आज हम बाइबल की वचन के माध्यम से मनुष्य के लिए परमेश्वर की शर्तें को बताना चाहते हैं। God’s Terms and conditions for Man. ऐसा नहीं है कि मनुष्य को परमेश्वर ने कुछ नहीं दिया? आपकी जानकारी के लिए मैं यह बता देना चाहता हूं, कि परमेश्वर ने मनुष्य के जीवन का सम्पूर्ण कंट्रोल, मनुष्य के हाथ में ही दे दिया है। पर मनुष्य के लिए एक शर्त रख दिया है। शर्त भी इतनी बड़ी और कष्ट दायक नहीं है, कि मनुष्य को उस शर्तों का पालन करने में कोई समस्या उत्पन्न हो। क्योंकि मनुष्य के लिए परमेश्वर की शर्तें यह है कि, तुम लोग पाप कभी न करना।
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प्रथम मनुष्य आदम के लिए परमेश्वर की शर्तें
मनुष्य के लिए परमेश्वर की शर्तें की मानें तो, जब तक मनुष्य पाप नहीं करता है। तब तक उस मनुष्य के साथ परमेश्वर खड़ा रहता है। जैसे कि प्रथम मनुष्य आदम के साथ हुआ था। परमेश्वर ने प्रथम मनुष्य आदम को, उत्पत्ति 1 अध्याय 26 से 28 की वचन के अनुसार, अपने स्वरूप में बना कर, पृथ्वी और समुद्र तथा आकाश में उड़ने वाले जीव जंतु, मछली, पशु पक्षी, वृक्ष लता सभी के ऊपर सारे अधिकार दे दिए थे।
परंतु उस अधिकार को मनुष्य, अपने पास ज्यादा दिन तक रखने में असफल रहा। पर एक सवाल है, क्यों कर मनुष्य, परमेश्वर की ओर से दिया गया अधिकार को अपने पास, ज्यादा दिन तक रखने में असफल रहा? यह तो सबको पता है, कि उत्पत्ति 2 अध्याय 16 और 17 की वचन में, परमेश्वर ने आदम को कहा था, की वाटिका की सारी वृक्ष का फल तुम खा सकते हो।
पर भले या बुरे के ज्ञानवृक्ष का फल कभी न खाना, नहीं तो तुम मर जाओगे। यहां पर लोगों के मन में बहुत बड़ी सवाल आ सकता है? और वह यह है, कि भाई, परमेश्वर तो सर्ब ज्ञानी हैं, वह वर्तमान और भविष्य सब कुछ जानते हैं। तो आदम क्या करने वाला है यह बात भी परमेश्वर को मालूम था। फिर भी उसने क्यों, आदम के सामने भले या बुरे के ज्ञान की वृक्ष का फल न खाने का शर्त रखा था?
परमेश्वर यह भी तो कर सकता था, की आदम और हव्वा भले या बुरे के ज्ञानवृक्ष के फल खाकर, पाप न करें, इसलिए उनके खाने पीने की बंदोबस्त, स्वर्ग दूतों के हाथों में भी दे सकता था। पर उसने ऐसा क्यों नहीं किया, क्या इसे आप जानते हैं? निश्चित रूप से यदि परमेश्वर चाहता तो अदन की वाटिका में भले या बुरे के ज्ञान की वृक्ष ही नहीं लगाता। पर दोस्तों, परमेश्वर ने मनुष्य को ऐरा गैरा नहीं बनाया है।
बाइबल के अनुसार देखें तो उत्पत्ति 1 अध्याय 26 की वचन और उत्पत्ति 2 अध्याय 7 का वचन में परमेश्वर मनुष्य को किस प्रकार बनाया था उसका उल्लेख है। उत्पत्ति 1 अध्याय 26 की वचन में परमेश्वर कहते हैं परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप और अपनी समानता में बनाया है। यहां पर अपने स्वरूप और अपनी समानता के रूप में दो बातें स्पष्ट दिखाई दे रही है। पहली बात: क्या आप अपने को परमेश्वर के स्वरूप बनने का मतलब जानते हैं।
जरा सोचिए, आपका बच्चा अर्थात मनुष्य का बच्चा, पैदा होने के बाद कैसा दिखता है? मनुष्य की तरह ही दिखता है, है कि नहीं! अपने स्वरूप में बनाने का अर्थ यह है, कि परमेश्वर भी हमारी तरह ही दिखाई देता है। दूसरी बात: परमेश्वर ने मनुष्य को अपनी समानता में बनाया है। अर्थात परमेश्वर जो काम करता है, आप भी हुबहू वैसा ही काम कर सकते हैं। पर दोस्तों, मनुष्य के सामने परमेश्वर की शर्तें रखी गई है कि मनुष्य पाप न करें। क्योंकि पाप ही मनुष्य का सबसे बड़ी चुनौती और कमजोरी है।
परमेश्वर की शर्तें, मनुष्य के सामने क्यों रखी गई?
यहां पर एक बहुत बड़ी सवाल यह भी है की, आखिर परमेश्वर की शर्तें, मनुष्य के सामने क्यों रखी गई है? इसका जवाब यह है कि, जब परमेश्वर ने स्वर्ग दूतों को बनाए थे, तब उनके लिए कोई भी शर्तें नहीं रखी थी। यदि उस समय स्वर्ग दूतों के लिए कुछ शर्ते रखी गई होती, तो शायद, शैतान आज्ञा न मानने का दुस्साहस नहीं किया होता।
यहां पर समझने वाली बात यह है कि, स्वर्ग दूतों के लिए, परमेश्वर की कोई भी शर्तें नहीं थी। फिर परमेश्वर की शर्तें न होने के कारण, शैतान को भले ही स्वर्ग से बाहर कर दिया गया, परंतु परमेश्वर ने शैतान की शक्ति को छिन कर, शक्ति हिन नहीं किया। मनुष्य के क्षेत्रों में भी ऐसा न हो, इसलिए, परमेश्वर ने मनुष्य को भले ही सबकुछ का अधिकार दिया है। परंतु उनके आगे पाप न करने की शर्त रख दी है।
संसारिक जिम्मेदारी की शर्तें
जैसे कि कोई सरकारी या गैर सरकारी संस्थान में नौकरी का अपॉइंटमेंट लेते वक्त, बैंकों में खाता खोलते वक्त या ड्राइविंग लाइसेंस बनाते वक्त उनके आगे कुछ शर्ते, यानी टर्म और कंडीशन रखी जाती है। अर्थात यदि व्यक्ति विशेष पर, शर्तें लागू होने के बावजूद भी, यदि वह बेपरवाह होकर शर्तों का अमान्य करता है, तो इसके बदले में कम्पनी या संस्थान की कोई जिम्मेदारी नहीं रहती है। वैसे ही परमेश्वर की शर्तें कि भी अमान्य कर के, जब भी कोई मनुष्य पाप करता है, तो उसके परिणाम की जिम्मेदार परमेश्वर नहीं! खुद मनुष्य ही होता है। क्योंकि परमेश्वर ने मनुष्य के जीवन का सारे नियन्त्रण, मनुष्य को ही दे दिया है।
परमेश्वर की शर्तें और आज्ञाओं को न मानने का परिणाम
पाप करने के पश्चात जब भी मनुष्य के जीवन में, कुछ समस्याएं आती है। जैसे कि बीमारी, संकट, भूत प्रेत, जादू टोना, शैतानी ताकत की बुरी दृष्टि का प्रभाव पड़ने पर लोग, इधर-उधर, यहां वहां, इसके उसके पास दौड़ने लगते हैं। परंतु सबसे पहले उत्पत्ति 1 अध्याय 26 और उत्पत्ति 2 अध्याय 7 की उस वचन को स्मरण करना चाहिए, जिसमें लिखा है, की परमेश्वर ने आपको, मुझको और सबको अपने स्वरूप और अपनी समानता में बनाया है। इसलिए जब तक हम मनुष्य पाप नहीं करेंगे, तब तक शैतान या दुनिया की कोई भी बुरी ताकत, हमें परेशान नहीं कर सकता है। तो आप अनुमान लगा सकते हैं, की यहां पर भी परमेश्वर की शर्तें मानना जरुरी है।
पर यदि कोई व्यक्ति तन मन से, सत्य और निष्ठा से, परमेश्वर की शर्तें और आज्ञाओं का पालन करते हुए जीवन जी रहा है और उसे कोई भी बीमारि या समस्या होती है, तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। क्योंकि हो सकता है, कि उस समय परिक्षा की भी घड़ी हो सकती है। इसलिए मत्ती 26:41 की वचन में प्रभु यीशु यह कहते हैं, कि “जागते रहो, और प्रार्थना करते रहो, कि तुम परीक्षा में न पड़ो: आत्मा तो तैयार है, परन्तु शरीर दुर्बल है।”
बस उस मनुष्य को धिरज धर कर, परमेश्वर से प्रार्थना के माध्यम से जुड़ कर रहना चाहिए। अर्थात, यदि आप पवित्र जीवन जीते हुए, सच्चाई और ईमानदारी से, परमेश्वर की आज्ञाओं मानते हुए, यीशु के पिछे चलते हुए, मर भी जाएंगे, तो भी आपको स्वर्ग में स्थान मिलेगा। क्योंकि यूहन्ना 12:26 की वचन में इस प्रकार लिखा है, “यदि कोई मेरी सेवा करे, तो मेरे पीछे हो ले; और जहां मैं हूं वहां मेरा सेवक भी होगा; यदि कोई मेरी सेवा करे, तो पिता उसका आदर करेगा।”
यीशु की शिक्षाओं में परमेश्वर की शर्तों का पालन
जो परमेश्वर की शर्तें पालन करता है, और प्रभु यीशु की शिक्षा और आज्ञाओं को मानता है, अर्थात बाइबल की वचन के अनुसार जीवन जीता है, उसके पास पिता परमेश्वर और यीशु मसीह भी है। परन्तु जो यीशु मसीह की शिक्षाओं को नहीं मानता है, उसके पास परमेश्वर भी नहीं रहता है। क्योंकि इसके बारे में, 2 यूहन्ना 1:9 की वचन में इसे देखने को मिलता है। अर्थात प्रभु यीशु की शिक्षा मनुष्य को, पापमय जीवन को छोड़कर सत्य, न्याय और धार्मिकता के मार्ग पर ले चलता है। पर चुनाव मनुष्य को करना पड़ता है, वह सत्य की शिक्षाओं को चुनें या अधर्म के मार्ग पर चलें।
क्योंकि जो कोई भी परमेश्वर अर्थात प्रभु यीशु मसीह की शिक्षाओं को छोड़कर अपना कदम आगे बढ़ाता है, उसके पास परमेश्वर नहीं रहता है। क्योंकि 2 यूहन्ना 1:9 वचन में इस प्रकार लिखा है,“जो कोई आगे बढ़ जाता है, और मसीह की शिक्षा में बना नहीं रहता, उसके पास परमेश्वर नहीं: जो कोई उस की शिक्षा में स्थिर रहता है, उसके पास पिता भी है, और पुत्र भी।”
उस की शिक्षा में स्थिर रहता है, उसके पास पिता भी है, और पुत्र भी।” क्या आप जानते हैं, कि परमेश्वर के शिक्षाओं में स्थिर रहने का मतलब क्या है? इसका अर्थ पाप से दूर रहना है। यदि आप पाप से दूर रहते हैं, तो निसंदेह आप परमेश्वर की शर्तें, जिसे आपको, मुझको और सारे संसार के लोगों को दिया गया है, उसका पालन करते हैं। क्योंकि यदि आप परमेश्वर की शर्तें जो आपको मिला है, उसको और उसकी आज्ञाओं तथा नियमों को बखूबी से पालन करते हैं, तो आप निश्चित रूप से परमेश्वर की उस योजनाओं को भी पूरा करते हैं, जिसने आपको अपने स्वरूप में बनाया था।
निष्कर्ष
दोस्तों, मैं यह आशा करता हूं, कि मनुष्य के लिए परमेश्वर की शर्तें | God’s Terms for Man की इस लेख को समझने में आपको आसान हुआ होगा। दोस्तों, परमेश्वर के वचन की सुझाव के लिए, कमेंट्स जरुर कर सकते हैं। शान्ति का परमेश्वर आपके मन दिल में बस कर, अच्छी मार्गदर्शन करे। धन्यवाद।।
God bless you