क्या परमेश्वर आपके साथ है? आप इस सवाल का जवाब किस प्रकार देना चाहेंगे। इसके लिए मैं आपको 3 महत्वपूर्ण बातें साझा करना चाहता हूं , जो आपको इस सवाल का जवाब ढूंढने में मदद मिले।
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तो परमेश्वर आपके साथ होने की 3 महत्वपूर्ण जानकारी क्या है? क्या परमेश्वर आपके साथ है? दोस्तों, यह सवाल मुझको, आपको और तमाम विश्वासियों को अपने आप से यह पुछना चाहिए, कि क्या परमेश्वर मेरे साथ है? हां दोस्तों, आज के भौगोलिक परिस्थितियों को देखते हुए, लोग जिस प्रकार का जीवन जी रहे हैं, उससे यह साफ पता चलता है, कि हमें अपने जीवन शैली के बारे में भी जांचना अवश्य जरूरी है।
क्योंकि दूसरों के बारे में कहना या उंगली करना आसान है, पर खुद के गिरेबान को झांकना मुश्किल लगता है। क्योंकि सभी लोग अपने आप को दूसरों से अच्छा और बेहतर आदमी मानते हैं। परन्तु दुध का दुध और पानी का पानी तब होता है, जब इसका असर अपनी दैनिक जीवन पर पड़ता है।
क्योंकि जो खुद को लोगों के सामने और बाहर से अच्छा कहता है, पर अन्दर अर्थात आत्मिक रूप से अच्छा और सच्चा नहीं है, तो भैया यह समझ लेना कि परमेश्वर उसके साथ नहीं है। दोस्तों, हर किसी के जीवन में परमेश्वर का साथ होना बेहद जरूरी है। मेरा कहने का मतलब परमेश्वर के साथ के बिना बहुत लोग सत्य के मार्ग पर से भटक चुके हैं, और आत्मिक जीवन छोड़ कर संसारिक जीवन जी रहे हैं।
दोस्तों, मैं उम्मीद करता हूं, कि आज का यह वचन अच्छे और भटके हुए दोनों प्रकार के लोगों को परमेश्वर के साथ बने रहने के लिए मजबूती प्रदान कर सकती है। क्योंकि यदि किसी को परमेश्वर में बने रहना है, तो 3 बातों को जानना, मानना और उसके अनुसार चलना बेहद जरूरी है। आगे हम उन्ही 3 महत्वपूर्ण बातों के बारे में अध्ययन करेंगे। तो चलिए देखते हैं कि उन 3 महत्वपूर्ण बातें क्या क्या है?
1) प्रार्थना
2) वचन को पढ़ना और सुनना
3) परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना
1) प्रार्थना
देखिए, यदि हम मनुष्य को 24×7 संसारिक चीजें दी जाए, या हमें संसारिक चीजों के साथ जीवन बिताना पड़े, तो भी कोई कष्ट अनुभव नहीं होता है। परन्तु 2 मिनट के लिए संसारिक चीजों से अलग हो कर परमेश्वर के चरणों में प्रार्थना में बैठने के लिए, बहुत कष्ट अनुभव होता है। यदि परमेश्वर के सामने प्रार्थना में बैठते वक्त आपका भी मन भटक रहा है, तो यह समझ लीजिए कि एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो चुकी है।
जिसका मन भटक चुका है, और शरीर परमेश्वर की प्रार्थना करने के लिए मना कर रहा है, तो इसका निवारण हेतु, उपवास और पश्चाताप करने की आवश्यकता है। उपवास करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि अशांत और भटके हुए मन को स्थिर करना है। पश्चाताप करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि अपने गंदी और पुराने स्वभाव को बदलना है। यदि आप ऐसा करते हैं, तो परमेश्वर आपके साथ रह सकते हैं।
वरना दो नाव पर पांव रखने वाले लोगों को परमेश्वर ही नहीं बल्कि आप भी पसंद नहीं करते हैं। आज 99 प्रतिशत लोगों का संबंध परमेश्वर से नहीं, बल्कि पाप और बुराई के साथ है। तो बताइए ऐसा जीवन जीने से परमेश्वर आपके साथ रह सकते हैं? बिल्कुल भी नहीं, है न। कहने का मतलब यदि आप प्रार्थना नहीं करते हैं, तो परमेश्वर आपके साथ नहीं है। (Colossians 4:2)प्रार्थना में लगे रहो, और धन्यवाद के साथ उस में जागृत रहो।
2) वचन को पढ़ना और सुनना
(Luke 11:28) कहता है,उस ने कहा, अर्थात यीशु ने कहा, हां; परन्तु धन्य वे हैं, जो परमेश्वर का वचन सुनते और मानते हैं। एक बात परमेश्वर कहां रहते हैं? इसका जवाब वचन में रहते हैं। क्योंकि (John 1:1) कहता है, आदि में वचन था, और वचन परमेश्वर के साथ था, और वचन परमेश्वर था। इसका सही मतलब यह जान पड़ता है, कि जो लोग परमेश्वर की वचन को सुनते, मानते और उसके अनुसार जीवन जीते हैं, उनके साथ परमेश्वर रहता है। क्या आप परमेश्वर की वचन को सुनते और मानते हैं?
यदि आप ऐसा करते हैं, तो निश्चित रूप से परमेश्वर आपके साथ रह सकते हैं। आप कैसी जीवन जी रहे हैं, इसे आपसे बेहतर और कोई नहीं जानता है। एक साधारण जो बहुत ही कीमती बात सुन लीजिए, जब भी आप facebook, youtube खोलते हैं, तो आपकी स्वभाव का पता चल जाता है, कि आप कैसा व्यक्ति हैं? इसका मतलब आप कैसी विडियो को देखते हैं?
यदि आप चाहते हैं, कि परमेश्वर आपके साथ हो, तो आप निश्चित रूप से वचन विडियो अर्थात वचन की तरफ जाएंगे। अन्यथा बेकार और फालतू विडियोज़ की भूल-भुलैया में उलझे कर आप परमेश्वर से दूर होते रहेंगे। तो आप क्या चाहते हैं कि परमेश्वर आपके साथ न रहे? ऐसा तो कोई मुर्ख भी नहीं चाहेगा, है न। आप क्या चाहते हैं, खुद निर्णय लें। यही आपके लिए बेहतर होगा।
3) परमेश्वर की आज्ञाओं का पालन करना
सबसे पहले परमेश्वर की आज्ञा जो बाइबल में लिखा हुआ है, उसे मानना चाहिए, वरना परमेश्वर आपके साथ, मेरे साथ या किसी और के साथ भी नहीं रह सकता है, वरन उसका क्रोध आज्ञा न मानने वालों के उपर भड़क सकता है, जैसे पहले के लोगों ने भी नहीं माना और परमेश्वर को क्रोधित किया था।
इसके बारे में (2 Chronicles 34:21) कहता है, कि तुम जा कर मेरी ओर से और इस्राएल और यहूदा में रहने वालों की ओर से इस पाई हुई पुस्तक के वचनों के विष्य यहोवा से पूछो; क्योंकि यहोवा की बड़ी ही जलजलाहट हम पर इसलिये भड़की है कि हमारे पुरखाओं ने यहोवा का वचन नहीं माना, और इस पुस्तक में लिखी हुई सब आज्ञाओं का पालन नहीं किया। परमेश्वर जो कह दिया है कह दिया है।
उसका वचन नहीं बदलता है। हम और आप बदल सकते हैं, पर वह नहीं। क्योंकि (Mark 13:31) में प्रभु यीशु कहते हैं, आकाश और पृथ्वी टल जाएंगे, परन्तु मेरी बातें कभी न टलेंगी। इस वचन से यह पता चलता है, कि परमेश्वर की आज्ञाओं और वचन में कितना दृढ़ता है। इसलिए यदि आप चाहते हैं कि परमेश्वर आपके साथ रहे, तो उसकी आज्ञाओं का पालन करना बेहद जरूरी है। अन्यथा परमेश्वर बहुत दूर हो सकतें हैं।
निष्कर्ष
अन्त में मैं यही कहूंगा कि, आप प्रार्थना करें, वचन को पढ़ें और वचन को सुनें तथा परमेश्वर की आज्ञाओं का भी पालन करते रहें, तब निश्चित रूप से परमेश्वर आपके साथ रहेंगे और आप सभी परिस्थितियों का सामना मजबूती से कर पाएंगे। और एक बात यदि आपको परमेश्वर का वचन अच्छा लगा तो कमेंट जरुर करे। शान्ति दाता परमेश्वर आपको अपने अनुग्रह से परिपूर्ण करें और आपके जीवन में अच्छे मार्ग दिखाए। धन्यवाद।।
i am verry blessed
praise the lord