यीशु मसीह का चेला | bible vachan

देखिए जो लोग बाइबल के अनुसार यीशु मसीह की शिक्षाओं का अनुसरण करते हैं खासकर वही लोग यीशु मसीह का चेला हैं। यदि कोई मसिहीयों के अनुसार अपना नाम रख लेता है, जैसे कि गले में क्रुस पहनना, घर में यीशु की तस्वीर रखना, संडे को चर्च जाना, आदि करते हुए, भी संसारिक जीवन जीता रहता है, तो वह यीशु मसीह का चेला नहीं है। क्योंकि यीशु मसीह बाहरी दिखावे से प्रसन्न नहीं होता है, बल्कि आत्मिक जीवन से प्रसन्न होता है। तो चलिए आज हम यह प्रश्न खुद से पूछें कि क्या मैं यीशु मसीह का चेला हुं? यदि नहीं तो कौन सी ऐसी बात कि कमी है, कि आप और हम यीशु के चेला नहीं बन सकते हैं।

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क्या आप यीशु मसीह का चेला हैं।

निसंदेह मसीह लोग तो कहेंगे कि मैं यीशु मसीह का चेला हुं। पर क्या आप प्रभु यीशु मसीह के दृष्टी से चेला बनने के योग्य हैं। क्योंकि ( मत्ती 10:37) की वचन यह कहता है कि जो लोग अपने माता पिता, बेटा बेटी अर्थात अपने परिवार को यीशु मसीह से ज्यादा प्रिय मानते हैं, या प्रेम करते हैं, वे यीशु मसीह का चेला बनने के योग्य नहीं हैं।

और (लूका 14:26-27) की कनेक्टश समझने कि कोशिश किजिए, क्योंकि उसमें इस प्रकार लिखा है, कि यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता और माता और पत्नी और लड़के बालों और भाइयों और बहिनों बरन अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता। और जो कोई अपना क्रूस न उठाए; और मेरे पीछे न आए; वह भी मेरा चेला नहीं हो सकता।अर्थात जो यीशु मसीह का चेला बनना चाहता है, उसे सांसारिक जीवन से अपने आप को अलग रखना चाहिए। आम तौर पर देखा जाए तो लोगों के नजरों से यीशु मसीह का चेला बनना आसान है, पर प्रभु यीशु के दृष्टी से चेला बनना बहुत कठिन है।

क्या यीशु मसीह के चेलों को क्रुस उठाना चाहिए?

जी हां: यह मैं नहीं, बल्कि यीशु मसीह खुद कहा है। क्योंकि ( मत्ती 10:38 ) में प्रभु यीशु कहते हैं “और जो अपना क्रूस लेकर मेरे पीछे न चले वह मेरे योग्य नहीं है।” इसलिए जो कोई भी यीशु मसीह का चेला बनना चाहता है, उसे अपनी क्रुस उठा कर प्रभु यीशु मसीह के पिछे पिछे चलना होगा। क्योंकि बिना क्रुस उठा के प्रभु यीशु मसीह का चेला बनना आसान नहीं है। बाइबल की इस वचन से प्रभु अपने लोगों को, पास्टर, सेवक और कलीसिया को हमेशा अपनी क्रुस उठा कर चलने को कहते हैं।

यीशु मसीह का चेला
यीशु मसीह का चेला

क्रुस क्या है

क्रुस का मतलब तत्कालीन रोमन साम्राज्य के अनुसार दोषियों को दंड देने की एक औजार था और प्रभु यीशु मसीह को भी इसी प्रकार क्रुस में चढ़ाया गया था। अर्थात क्रुस का मतलब मृत्यु है। क्योंकि प्रभु यीशु मृत्यु पर जय पाएं हैं, और उनके चेलों को भी यह सामर्थ्य देते हैं कि वे भी मृत्यु पर जय प्राप्त करें। इसलिए प्रभु यीशु मसीह का चेला बनने वाले लोगों को प्रभु यीशु की शिक्षाओं को अच्छी तरह से समझना चाहिए, और अपने क्रुस को उठा कर प्रभु यीशु के पिछे पिछे चलना चाहिए।

क्रुस उठाने का मतलब क्या है

वचन में आपने सुना की प्रभु यीशु मसीह लोगों को क्रुस उठा कर अपने पीछे चलने को कहते हैं। क्रुस को उठाना मतलब अपनी मृत्यु को अपने साथ लेकर चलना। अर्थात जो यीशु मसीह का चेला बनता है, वह संसार के लिए मर चुका व्यक्ति है और यीशु मसीह के लिए जीवित है। और जो व्यक्ति मर जाता है, वह पाप नहीं करता है। इसलिए प्रभु यीशु की शिक्षा के अनुसार, यदि सच्चाई से कोई अपना क्रुस उठा कर मसीह का चेला बनता है। तो वह पाप नहीं करता है, और जो लोग पाप नहीं करते हैं, सही मायने में वही लोग यीशु मसीह का चेला हैं।

निष्कर्ष

1. एक शिष्य को उस व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, जो स्वर्ग के राज्य में शामिल हो सकता है। हम जानते हैं कि ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्होंने शिष्य होने का दावा किया है, लेकिन हम वास्तव में नहीं जानते कि क्या वे वास्तव में यीशु मसीह के हैं, या यीशु मसीह की शिक्षा के अनुसार चलते हैं। जब बाइबल एक शिष्य के बारे में बात करती है तो वह एक भिन्न प्रकार के व्यक्ति का वर्णन करती है। यीशु मसीह का जीवन शैली इसका एक आदर्श उदाहरण है। उसने हमें वह सब कुछ दिया जो हमें उसका अनुसरण करने के लिए आवश्यक है।

2. शिष्य के 3 गुण होते हैं। ) पहली विशेषता यह है कि वह स्वयं का इनकार करने, अपना क्रूस उठाने और यीशु के पीछे चलने को तैयार है। इसका अर्थ है कि वह यीशु के लिए सब कुछ छोड़ देगा, यहाँ तक कि अपनी व्यक्तिगत इच्छाएँ भी। ) एक शिष्य की दूसरी विशेषता यह है कि वह जहां कहीं भी रहे वह निष्पाप हो कर, यीशु का अनुसरण करते रहना है। और तीसरी विशेषता यह है कि वह स्वयं यीशु मसीह की शिक्षाओं का पालन अक्षरशः करे और दुसरो को भी अच्छी रीति से इसका पालन करना सिखाएं। दोस्तों यदि आपको वचन अच्छा लगा हो तो कमेंट जरुर किजिएगा। धन्यवाद।।

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