दोस्तों आज हम bible vachan में भजन संहिता 2 पर चर्चा करेंगे। क्योंकि भजन संहिता मनुष्य का दैनिक जीवन से लेकर भविष्य की जीवन के बारे में भी शिक्षा प्रदान करती है। इस अध्याय खास करके मनुष्य को परमेश्वर की विरोधी बन कर फिजूल की सोच विचार से दूर रहने की आगाह करती है। यदि भजन संहिता 2 के बारे में जानना चाहते हैं, तो अन्त तक इस अध्ययन को जरुर देखें। तो चलिए आज हम इसे शुरू करते हैं।
भजन संहिता 2 :1
जाति जाति के लोग क्यों हुल्लड़ मचाते हैं, और देश देश के लोग व्यर्थ बातें क्यों सोच रहे हैं?”
देखिए, जो लोग सत्य को, अर्थात परमेश्वर को नहीं जानते हैं। खासकर उन लोग संसारिक जीवन गुजारते हुए, दुनियादारी के जंजाल में उलझ कर फिजूल की बातों पर मन लगाते हैं। यदि कोई भी मनुष्य सत्य को दरकिनार करते हुए जीवन जीता है, अर्थात व्यर्थ बातें, व्यर्थ चिंता और व्यर्थ कर्म करता है, तो समझ लीजिए, कि उस व्यक्ति सत्य के मार्ग से भटक चुका है। उसे सत्य को पहचानने की आवश्यकता है। क्योंकि सत्य का कोई विकल्प नहीं होता, पर सत्य सत्य ही होता है। सत्य को न छुपाया जा सकता है, न दबाया जा सकता है, न ही रोका जा सकता है। क्योंकि सत्य ही परमेश्वर है।
भजन संहिता 2 :2-3
( भजन संहिता 2 :2-3 ) की वचन कहता है, कि“यहोवा के और उसके अभिषिक्त के विरूद्ध पृथ्वी के राजा मिलकर, और हाकिम आपस में सम्मति करके कहते हैं, कि आओ, हम उनके बन्धन तोड़ डालें, और उनकी रस्सियों अपने ऊपर से उतार फेंके।
दोस्तों परमेश्वर का एक कानून होता है, और वह सब लोगों के उपर लागु होता है। खासकर जो लोग पाप में जीवन जीते हैं, संसारिक जीवन जीते हैं, उन लोगों को परमेश्वर का नियम मानने में तकलीफ होती है। इसलिए वचन के अनुसार, संसार के अध्यक्ष, नेता, अधिकारी लोग परमेश्वर की आज्ञाओं को मानना नहीं चाहते हैं। परमेश्वर की आज्ञाओं के बंधन में रहना नहीं चाहते हैं। आप लोगों ने प्रभु के दास, सेवक, पास्टर और विश्वासी लोगों को सताने की घटना के बारे में देखे और सुने भी होंगें। पर प्रभु के दास, सेवक, और पास्टर लोगों का काम लड़ना झगड़ना नहीं है।
बल्कि वे सुसमाचार प्रचार करके ( मरकुस 16:15 ) की वचन के अनुसार प्रभु यीशु का आदेश का पालन करते हैं। सुसमाचार के प्रचार में भी यही प्रचार होता है, कि पाप मत करना, सत्य पर चलना, किसी का अन्याय अत्याचार ना करना, बुराई से खुद को दूर रखना इत्यादि इत्यादि। पर विरोध करने वाले लोगों को यह भी नहीं पता कि वे क्यों विरोध करते हैं। यदि बुराई का विरोध किया जाए तो यह उचित हो सकता है। पर सच्चाई और अच्छाई का विरोध करना तो सरासर गलत है। क्योंकि ( भजन संहिता 2 :4 ) की वचन प्रभु के विरोधियों को यह कहता है,
भजन संहिता 2 :4
अर्थात वचन कहता है, कि जो लोग प्रभु के दास, सेवक, पाष्टरों का विरोध करते हैं। उन पर परमेश्वर हंसता है, क्योंकि विरोधियों को पता नहीं कि किसके खिलाफ विरोध करते हैं। यदि एक मनुष्य मनुष्य के खिलाफ विरोध करे तो चल सकता है। पर जरा सोचिए यदि कोई परमेश्वर का विरोधी हो तो क्या होगा।
देखिए यदि कोई व्यक्ति पाप, गुनाह, झगड़ा, अन्याय अत्याचार में लिप्त रहता है, उसे कुछ हासिल नहीं होता है। पर उसके जीवन में, उसके आत्मा में, उसके मन में अशांति उत्पन्न होता है। क्योंकि यदि किसी को परमेश्वर के विरोधी होने के कारण, या तो फिर पाप गुनाह करने के कारण जीवन में अशांति, संकट और बिमारी उत्पन्न होता है। तो क्या उन्हें संसारिक चीजें शान्ति या चैन नहीं दे सकती है। कभी नहीं।
( गिनती 6:22-27 ) की वचन में लिखा है, कि यहोवा परमेश्वर ने मूसा से लोगों को आशीर्वाद देते समय, यह कहा था, यहोवा परमेश्वर तुझे आशीर्वाद दे। यह वचन परमेश्वर के दास, सेवक और सभी पास्टरों पर लागू होता है। क्योंकि वे भी परमेश्वर का नाम लेकर, यीशु का नाम लेकर लोगों को आशीर्वाद दे सकते हैं।
जिससे परमेश्वर लोगों के ऊपर अपना मुख का प्रकाश चमका कर अनुग्रह प्रदान करेगा। परमेश्वर अपना मुख लोगों के ऊपर करें और लोगों के जीवन में शांति और खुशियां मिले। पर यदि कोई शांति देने वाले का विरोध करता है। शांति देने वाले का विरोधी बन जाता है। तो परमेश्वर अपना मुख का प्रकाश को रोक देता है, जिससे आशीष के बदले में स्राप मिलता है। इसलिए ( भजन संहिता 2 :5 ) की वचन कहता है,
भजन संहिता 2 :5
“तब वह उन से क्रोध करके बातें करेगा, और क्रोध में कहकर उन्हें घबरा देगा, कि”
इसलिए मैं नादान और नासमझ परमेश्वर के विरोधियों से यह कहना चाहता हूं, कि यदि आप भूत प्रेत, संकट, बीमारी को डरते हैं, पर यदि परमेश्वर को न डर कर उसका विरोधी बन रहे हैं। तो समझ लीजिए कि परमेश्वर सब का बाप है। क्योंकि ( याकूब 2:19 ) की वचन कहता है, कि मनुष्य की तरह दुष्टात्मा भी परमेश्वर पर विश्वास रखते, और थरथराते हैं। तो मिट्टी के मनुष्य क्या चिज़ है, जो परमेश्वर को चुनौती दे सकती है। ( भजन संहिता 2 :6 ) की वचन कहता है,
भजन संहिता 2 :6
मैं तो अपने ठहराए हुए राजा को अपने पवित्र पर्वत सिय्योन की राजगद्दी पर बैठा चुका हूं।
परमेश्वर ने अपने पवित्र लोगों को दास, सेवक और पास्टरों को अपना पवित्र नाम की प्रचार और प्रसंसा के लिए, चुन लिया है। परमेश्वर मनुष्य से धन दौलत नहीं चाहता है, बल्कि शुद्ध और पवित्र मन चाहता है। निष्कलंकन निष्पाप मन को ढूंढता है। परमेश्वर मनुष्यों से यह नहीं कहता कि मुझे आज यह दे दो मुझे आज वह दे दो। वह लेने वाला परमेश्वर नहीं! बल्कि देने वाला परमेश्वर है।
भजन संहिता 2 :7
मैं उस वचन का प्रचार करूंगा: जो यहोवा ने मुझ से कहा, तू मेरा पुत्र है, आज तू मुझ से उत्पन्न हुआ।
परमेश्वर ने अपने दास, सेवक और पास्टरों को इसलिए चुनता है, कि वे सुसमाचार का प्रचार करें, अर्थात सत्य के मार्ग में चलने के लिए, लोगों को शिक्षा दें। पाप और अपराधिक कार्यकलाप, तथा कुकर्म को छोड़कर प्रभु की ओर लौट आने की राह दिखाएं। मेल मिलाप से जीवन जिए। सबसे पहले प्रभु यीशु ने सुसमाचार का प्रचार किया था।
क्योंकि पिता परमेश्वर से उत्पन्न होने वाला वही एकलौता पुत्र है। क्योंकि ( मत्ती 3:17 ) और ( मत्ती 17:5 ) की वचन में परमेश्वर ने आकाशवाणी के द्वारा प्रभु यीशु को अपने पुत्र होने का प्रमाण दिया था। फिर ( रोमियो 8:14 ) की वचन कहता है, कि जो लोग आत्मा के चलाए चलते हैं। अर्थात पाप से दूर रहकर परमेश्वर के आज्ञाओं को मानकर सत्य के मार्ग में चलते हैं, वे परमेश्वर के पुत्र पुत्रियां बन जाते हैं।
भजन संहिता 2 :8-9
मुझ से मांग, और मैं जाति जाति के लोगों को तेरी सम्पत्ति होने के लिये, और दूर दूर के देशों को तेरी निज भूमि बनने के लिये दे दूंगा। तू उन्हें लोहे के डण्डे से टुकड़े टुकड़े करेगा। तू कुम्हार के बर्तन की नाईं उन्हें चकना चूर कर डालेगा।
परमेश्वर लोगों को कहते हैं, कि मांगो। लोग मांगते भी हैं, पर उन्हें मिलता नहीं! क्योंकि लोग पाप को छोड़ना नहीं चाहते हैं। लोग परमेश्वर की आशीष मन से नहीं: बल्कि मुंह से लेना चाहते हैं। इसलिए मांगने पर भी नहीं मिलता है। क्योंकि लोगों का मन परमेश्वर पर नहीं, बल्कि पाप पर लगा रहता है। पर यदि कोई प्रभु की इच्छा के अनुसार जीवन जीते हुए, प्रार्थनाओं में मांगता है, तो परमेश्वर निश्चित रूप से उन्हें प्रदान करते हैं। इसलिए ( भजन संहिता 2 :10-11 ) की वचन कहता है,
भजन संहिता 2 :10-11
अब, हे राजाओं, बुद्धिमान बनो; हे पृथ्वी के न्यायियों, यह उपदेश ग्रहण करो। डरते हुए यहोवा की उपासना करो, और कांपते हुए मगन हो।
अर्थात परमेश्वर का वचन पृथ्वी के नेता, अधिकारी और न्याय कर्ताओं से यह कहता है, मुर्खता से नहीं! बल्कि बुद्धिमानी से प्रभु की उपदेश और सुसमाचार को ग्रहण करो। प्रभु की आज्ञाओं को मानकर सत्य के मार्ग पर चलते रहो। क्योंकि पाप और अन्याय पर चलने वाले लोगों के जीवन में आनंद अल्पकालीन रहता है। परंतु बाद में उनके जीवन में कांटे चुभने लगते हैं। इसलिए परमेश्वर की मार्ग को चुने, पाप को छोड़े और परमेश्वर को पकड़े। क्योंकि ( भजन संहिता 2 :12 ) की वचन कहता है,
भजन संहिता 2 :12
पुत्र को चूमो ऐसा न हो कि वह क्रोध करे, और तुम मार्ग ही में नाश हो जाओ; क्योंकि क्षण भर में उसका क्रोध भड़कने को है। धन्य हैं वे जिनका भरोसा उस पर है।
परमेश्वर चाहते हैं कि लोग संसार में जीते हुए, जीवन के मार्ग में प्रभु यीशु की शिक्षा के अनुसार चलते रहें। यहां पर पुत्र को चूमने का मतलब प्रभु यीशु की आज्ञा और शिक्षाओं को मानकर चलने को समझ सकते हैं। क्योंकि ( यूहन्ना 3:36 ) की वचन में प्रभु यीशु यह कहते हैं, “जो पुत्र पर विश्वास करता है, अनन्त जीवन उसका है; परन्तु जो पुत्र की नहीं मानता, वह जीवन को नहीं देखेगा, परन्तु परमेश्वर का क्रोध उस पर रहता है। अर्थात ओ लोग पापों को छोड़कर प्रभु यीशु पर विश्वास करते हुए, जीवन जीते हैं, वे परमेश्वर के क्रोध से बच सकते हैं। क्योंकि बड़े से बड़े साम्राज्य के पतन कारण भी पाप ही के चलते होता है।
निष्कर्ष
दोस्तों हम उम्मीद करते हैं, कि भजन संहिता 2 अध्याय की वचन आपको समझ में आ गया होगा। क्योंकि जो कोई परमेश्वर और उसके चुने हुए लोगों के खिलाफ जाकर अन्याय, अत्याचार, उपद्रव और पाप करता है, तो उसके जीवन में परमेश्वर का स्राप के कारण जीवन में संकट, बिमारी और अशांति आ जता है। जैसे लोगों को अच्छे कामों के लिए, प्रशंसा और बुरे कर्मों के लिए दंड मिलता है। परमेश्वर के राज्य में भी वैसे ही है। इसलिए लोगों की शिक्षा को नहीं: बल्कि परमेश्वर की शिक्षा और आज्ञाओं को प्राथमिकता देना चाहिए। धन्यवाद।।