यभिचार को छोड़कर परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीना चाहिए।
परमेश्वर लोगों से क्या चाहते हैं
देखिए 1 तीमुथियुस 2:4 की वचन में लिखा है, “वह यह चाहता है, कि सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहिचान लें।” इस वचन से हमें यह पता चलता है, कि परमेश्वर की इच्छा के अनुसार लोगों को जीने कि आवश्यकता है। अर्थात सत्य जो स्वयं परमेश्वर है, उसकी आज्ञा और नियम मानकर चलना चाहिए। इसका मतलब सीधी सी बात है कि लोगों को पाप नहीं करना चाहिए। आपका राय क्या है? क्या आप बदमाशों को अच्छा कह सकते हैं? निश्चित रूप से आपका जवाब न में ही होगा।
पर परमेश्वर की सहनशीलता को देखिए, उसने आपको, मुझको और सारी सृष्टि के लोगों को क्षमा करना चाहता है। हमें सुधरने का मौका देना चाहता है। परन्तु दुष्ट लोग और भी ज्यादा दुष्ट बनकर परमेश्वर की इच्छा के अनुसार चलना नहीं चाहते हैं। तो आप ही बताइए परमेश्वर कब तक मनुष्य के पाप को सहते रहेंगे। वह सबका बाप है, और लोगों को बचाना भी चाहता है, इसलिए वह सबकुछ सह रहा है। पर मेरा एक बात हमेशा याद रखना, कि जब बेटा बोली और वचन से न सुधरे, तो बाप छड़ी लगाकर भी सुधारना जानता है। इसलिए परमेश्वर और माता पिता को कभी भी दुःख नहीं देना चाहिए।
यदि आप खुद की परिचय और अपनी अस्तित्व के बारे में जानना चाहते हैं, तो पापों को छोड़कर न्यायप्रिय और ईमानदार व्यक्ति बन जाईए, जैसे कि स्वयं परमेश्वर हैं। ऐसा न हो कि यशायाह 1:3 में लिखा हुआ परमेश्वर का वचन आप पर लागू हो जाएं। क्योंकि उसमें ऐसा लिखा है, की बैल तो अपने मालिक को और गदहा अपने स्वामी की चरनी को पहिचानता है, परन्तु इस्राएल मुझें नहीं जानता, मेरी प्रजा विचार नहीं करती।”
निश्चित रूप से यदि आज हम परमेश्वर की इच्छा और आपने आप को जानते, तो पाप कभी न करते। पर दुर्भाग्य कि बात यह है, कि भले बुरे का ज्ञान रहते हुए, भी लोग अनजान बन कर पाप करते रहते हैं। ताज्जुब वाली बात यह है, कि एक बेजुबान बैल और गदहा अपने मालिक को पहचानता है। उसकी हांक को जानता है, और उसके पिछे पिछे चलता है।
परन्तु परमेश्वर का शिकायत यह है, कि उत्पत्ति 1:27 की वचन के अनुसार मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाया है। फिर भी इस मिट्टी के मनुष्य की हिम्मत को तो देखिए कि अपनी सृष्टि कर्ता परमेश्वर की इच्छा को नहीं जानता है। और पाप के साथ लिपटे रहता है। और एक बात यह है, कि जो लोग परमेश्वर की इच्छा को जानते, पहचानते और उसके पिछे पिछे चलते हैं, उनके लिए प्रभु यीशु ने यूहन्ना 10:27 की वचन में यह कहते हैं, कि “मेरी भेड़ें मेरा शब्द सुनती हैं, और मैं उन्हें जानता हूं, और वे मेरे पीछे पीछे चलती हैं।”
अर्थात यदि हम मनुष्य परमेश्वर क्या चाहता है, जानना चाहते हैं, तो सबसे पहले परमेश्वर का शब्द यानिकि वचन को पढ़ने सुनने और उसके पिछे पिछे चलने की जरूरत है। एक बात परमेश्वर के लोग बनने का दिखावा कभी न करें। क्योंकि वह अपने लोगों को जानता है कि कौन सही और कौन ग़लत है। इसलिए हमेशा परमेश्वर के सामने नम्र और पवित्र मन के व्यक्ति बनने की कोशिश करते रहना चाहिए।
एक बहुत ही दिलचस्प की बात यह है, कि हम लोग खुद को दुसरो से बेहतर और बड़े ही बुद्धिमान व्यक्ति तो समझते हैं। पर यदि मैं, आप और कोई भी व्यक्ति पाप बुराई में अपना जीवन गुजार रहा है, तो उससे बड़ी मूर्ख कोई नहीं है। क्योंकि यिर्मयाह 4:22 की वचन में परमेश्वर यहोवा यह कहते हैं, कि मेरी प्रजा मूढ़ है, वे मुझे नहीं जानते; वे ऐसे मूर्ख लड़के हैं जिन में कुछ भी समझ नहीं। बुराई करने को तो वे बुद्धिमान हैं, परन्तु भलाई करना वे नहीं जानते।
” देखिए साहब यदि कोई परमेश्वर क्या चाहता जानता तो कभी भी पाप और बुराई न करता! अर्थात यदि कोई व्यक्ति अपनी बुद्धि को पाप बुराई करने के लिए इस्तेमाल करता है, तो परमेश्वर की दृष्टि में वह सबसे बड़ी मूर्ख है।
क्योंकि जो व्यक्ति परमेश्वर की दृष्टि में समझदार है, वह कभी भी पाप और बुराई नहीं करेगा। समझदार व्यक्ति परमेश्वर की इच्छा को अच्छी तरह से समझता और जानता भी है। क्योंकि समझदार व्यक्ति के मन में परमेश्वर का भय हमेशा बना रहता है।
फिर नीतिवचन 1:7 में लिखा है कि “यहोवा का भय मानना बुद्धि का मूल है; बुद्धि और शिक्षा को मूढ़ ही लोग तुच्छ जानते हैं।” अर्थात बुद्धिमान लोगों के मन में परमेश्वर की शिक्षा का भय बना रहता है। मूर्ख लोग ही परमेश्वर की शिक्षा और आज्ञा का उलंघन करते हैं, और बेवजह ही किसी बुराई के फंदे में फंस जाते हैं।
निष्कर्ष
प्रभु के प्रियजनों सबसे बड़ी बात यह है, कि पाप बुराई को छोड़कर, सबको परमेश्वर की इच्छा के अनुसार जीवन जीना चाहिए। क्योंकि परमेश्वर चाहते हैं कि लोग सत्य, न्याय, प्रेम, और आपसी भाईचारे के साथ मेलमिलाप का जीवन जीएं। अर्थात परमेश्वर सबके जीवन में शान्ति देना चाहते हैं। परन्तु यह शान्ति की आशा रखने वाले लोगों पर निर्भर करता है, कि वे क्या चाहते हैं?
अन्त में मैं यही कहना चाहूंगा कि यदि कोई व्यक्ति परमेश्वर के इच्छा के अनुसार चलते हुए जीता है, और पवित्र परमेश्वर की वचन का इन्कार कभी नहीं करता, तो उसके जीवन में निश्चित रूप से आशीष की बारिश होगी। मैं और एक बार कहता हूं, कि उसके जीवन में निश्चित रूप से आशीष की बारिश होगी। प्रभु के जीवित वचन के प्रति मूल्यवान समय देने के लिए विशेष विशेष धन्यवाद।। परमेश्वर आपको समझ और बुद्धि प्रदान करें। आपका दिन शुभ हो। Praise the lord.