रोमियो अध्याय 11:1-36 biblevachan.com

ईश्वर की प्रजा रोमियो अध्याय 11:1-36

रोमियो अध्याय 11:1-36 ¹ इसलिये मैं कहता हूं, क्या परमेश्वर ने अपनी प्रजा को त्याग दिया? कदापि नहीं; मैं भी तो इस्त्राएली हूं: इब्राहीम के वंश और बिन्यामीन के गोत्र में से हूं।

² परमेश्वर ने अपनी उस प्रजा को नहीं त्यागा; जिसे उस ने पहिले ही से जाना; क्या तुम नहीं जानते; कि पवित्र शास्त्र एलियाह की कथा में क्या कहता है; कि वह इस्त्राएल के विरोध में परमेश्वर से बिनती करता है?

³ कि हे प्रभु; उन्होंने तेरे भविष्यद्वक्ताओं को घात किया, और तेरी वेदियों को ढ़ा दिया है; और मैं ही अकेला बच रहा हूं; और वे मेरे प्राण के भी खोजी हैं।

⁴ परन्तु परमेश्वर से उसे क्या उत्तर मिला? कि मैं ने अपने लिये सात हजार पुरूषों को रख छोड़ा है जिन्हों ने बाल के आग घुटने नहीं टेके हैं।⁵ सो इसी रीति से इस समय भी; अनुग्रह से चुने हुए कितने लोग बाकी हैं।

⁶ यदि यह अनुग्रह से हुआ है; तो फिर कर्मों से नहीं; नहीं तो अनुग्रह फिर अनुग्रह नहीं रहा।

⁷ सो परिणाम क्या हुआ यह? कि इस्त्राएली जिस की खोज में हैं; वह उन को नहीं मिला; परन्तु चुने हुओं को मिला और शेष लोग कठोर किए गए हैं।

⁸ जैसा लिखा है, कि परमेश्वर ने उन्हें आज के दिन तक भारी नींद में डाल रखा है और ऐसी आंखें दी जो न देखें और ऐसे कान जो न सुनें।

⁹ और दाउद कहता है; उन का भोजन उन के लिये जाल, और फन्दा; और ठोकर; और दण्ड का कारण हो जाए।¹⁰ उन की आंखों पर अन्धेरा छा जाए ताकि न देखें, और तू सदा उन की पीठ को झुकाए रख।

अन्य जातियों का उद्धार। रोमियो अध्याय 11:1-36

¹¹ सो मैं कहता हूं क्या उन्होंने इसलिये ठोकर खाई; कि गिर पड़ें? कदापि नहीं; परन्तु उन के गिरने के कारण अन्यजातियों को उद्धार मिला; कि उन्हें जलन हो।

¹² सो यदि उन का गिरना जगत के लिये धन और उन की घटी अन्यजातियों के लिये सम्पत्ति का कारण हुआ; तो उन की भरपूरी से कितना न होगा॥

¹³ मैं तुम अन्यजातियों से यह बातें कहता हूं: जब कि मैं अन्याजातियों के लिये प्रेरित हूं; तो मैं अपनी सेवा की बड़ाई करता हूं।

¹⁴ ताकि किसी रीति से मैं अपने कुटुम्बियों से जलन करवा कर उन में से कई एक का उद्धार कराऊं।

¹⁵ क्योंकि जब कि उन का त्याग दिया जाना जगत के मिलाप का कारण हुआ; तो क्या उन का ग्रहण किया जाना मरे हुओं में से जी उठने के बराबर न होगा?

¹⁶ जब भेंट का पहिला पेड़ा पवित्र ठहरा; तो पूरा गुंधा हुआ आटा भी पवित्र है; और जब जड़ पवित्र ठहरी; तो डालियां भी ऐसी ही हैं।

¹⁷ और यदि कई एक डाली तोड़ दी गई; और तू जंगली जलपाई होकर उन में साटा गया; और जलपाई की जड़ की चिकनाई का भागी हुआ है।

¹⁸ तो डालियों पर घमण्ड न करना; और यदि तू घमण्ड करे; तो जान रख; कि तू जड़ को नहीं; परन्तु जड़ तुझे सम्भालती है।

¹⁹ फिर तू कहेगा डालियां इसलिये तोड़ी गई; कि मैं साटा जाऊं।

²⁰ भला, वे तो अविश्वास के कारण तोड़ी गई; परन्तु तू विश्वास से बना रहता है इसलिये अभिमानी न हो; परन्तु भय कर।

रोमियो अध्याय 11:1-36
रोमियो अध्याय 11:1-36

ईश्वर की इच्छा को समझें

²¹ क्योंकि जब परमेश्वर ने स्वाभाविक डालियां न छोड़ीं, तो तुझे भी न छोड़ेगा।

²² इसलिये परमेश्वर की कृपा और कड़ाई को देख! जो गिर गए; उन पर कड़ाई; परन्तु तुझ पर कृपा; यदि तू उस में बना रहे; नहीं तो; तू भी काट डाला जाएगा।

²³ और वे भी यदि अविश्वास में न रहें; तो साटे जाएंगे क्योंकि परमेश्वर उन्हें फिर साट सकता है।

²⁴ क्योंकि यदि तू उस जलपाई से; जो स्वभाव से जंगली है काटा गया और स्वभाव के विरूद्ध अच्छी जलपाई में साटा गया तो ये जो स्वाभाविक डालियां हैं; अपने ही जलपाई में साटे क्यों न जाएंगे।

उद्धार कार रहस्य

²⁵ हे भाइयों; कहीं ऐसा न हो, कि तुम अपने आप को बुद्धिमान समझ लो; इसलिये मैं नहीं चाहता कि तुम इस भेद से अनजान रहो; कि जब तक अन्यजातियां पूरी रीति से प्रवेश न कर लें; तब तक इस्त्राएल का एक भाग ऐसा ही कठोर रहेगा।

²⁶ और इस रीति से सारा इस्त्राएल उद्धार पाएगा; जैसा लिखा है; कि छुड़ाने वाला सियोन से आएगा; और अभक्ति को याकूब से दूर करेगा।

²⁷ और उन के साथ मेरी यही वाचा होगी; जब कि मैं उन के पापों को दूर कर दूंगा।

²⁸ वे सुसमाचार के भाव से तो तुम्हारे बैरी हैं; परन्तु चुन लिये जाने के भाव से बाप दादों के प्यारे हैं।

²⁹ क्योंकि परमेश्वर अपने वरदानों से; और बुलाहट से कभी पीछे नहीं हटता।

³⁰ क्योंकि जैसे तुम ने पहिले परमेश्वर की आज्ञा न मानी परन्तु अभी उन के आज्ञा न मानने से तुम पर दया हुई।³¹ वैसे ही उन्होंने भी अब आज्ञा न मानी कि तुम पर जो दया होती है इस से उन पर भी दया हो।

³² क्योंकि परमेश्वर ने सब को आज्ञा न मानने के कारण बन्द कर रखा ताकि वह सब पर दया करे॥

³³ आहा! परमेश्वर का धन और बुद्धि और ज्ञान क्या ही गंभीर है! उसके विचार कैसे अथाह; और उसके मार्ग कैसे अगम हैं!

³⁴ प्रभु कि बुद्धि को किस ने जाना या उसका मंत्री कौन हुआ?

³⁵ या किस ने पहिले उसे कुछ दिया है जिस का बदला उसे दिया जाए।

³⁶ क्योंकि उस की ओर से; और उसी के द्वारा; और उसी के लिये सब कुछ है; उस की महिमा युगानुयुग होती रहे; आमीन॥

Today Bible verses

“अपनी जवानी के दिनों में अपने सृजनहार को स्मरण रख; इस से पहिले कि विपत्ति के दिन और वे वर्ष आएं; जिन में तू कहे कि मेरा मन इन में नहीं लगाता।” सभोपदेशक 12:1

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