रोमियो अध्याय 7:1-25 KJV biblevachan.com

की व्यवस्था से मुक्त। रोमियो अध्याय 7:1-25 रोमियो अध्याय 7:1-25

रोमियो अध्याय 7:1-25 ¹ हे भाइयो, क्या तुम नहीं जानते मैं व्यवस्था के जानने वालों से कहता हूं, कि जब तक मनुष्य जीवित रहता है, तक तक उस पर व्यवस्था की प्रभुता रहती है?

² क्योंकि विवाहिता स्त्री व्यवस्था के अनुसार अपने पति के जीते जी उस से बन्धी है, परन्तु यदि पति मर जाए; तो वह पति की व्यवस्था से छूट गई।

³ सो यदि पति के जीते जी वह किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तो व्यभिचारिणी कहलाएगी; परन्तु यदि पति मर जाए; तो वह उस व्यवस्था से छूट गई; यहां तक कि यदि किसी दूसरे पुरूष की हो जाए, तौभी व्यभिचारिणी न ठहरेगी।

⁴ सो हे मेरे भाइयो, तुम भी मसीह की देह के द्वारा व्यवस्था के लिये मरे हुए बन गए, कि उस दूसरे के हो जाओ; जो मरे हुओं में से जी उठा: ताकि हम परमेश्वर के लिये फल लाएं।

⁵ क्योंकि जब हम शारीरिक थे, तो पापों की अभिलाषायें जो व्यवस्था के द्वारा थीं; मृत्यु का फल उत्पन्न करने के लिये हमारे अंगों में काम करती थीं।

⁶ परन्तु जिस के बन्धन में हम थे उसके लिये मर कर; अब व्यवस्था से ऐसे छूट गए, कि लेख की पुरानी रीति पर नहीं; वरन आत्मा की नई रीति पर सेवा करते हैं॥

मुसा की व्यवस्था और पाप

⁷ तो हम क्या कहें? क्या व्यवस्था पाप है? कदापि नहीं! वरन बिना व्यवस्था के मैं पाप को नहीं पहिचानता: व्यवस्था यदि न कहती; कि लालच मत कर तो मैं लालच को न जानता।

⁸ परन्तु पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझ में सब प्रकार का लालच उत्पन्न किया; क्योंकि बिना व्यवस्था पाप मुर्दा है।

⁹ मैं तो व्यवस्था बिना पहिले जीवित था, परन्तु जब आज्ञा आई, तो पाप जी गया, और मैं मर गया।

¹⁰ और वही आज्ञा जो जीवन के लिये थी; मेरे लिये मृत्यु का कारण ठहरी।¹¹ क्योंकि पाप ने अवसर पाकर आज्ञा के द्वारा मुझे बहकाया; और उसी के द्वारा मुझे मार भी डाला।

¹² इसलिये व्यवस्था पवित्र है, और आज्ञा भी ठीक और अच्छी है।

¹³ तो क्या वह जो अच्छी थी, मेरे लिये मृत्यु ठहरी? कदापि नहीं! परन्तु पाप उस अच्छी वस्तु के द्वारा मेरे लिये मृत्यु का उत्पन्न करने वाला हुआ; कि उसका पाप होना प्रगट हो; और आज्ञा के द्वारा पाप बहुत ही पापमय ठहरे।

¹⁴ क्योंकि हम जानते हैं कि व्यवस्था तो आत्मिक है, परन्तु मैं शरीरिक और पाप के हाथ बिका हुआ हूं।

रोमियो अध्याय 7:1-25
रोमियो अध्याय 7:1-25

मनुष्य का स्वभाव

¹⁵ और जो मैं करता हूं, उस को नहीं जानता, क्योंकि जो मैं चाहता हूं, वह नहीं किया करता; परन्तु जिस से मुझे घृणा आती है; वही करता हूं।

¹⁶ और यदि, जो मैं नहीं चाहता वही करता हूं; तो मैं मान लेता हूं, कि व्यवस्था भली है।

¹⁷ तो ऐसी दशा में उसका करने वाला मैं नहीं; वरन पाप है, जो मुझ में बसा हुआ है।

¹⁸ क्योंकि मैं जानता हूं; कि मुझ में अर्थात मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती; इच्छा तो मुझ में है; परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते।

¹⁹ क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं; वह तो नहीं करता; परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता वही किया करता हूं।

²⁰ परन्तु यदि मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता; तो उसका करने वाला मैं न रहा; परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है।

²¹ सो मैं यह व्यवस्था पाता हूं; कि जब भलाई करने की इच्छा करता हूं, तो बुराई मेरे पास आती है।

²² क्योंकि मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्न रहता हूं।

²³ परन्तु मुझे अपने अंगो में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है; जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है; और मुझे पाप की व्यवस्था के बन्धन में डालती है जो मेरे अंगों में है।

²⁴ मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?

²⁵ मैं अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर का धन्यवाद करता हूं; निदान मैं आप बुद्धि से तो परमेश्वर की व्यवस्था का; परन्तु शरीर से पाप की व्यवस्था का सेवन करता हूं॥

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