यीशु मसीह की प्रार्थना: क्या यह 100 percent reward उत्पन्न कर सकता है

यीशु मसीह की प्रार्थना से मनुष्य को क्या सीख मिलती है?: संसार के मसीहा कहलाने वाले, यीशु मसीह को आखिर क्यों प्रार्थना करनी पड़ी? कुछ सवाल ऐसी होती है, जिसके उत्तर जानने से लोगों का विश्वास पुख्ता होता है। साथ ही साथ आत्मिक उन्नति भी होती है। क्योंकि किसी भी व्यक्ति को एक कामयाब इंसान बनने के लिए, उसके पास आत्मिक ज्ञान होना जरूरी है। तो चलिए अगर आप यीशु मसीह की प्रार्थना के बारे में जानना चाहते हैं; तो इस विषय को जरूर पढ़ने की कोशिश करें। हो सकता है, आपके जीवन की संकट, समस्या और बीमारी के घड़ी में यह 100 percent फल उत्पन्न करने में कामयाब हो जाए।

यीशु मसीह की प्रार्थना से क्या सीख मिलती है

जब भी मनुष्य संकट, समस्या या बीमार से पीड़ित हो जाए, तो उसे एक ही रास्ता दिखती है, और वह यह है; कि उसे प्रार्थना करना चाहिए। क्योंकि प्रार्थना ही ऐसा एक साधन है, जो मनुष्य का व्याकुल मन को स्थिर कर सकता है। क्योंकि जब भी मनुष्य संपूर्ण मन से ईश्वर को दुआ करता है, तो आत्मा का संपर्क परमात्मा से होता है। इसलिए उसे सुकून मिलना स्वाभाविक है। आज हम यीशु मसीह की प्रार्थना का जिक्र इसलिए कर रहे हैं, कि उसने अपने क्रुस के मृत्यु के पूर्व गेथसेमनी बारी में प्रार्थना करके मानव जाति को प्रार्थना करने की एक अच्छी सीख दी थी; जिसे मनुष्य अपने जीवन के संकट, समस्या और बीमारी के घड़ी में कर सके ।

  • यीशु ने प्रार्थना करके कहा, हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तौभी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो। (मत्ती 26:39 )
  • यह प्रार्थना सभी मनुष्यों को समस्या, संकट और बीमारी के समय तथा अपनी अंतिम घड़ी से पहले करना चाहिए। यह प्रार्थना करने से मनुष्य को दो तरह की लाभ मिलने वाला है। (प्रथम) मनुष्य का व्याकुल मन स्थिर होकर आत्मा में सुकून मिलेगा। (दूसरा) हो सकता है, इस प्रार्थना से प्रभु उसकी सुनकर उसको संकट से बाहर निकालेगा। क्योंकि यह प्रार्थना सभी मनुष्य के जीवन में लागू होती है।
  • यीशु मसीह की प्रार्थना सिर्फ एक बार में खत्म नहीं हुई थी, बल्कि इसी तरह से वह तीन बार प्रार्थना किए थे। यहां पर बलिदान की कटोरा अर्थात दुख की घड़ी को दूर करने के लिए निवेदन कर रहे थे। अगर आप पूछेंगे कि वह तो प्रभु थे; फिर क्यों उनको निवेदन करने की आवश्यकता थी। देखिए, पुत्र कभी भी पिता से बड़ा नहीं होता, चाहे वह कितना भी सामर्थी क्यों न हो। फिर वह ईश्वर के स्वरूप होने के साथ-साथ मनुष्य भी थे। इसलिए वह पिता से निवेदन कर रहे थे। फिर वह प्रभु और गुरु भी थे, इसलिए लोगों को इसकी शिक्षा देना अनिवार्य था। (यूहन्ना 13:13)
  • प्रभु यीशु की प्रार्थना के बारे में (यूहन्ना 12:27 ) के वचन में भी देखने को मिलता है, जिसमें लिखा है; ²⁷ जब मेरा जी व्याकुल हो रहा है। इसलिये अब मैं क्या कहूं? हे पिता, मुझे इस घड़ी से बचा? परन्तु मैं इसी कारण इस घड़ी को पहुंचा हूं।
  • जाहिर सी बात है, की लोगों को भी इसी तरह संकट की घड़ी में ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए। सच कहें तो संकट की घड़ी में प्रभु यीशु की प्रार्थना करने कि ऐसी उदाहरण बहुत ही मूल्यवान है। इसलिए सभी लोगों को संकट, समस्या और बीमारी की परिस्थितियों में डरने की बजाय ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए। क्योंकि डर समस्या को कम नहीं करता, बल्कि समस्या को बढ़ाने का काम करता है।
यीशु मसीह की प्रार्थना

प्रार्थना कैसे करें

संसार भर के लोगों की प्रार्थना करने का तरीका और उद्देश्य भले ही अलग-अलग हो सकता है, पर प्रार्थना करना तो सबको पड़ता है। इसलिए प्रार्थना करने के समय लोगों को मुख्यतः तीन बातों पर ध्यान देना चाहिए, जैसे कि…

(1) ईश्वर को धन्यवाद देना। (2) अपने सारे गुनाहों के लिए क्षमा मांगना (3) अपनी इच्छा को परमेश्वर के सम्मुख प्रकट करना।

(1) ईश्वर को धन्यवाद देना।

जब भी प्रार्थना करने के लिए खड़े होते हैं, तो सबसे पहले उस दिन के लिए, प्रभु यीशु के नाम से परमेश्वर को संपूर्ण मन से धन्यवाद दें, (भजन संहिता 86:12) और उसके नाम की महिमा करें, जिसने आपको सभी प्रकार के संकट, समस्या और बीमारी से बचा के रखता है। क्योंकि परमेश्वर महिमा पाने के योग्य है; इसलिए की उसने सब कुछ बनाया है। वह सर्वश्रेष्ठ और सर्वोच्च हैं। इसलिए सबसे पहले उसकी धन्यवाद देकर बढ़ाई करें।

(2) अपने सारे गुनाहों के लिए क्षमा मांगना

जिस तरह आप अपने गुनाहों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगते हैं; उसी तरह दूसरों के द्वारा आपके प्रति किया गया, गुनाहों को भी क्षमा कर दें।; और अपने द्वारा किया गया (A to Z) सभी प्रकार की गुनाहों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगे। दूसरों का अपराध क्षमा करने के लिए प्रभु यीशु; (मत्ती 6:14) की वचन में यह कहते हैैं, यदि आप अपने किए हुए गुनाहों के लिए ईश्वर से क्षमा पाना चाहते हैं; तो आपके विरुद्ध की गई लोगों के अपराधों को भी क्षमा कर दें। क्योंकि एक हाथ से ताली नहीं बजती, ताली बजाने के लिए दोनों हाथ की जरूरत पड़ती है। इसलिए अपने गुनहगारों को भी क्षमा कर दें। इसका मतलब परमेश्वर पापी और धर्मी दोनों का प्रभु है। अर्थात आप क्षमा करेंगे तो आपको क्षमा मिलेगा और आपकी प्रार्थना परमेश्वर तक सुनी जाएगी।

(3) अपनी इच्छा को परमेश्वर के सम्मुख प्रकट करना

मनुष्य के मांगने से पहले ईश्वर जानता है, कि लोगों को क्या चाहिए? क्योंकि प्रभु मन का विचार को भी जानता है। (लूका 9:47) परंतु बात यह है, कि बिन रोये बच्चे को जिस तरह मां दूध नहीं पिलाती, उसी तरह ईश्वर भी चाहते हैं, कि सभी लोग दुआ करें। क्योंकि प्रभु यीशु (मत्ती 7:7) के वचन में कहते हैं, मांगो तो दिया जाएगा। अर्थात जब तक लोगों के द्वारा प्रार्थना करके मांगा ना जाए, तब तक ऊपर से कुछ नहीं मिल सकता।

  • क्योंकि (विलापगीत 2:19) के वचन कहता है; रात के हर पहर के आरम्भ में उठ कर चिल्लाया कर! प्रभु के सम्मुख अपने मन की बातों को धारा की नाईं उण्डेल! तेरे बाल-बच्चे जो हर एक सड़क के सिरे पर भूख के कारण मूर्च्छित हो रहे हैं, उनके प्राण के निमित्त अपने हाथ उसकी ओर फैला।
  • इस वचन से यह पता चलता है, कि रात को बेसुध होकर सोने की बजाय हर पहर जागते हुए, प्रार्थना करना चाहिए। प्रार्थना भी ऐसी होनी चाहिए, की ईश्वर के सम्मुख अपनी मन की बातों को पानी की धारा की तरह बहा दिया जाए। संकट, समस्या, बिमारियों से सुरक्षित रहने और अपनी वांछित मन की फल प्राप्ति के लिए, ईश्वर की ओर अपना हाथ को फैलाना चाहिए। (मत्ती 26:41) में लिखित प्रभु यीशु की वचन कहता है, जागते रहो और प्रार्थना करो, जिससे तुम परीक्षा में न पड़ो। अर्थात संकट, समस्या और बीमारी से बच सकते हो। इसलिए प्रार्थना करते रहना चाहिए।
  • भजन संहिता 62:8) के वचन भी लोगों से कहता है, कि अपने अपने मन की बातों को खोलकर परमेश्वर को बताएं; क्योंकि वही हमारा शरणस्थान है। यह सत्य है, कि मनुष्य के लिए सुरक्षित स्थान ईश्वर के चरणों में ही मिलती है। इसलिए ईश्वर पर भरोसा करके प्रार्थना करना चाहिए।

निष्कर्ष

मैं उम्मीद करता हूं कि उपरोक्त लिखी गई वचनों को पढ़कर, उसके अनुसार चलने से आपके जीवन में 100 percent का फल उत्पन्न हो सकता है। क्योंकि प्रभु यीशु को अपनी नहीं, बल्कि मनुष्य की फिक्र थी। वह चाहते तो उसे क्रुस पर कोई मार नहीं सकता था। पर उनके मरे बिना मनुष्य का उद्धार असंभव था; इसलिए उसे क्रुस पर मरना पड़ा। परन्तु मनुष्यों के जीवन में संकट और मृत्यु का होना तो स्वभाविक है, पर उस घड़ी में प्रार्थना करना भी अनिवार्य है। धन्यवाद।।

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