यीशु मसीह के वचन में अनन्त जीवन powerful bible message

यीशु मसीह के वचन में अनन्त जीवन कैसे मिलता है? इसे जानने के लिए; सबसे पहले जीवन और अनन्त जीवन के बारे में जानना पड़ेगा। क्योंकि मनुष्य के जीवन के सफर में; जन्म से लेकर मृत्यु तक; ईश्वर की वचन का ज्ञान को प्राप्त करने के लिए; हमेशा प्रयास करते रहना चाहिए। पर लोग अनायास ही सवाल पुछ बैठते हैं; क्यों? हां; मैं भी इस क्यों वाली सवाल का जवाब; क्यों से ही देना चाहता हूं। और उदाहरण के लिए पुछता हुं? लोग मनोरंजन क्यों करते हैं? शारीरिक और मानसिक थकावट को दूर करने के लिए! लेकिन थकावट दूर क्यों करना चाहिए? जाहिर सी बात है; तरोताजा रहने के लिए। तो भाई तरोताजा क्यों रहना? अगले दिन अच्छे काम करने के लिये। फिर मैं पुछता हुं; काम क्यों करना? क्योंकि अछे जीवन गुजारना है। तो भाई जीवन क्या है; आगे पढ़िए…खुद व खुद जान जाएंगे।

जीवन क्या है? यीशु मसीह के वचन में अनन्त जीवन

जो जीवित है उसमें जीवन रहता है; और जिसमें जीवन है; वह जीवित है। चाहे वह मनुष्य; पशु पक्षी या कोई भी प्राणी क्यों ना हो! क्योंकि जिस में जीवन नहीं होता; उसे मृतक समझा जाता है। अर्थात जीवन का अर्थ जीवित रहने को कहा जाता है।

अनन्त जीवन क्या है। यीशु मसीह के वचन

अनन्त जीवन का मतलब; जीवन का अन्त अर्थात मृत्यु कभी न होने को कहा जाता है। क्योंकि अनन्त जीवन जिस किसी के पास भी हो; उसकी मृत्यु होना असम्भव है। कारण वह अमर हो जाता है। और जब भी अनन्त जीवन की बात आती है; तो मैं आपको स्पष्ट रूप से बता देना चाहता हूं; कि जैसे अंधे को लाठी चाहिए;उसी प्रकार मनुष्य को ईश्वर की वचन चाहिए। क्योंकि मनुष्य को इस संसार में; जिस तरह ईश्वर के द्वारा जीवन मिलता है! उसी प्रकार अनन्त जीवन भी; जो यीशु मसीह के वचन को सुनकर उनके भेजने वाले पिता ईश्वर पर विश्वास करते हैं। (यूहन्ना 5:24)

क्योंकि ईश्वर के वचन में वह सामर्थ है; जो लोगों के हृदय में आत्मिक शक्ति जागृत करता है। आत्मिक शक्ति मिलने से आत्मसंयम बढ़ती है। फिर मनुष्य पाप पर विजय पा कर अनन्त जीवन की ओर अग्रसर होता है।

फिर यूहन्ना 17:3 में यीशु मसीह कहते हैं; कि सच्चा और अद्वितीय परमेश्वर को जानना ही अनन्त जीवन है। परंतु विडंबना की बात यह है; कि मनुष्य ईश्वर की आज्ञा और उनके वचन की शिक्षा लेने के बजाय; संसार की माया जाल में घिर कर अमृत पाने का नाटक करते हैं।

आज्ञा मानने से अनन्त जीवन

मरकुस 10:17-19 के वचन में यीशु मसीह कहते हैं; कि हत्या; व्यभिचार; चोरी; , छल न करना; झूठी गवाही न देना और अपने माता-पिता का आदर करना। इस वचन से आप लोग समझ सकते हैं; कि ईश्वर की आज्ञा न मानने से भी पाप होता है। और पाप लोगों को अनन्त जीवन से दूर करता है।

1 यूहन्ना 3:15 का वचन कहता है; की; अपने भाई से बैर रखने वाला व्यक्ति हत्यारा है; और सबको पता है; पापी को अनन्त जीवन नहीं मिल सकता। इसलिए ईश्वर की आज्ञा को मान कर चलना चाहिए।

विश्वास में अनन्त जीवन

यूहन्ना 3:14-15 वचन कहता है; मुसा इस्राएलियों को मृत्यु से बचाने के लिए; जंगल में पीतल के सांप को लाठी में बाँध कर उपर उठाया था; क्योंकि सांप काटते वक्त जो भी उस पीतल के सांप को देखते थे;तब वे बच जाते थे। उसी प्रकार यीशु मसीह को भी क्रुस के उपर चढ़ाया गया; ताकि जो कोई उस पर विश्वास करे उसे अनन्त जीवन मिलेगा। क्योंकि मनुष्य जाति पाप कर के ईश्वर की महिमा से वंचित रह गए हैं। (रोमियो3:23)

यूहन्ना 12:47 के वचन में यीशु मसीह कहते हैं; जो मेरी बात नहीं मानता; उसे दोषी ठहराने नहीं; बल्कि इसलिए आया हूं; ताकि जगत का उद्धार हो।

यूहन्ना 3:16 के वचन में; स्वर्गीय पिता के प्यार का प्रमाण इस बात से मिलता है; कि मनुष्य नाश न हो; इसलिए स्वर्गीय पिता अपना एकलौता पुत्र को दे दिया; जिससे जो उस पर विश्वास करता है; उसे अनन्त जीवन मिलेगा।

यूहन्ना 3:36 में भी लिखा है; कि जो पुत्र अर्थात यीशु मसीह पर विश्वास करता है; अनन्त जीवन उसे मिलता है। परन्तु जो पुत्र (यीशु मसीह) को नहीं मानता; उन लोगों पर ईश्वर की क्रोध बरसती है।

यीशु मसीह के वचन में अनन्त जीवन
यीशु मसीह के वचन में अनन्त जीवन

त्याग मय जीवन

संसार में दो तरह के लोग रहते हैं। एक संसारिक और दुसरा आत्मिक जीवन जीने वाले लोग। संसारिक जीवन जीने वाले लोग; ईश्वर की आज्ञा के खिलाफ जाकर मन मर्जी से चलने लगते हैं।

परन्तु त्याग मय जीवन; अर्थात मरकुस 10:28-30 में लिखा हुआ वचन बताता है; जो कोई यीशु मसीह और सुसमाचार के लिए; घर-परिवार यहां तक कि अपना सबकुछ त्याग कर दे; उसे परलोक में अनन्त जीवन प्राप्त होगा।

निष्कर्ष

जैसा गुरु वैसा चेला; की कहावत आपने सुना ही होगा। मेरे कहने का मतलब यह है; कि लोग ईश्वर को अपना गुरु मानने के बजाय लोगों को चुनते हैं। अर्थात ईश्वर की वचन को छोड़कर लोगों का बात सुनते हैं। अरे मेरे भाईयो जिन्हें आप अपना गुरु बनाते हैं; उनका भी बाप और गुरु ईश्वर है। क्योंकि हम सबका गुरु एक ही है; और वह ईश्वर है।

इसलिए यूहन्ना 13:13 के वचन में यीशु मसीह कहते हैं; तुम मुझे गुरू; और प्रभु, कहते हो; और भला कहते हो; क्योंकि मैं वही हूं। और अगर किसी को अपना गुरु बना भी लेते हैं; तो सिर्फ सच्चाई की शिक्षा का ही अनुसरण करें; अन्यथा आप अनन्त जीवन की राह से भटक सकते हैं।

क्योंकि यूहन्ना 14:24 के वचन में यीशु मसीह कहते हैं; जो मुझ से प्रेम नहीं रखता; वह मेरे वचन नहीं मानता; और जो वचन तुम सुनते हो; वह मेरा नहीं वरन पिता का है; जिस ने मुझे भेजा।

God bless you for reading to continue

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