मुझे आशीष कैसे मिलेगा? बाइबल की दृष्टिकोण से blessing की खोज

दोस्तों संसार में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं होगा जो अपने घर के, परिवार के और खुद के लिए, आशीष की कामना नहीं करता होगा। क्योंकि सब लोग आशीष पाकर खुशी के साथ और शांति से जीवन जीना चाहते हैं। क्योंकि मैं, आप और दुनिया में रहने वाले कोई भी इंसान बेवजह श्रापित होना नहीं चाहेंगे। पर आज का सवाल यह है कि मुझे आशीष कैसे मिलेगा? तो चलिए आज हम, इस विषय की शिक्षा पर एक नजर डालते हैं।

इधर उधर की बात करने से अच्छा हमे मुद्दे की बात करना चाहिए। क्योंकि जब सवाल ही यह है, कि मुझे आशीष कैसे मिलेगा? तो क्यों हम बात को बेवजह इधर उधर घुमा कर बोलेंगे। तो चलिए आज हम इसे बाइबल की दृष्टिकोण से समझने की कोशिश करते हैं।

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बाइबल की दृष्टिकोण से आशीष कौन पा सकता है?

देखिए, मनुष्य अर्थात आप खुद की कल्पना करके देखिए, क्योंकि अगर मैं सत्य कहुं तो, आप का जन्म किसी माता-पिता से ही हुआ है। और जिस परिवार से भी आप का जन्म हुआ है। उस परिवार में, उस गांव में या आसपास के लोगों के द्वारा, आपको बहुत प्यार मिला होगा। परन्तु जैसे जैसे उम्र बढ़ता गया, आपके स्वभाव में भी परिवर्तन होता आया होगा। हों सकता है, आप कुछ लोगों का मित्र और कुछ लोगों के शत्रु बन गये होंगे। इसका प्रमुख कारण गलत संगति, अच्छी शिक्षा का अभाव और अपनी आत्मिक, सामाजिक, अर्थ नैतिक, तथा दैनिक जीवन कर्म में गलत चुनाव की वजह से हो सकता है।

मेरा कहने का मतलब यदि किसी को आशीष चाहिए, तो सबसे पहले उस व्यक्ति की शिक्षा अच्छी होनी चाहिए। अर्थात उस व्यक्ति की शिक्षा में अच्छे और बुरे की पहचान करने की क्षमता होनी चाहिए। इसके बाद उस व्यक्ति की संगति अर्थात मित्रता बुराई के साथ न हो कर अच्छाई और सच्चाई के साथ होना चाहिए। ( अर्थात यूहन्ना 3:20-21 ) की वचन कहता है, कि बुराई करने वाले ज्योति अर्थात ईश्वर से बैर करते हैं, और सच्चाई पर चलने वाले लोग ईश्वर के निकट आते हैं। इसका मतलब बुराई करेंगे तो आशीष से हाथ धो बैठेंगे, और सच्चाई पर अर्थात ईश्वर की इच्छा के अनुसार चलेंगे तो आशीष मिलना तय है।

तीसरी बात एक व्यक्ति की आशीष अपनी दैनिक जीवन की कर्म और भविष्य के लिए ली जाने वाली निर्णय पर छिपा है। अर्थात ( सभोपदेशक 2:26 ) की वचन कहता है, जो मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में अच्छा है, उसको वह बुद्धि, ज्ञान और आनन्द देता है। परन्तु पापी को वह ऐसा दु:खभरा काम देता है, कि वह जिस धन को संचय कर के ढेर लगाता है, वह अपने लिए नहीं, बल्कि दूसरों के लिए ही होता है। अर्थात यदि आपका कर्म और परिश्रम सत्य के अनुसार मतलब ईश्वर की इच्छा के अनुसार हो तो आशीष मिल सकता है।

आप बुद्धिमान और समझदार व्यक्ति हो कर भी यदि पाप करने की गलती करते हैं, तो आपके लिए यह एक बहुत ही विडम्बना की बात हो सकती है। इसलिए पाप करने से पहले, जरा आगे पीछे सोच कर देखिएगा। नहीं तो बेवजह गुनाह के दल-दल फंस कर परमेश्वर तथा समाज का विरोधी बन सकते हैं। इसलिए हमेशा पाप से बचने की कोशिश करें और परमेश्वर की कृपा कि अभिलाषा करते रहें।

मुझे आशीष कैसे मिलेगा?

क्या परमेश्वर के पास आने से आशीष मिलता है?

देखिए लोग परमेश्वर के पास आए बिना, प्रार्थना किए बिना, संसारिक विषय पर तन, मन और धन लगा कर शान्ति से रहना चाहते हैं, पर ऐसा नहीं होता है। उसके लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। पर परमेश्वर के बिना सब कुछ बेकार है। क्योंकि ( यशायाह 55:2 ) की वचन कहता है,

“जो भोजनवस्तु नहीं है, उसके लिये तुम क्यों रूपया लगाते हो, और, जिस से पेट नहीं भरता उसके लिये क्यों परिश्रम करते हो? मेरी ओर मन लगाकर सुनो, तब उत्तम वस्तुएं खाने पाओगे और चिकनी चिकनी वस्तुएं खाकर सन्तुष्ट हो जाओगे।”

अर्थात परमेश्वर की वचन को सुने और उसकी आज्ञाओं को मानकर चलेंगे तो आशीष कभी नहीं रूकेगी। और यदि परमेश्वर को नजरंदाज करते हुए, संसारिक विषय पर मन लगाते हैं, तो भी आशीष नहीं मिल सकती है। इसलिए आशीष पाने का मूल कारण को समझने की कोशिश करें जो परमेश्वर की ओर से आता है। इसलिए आपको हर समय में, हर चीज में और हर प्रकार के विषय में परमेश्वर को प्रथम स्थान देना अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि आशीष लोगों के हाथ में नहीं है! बल्कि परमेश्वर की ओर से आता है। क्योंकि यदि इसे रुपयों से खरीदा जा सकता, तो हर कोई इसे खरीद के अपने पास रख लेता।

क्योंकि ( प्रेरितों के काम 8:9-26 ) में लिखा हुआ वचन के अनुसार शमौन नाम का एक व्यक्ति था, जो जादू टोना करता था। वहां के लोग उसे परमेश्वर की शक्ति समझते थे। पर प्रेरितों के आने के बाद जब पतरस ने लोगों के ऊपर हाथ रखा, तो पवित्र आत्मा का दान अर्थात आशीष मिलने लगा, यह देखकर शमौन ने पतरस को रूपए दे कर उस आशीष को खरीदना चाहा। इस वचन के माध्यम से मैं यह कहना चाहता हूं कि परमेश्वर का आशीष दान, वरदान खरीदे नहीं जाते। बल्कि सच्चाई और ईमानदार तथा धार्मिकता से चलने वाले लोगों को परमेश्वर कृपा प्रदान करते हैं।

इसलिए लोगों को समय के अनुसार चलने की आदत बना लेना चाहिए। क्योंकि दिन वो दिन मनुष्य जाति के उत्तर अनेक प्रकार की समस्या, बिमारी, महामारी का प्रभाव देखने को मिल रहा है। इसलिए पाप की प्रदुषण से खुद को अलग रख कर परमेश्वर के इच्छा के मुताबिक जीवन जीना चाहिए। जिससे हम लोग परमेश्वर के स्राप से बच सकते हैं। क्योंकि यदि हम मनुष्य पाप को छोड़ते हुए जीवन जीते हैं, तो निश्चित रूप से परमेश्वर का कृपा प्राप्त कर सकते हैं।पर यदि हम मनुष्य परमेश्वर की मार्ग पर चलने की अनिच्छा प्रकट करते हैं, तो समझ लीजिए, परमेश्वर और उसकी कृपा से बहुत दूर हो गए हैं।

निष्कर्ष

इसलिए यदि आप आशीष पाना चाहते हैं, तो सबसे पहले परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक जीवन जीना प्रारंभ करें। क्योंकि परमेश्वर ही आशीष का कर्ताधर्ता है। उसके बिना मनुष्य को कुछ भी नहीं मिल सकता है। क्योंकि ( यूहन्ना 3:27 ) की वचन भी कहता है, कि जब तक मनुष्य को स्वर्ग से न दिया जाए तब तक वह कुछ भी नहीं पा सकता। इसलिए परमेश्वर पर मन लगाएं, पाप को छोड़े संसारिक नहीं! बल्कि आत्मिक जीवन जिएं। हो सकता है, परमेश्वर की कृपा दृष्टि आप पर पड़े, और प्रभु की ओर से आपको आशीष मिल जाए। मैं उम्मीद करता हूं, कि इस बात को आप अच्छी तरह समझ गए होंगे। धन्यवाद।।

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