प्रभु की प्रार्थना | Yeshu ki prathna

प्रभु की प्रार्थना मनुष्य की जीवन के लिए सही दिशा निर्देश करने में सक्षम होता है। प्रार्थना टूटे हुए मन को भी प्रभाव डाल कर शांति प्रदान करता है। चाहे कोई किसी भी प्रकार की परिस्थितियों में क्यों न हो, प्रभु की प्रार्थना मनुष्य के जीवन को शांति देने में शत प्रतिशत सक्षम है। दुनिया में लोग जाने अंजाने से तरह तरह और विभिन्न प्रकार से प्रार्थनाएं करते हैं।

पर बाइबिल में प्रभु यीशु लोगों को एक अनोखी प्रार्थना करना सिखाए हैं, इसे बहुत लोग भी जानते हैं। फिर भी इस प्रार्थना के वचन पर जरा गौर फरमाइएगा। क्योंकि यह मनुष्य की नहीं परमेश्वर की ओर से हमें दी गई है। तो चलिए आज हम इसी विषय पर बात करते हैं।

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प्रभु की प्रार्थना का रहस्य

देखिए जी जरा प्रभु की प्रार्थना को समझने की जरूरत है। पर मैं लोगों को एक बात बता देना चाहता हूं कि वे चाहे तो अपने मनमर्जी से किसी भी प्रकार की प्रार्थनाएं प्रभु परमेश्वर को कर सकते हैं। पर जैसे हम जब भी कोई जगह पर जाते हैं, तो उस जगह के मुख्य स्थान से होकर गुजरना अनिवार्य होता है। वैसे ही प्रभु की प्रार्थना करते वक्त खासकर लोगों को, प्रभु यीशु की ओर से दी गई प्रार्थना को करना जरूरी है।

जैसे कि उसने (मत्ती 6:9-13) की वचन में हमें सिखाया है। यह प्रभु यीशु की ओर से मनुष्य को दी जाने वाली ओरिजिनल प्रार्थना है। बाकी लोग जो भी प्रार्थनाएं करते हैं वह अपने मन मुताबिक और बनावटी के अनुसार होता है।

यही प्रभु की प्रार्थना के जरिए से, स्वर्ग के परमेश्वर के पास आसानी से पहुंचने के लिए, प्रभु यीशु: की थी हुई प्रार्थना, मनुष्य और परमेश्वर के बीच की दुरियां कि बहुत बड़ा रहस्य को उजागर करता है। इसलिए मनुष्य को अदृश्य परमेश्वर के पहुंचने की इस अमूल्य प्रार्थना को जरूर जानना चाहीए। रहस्य की बात यह है, कि अनजान चिज़ो के बारे में जानने के लिए लोग रात दिन एक कर देते हैं, और अदृश्य परमेश्वर को जानना इससे भी बड़ी रहस्य है।

एक बात मैं लोगों को यह कहना चाहता हूं, कि बेमतलब की चिज़ फिल्म, सिरीयल, और तरह तरह की वीडियो लोग आख़री तक देखते हैं, पर परमेश्वर के वचन के प्रति मन नहीं लगाते हैं। तो बताइए लोगों के लिए इससे बड़ी दुर्भाग्य और क्या हो सकती है। भई आग के साथ खेलोगे और जले तो डॉक्टर को ढून्ढोगे। कहने का मतलब पाप बुराई करोगे फिर समस्या आने पर परमेश्वर को ढूंढने लगोगे। वाह भाई वाह। यह मनुष्य का अद्भुत जीवन शैली है।

प्रार्थना का अर्थ

लोग जब भी प्रभु की प्रार्थना करते हैं, तो उन्हें यह भी मालूम नहीं रहता है, कि प्रभु से कैसे प्रार्थना करना उचित है। क्योंकि यदि लोगों को यह पता होता तो शायद वे (मत्ती 6:9-13) में लिखा हुआ प्रभु की प्रार्थना पर जरूर ध्यान देने लगते। क्योंकि संसार के गुरुओं और आसमान के प्रभु की ओर से मिलने वाली प्रार्थनाओं में बहुत बड़ा अंतर होता है। इसलिए मुझे उम्मीद है कि, प्रभु की यह प्रार्थना करने के पश्चात लोगों को और दूसरी प्रार्थना की जरूरत नहीं पड़ेगी। क्योंकि प्रभु की प्रार्थना में इस प्रकार लिखा है,

“हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो। हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे। और जिस प्रकार हम ने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर। और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा; क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही हैं।” आमीन।

प्रभु की प्रार्थना
प्रभु की प्रार्थना

देखिए इसमें सबसे पहले परमेश्वर की स्तुति और महिमा करने को दर्शाता है। क्योंकि परमेश्वर वाकई में महिमा पाने के योग्य हैं। इसलिए सभी मनुष्य को सच्चाई और ईमानदारी के साथ जीवन जीते हुए, पाप को छोड़कर परमेश्वर की महिमा करते रहना चाहिए।

दुसरी बात प्रभु यीशु इस प्रार्थना में लोगों की आवश्यकताओं, को जीवन शैली और सुरक्षा को परमेश्वर के निकट सुनिश्चित करना चाहते हैं। क्योंकि (याकुब 4:14) की वचन कहता है, कि मनुष्य का जीवन भाप के बराबर है, अभी है तो थोड़े देर के बाद नहीं। इसलिए सबसे बड़ी बात यह है, कि यदि मनुष्य परमेश्वर की शिक्षा के अनुसार चलकर प्रभु की प्रार्थना को करता है तो, निश्चित तौर पर वह प्रभु के कृपा पात्र हो कर आशीष के अधिकारी जरुर बन सकता है।

पर नासमझ मनुष्य को कौन समझा सकता है। क्योंकि यदि कोई बुराई करता है, तो उसे प्रभु से आशीष पाना नामुमकिन है। खैर यदि लोग अपने किए हुए, पाप के लिए पश्चाताप करने के साथ साथ पाप को छोड़कर नियमित रूप से प्रभु की प्रार्थना करते हैं तो, उन्हें इसका फल अवश्य जरूर मिलेगा। पर मनुष्य पर भी यह निर्भर करता है, कि उसे क्या चाहिए।

यदि कोई परमेश्वर पर भरोसा करता है, तो वह जरूर आज्ञाओं को मानकर प्रार्थना करते हुए, जीवन जीना पसंद करेगा। अन्यथा दुनियादारी में उलझकर परमेश्वर से बहुत दूर चला जाएगा। और वास्तविक में इस संसार में सांसारिक जीवन जीने वाले लोग बहुत हैं। पर मनुष्य को सांसारिक जीवन और प्रार्थना मय या आत्मिक जीवन दोनों में से एक को चुनना होगा। क्योंकि जिस तरह दो नाव में एक साथ सफर नहीं की जा सकती है। वैसे ही पाप और धार्मिक जीवन एक साथ जी कर परमेश्वर को प्रसन्न करना असम्भव है। इसलिए अच्छी प्रार्थना जिसे आपको प्रभु की ओर से मिला है, इस पर जरुर ध्यान देना चाहिए।

निष्कर्ष

पर दोस्तों आप किस प्रकार जीवन जीना चाहते हैं, प्रभु की प्रार्थना करते हुए, जिसे प्रभु यीशु ने सिखाया है, या मनगढ़ंत प्रार्थना जिसे मनुष्य ने बनाया है। हम किसी भी प्रकार की प्रार्थनाओं के खिलाफ नहीं हैं।

परन्तु इस पर विचार विमर्श करते हुए, निर्णय आपको लेना है, कि परमेश्वर मनुष्य की बनाई हुई प्रार्थना को जल्दी सुनेंगे या आसमान के ख़ुदा प्रभु यीशु की सिखाईं हुईं प्रार्थना को। दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं, कि आज आप इस विषय को अच्छी तरह से समझ गए होंगे। प्रभु के वचन के प्रति मूल्यवान समय देने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद।। परमेश्वर आपको आशीष प्रदान करें। धन्यवाद।।

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