थूआतीरा की कलीसिया के दूत को लिखे गए पत्र में प्रभु की अत्यंत क्रोध को देखा जा सकता है; क्योंकि प्रभु की आंख ज्वलंत आग की तरह और पांव उत्तम पीतल की नाई स्वच्छ और कठिन हो चुका है। प्रभु की गुस्सैल आंख और पांव में चमचमाती पीतल की जूता पहनना बताता है; कि प्रभु कार्रवाई करने के लिए प्रस्तुत हो चुके हैं। दया, क्षमा; प्रेमं और शान्ति का मसीहा कहलाने वाले प्रभु, यीशु मसीह का क्रोध आखिर में क्यों इतना भड़क उठा है? अगर इसका उत्तर आप जानना चाहते हैं; तो प्रकाशित वाक्य 2:18-29 के इस बात को जरूर पढ़ने की कष्ट करें; और जानने की कोशिश करें; कि क्या आपके काम और चाल चलन से प्रभु संतुष्ट हैै, या नहीं।
प्रभु की दृष्टि में मनुष्य का स्थान
थूआतीरा की कलीसिया के दूत को लिखे गए पत्र से; एक मनुष्य का स्थान प्रभु की दृष्टि में, अच्छाई की अंक तालिका में सामिल है, कि नहीं इसकी जानकारी मिलती है। प्ररभु की दृष्टि में एक व्यक्ति के पास निम्नलिखित गुुण होना चाहिए।
- [काम में ईमानदारी] काम में ऐसी ईमानदारी होना चाहिए, जैसे कि उसे दूसरों के लिए नहीं; बल्कि प्रभु के लिए किया जा रहा है।
- [प्रेम] प्रेम ऊंच-नीच, का भेद-भाव; ईर्ष्या द्वेष, घमंड और घृणा से नफरत करता है। अर्थात् सबको समानता की दृष्टि से देखना चाहिए।
- [विश्वास] विश्वास ऐसे हो जिसमें कर्म और वचन का ताल-मेल होना चाहिए। जैसे कि मुंह से विश्वास करने का दावा करना; परंतु प्रभु की प्रार्थना और बाइबल वचन पढ़ने तथा सुनने से खुद की दूरियां बनाना।
- [सेवा] सेवा में स्वार्थ लाभ की आशा नहीं होना चाहिए।
- [धीरज] हर प्रकार की काम, बात और किसी भी विषय पर धीरज ऐसी होनी चाहिए; जिससे परमेश्वर को प्रसन्नता मिले।
इजेबेल
नबि एलिय्याह के समय में इजेबेल नामक सीदोनियों की राजा एतबाल की बेटी थी; जिसे इस्राएल का राजा अहाब ब्याह किया था। (1 राजा 16:31) राजा अहाब इजेबेल के इशारों से नाचते थे। क्योंकि इजेबेल के कहने से उसने ईश्वर को त्याग करके बाल देवता और अशेरा देवी की उपासना करने लगाा तथा इस्राएलियों को भी उपासना करवाया। इस प्रकार सारे इस्राएलियों ने ईश्वर को छोड़कर बाल देता और अशेरा देवी की उपासना तथा बलि प्रसाद खाने लगे। (न्यायियों 3:7-8) तब यहोवा परमेश्वर का क्रोध भड़क उठा; और वह इस्राएलियों को अरम्नहरैम के राजा कुशत्रिशातैम के आधीन कर देता हैं।
- सिर्फ थूआतीरा की कलीसिया कि ही बात नहीं है, वर्तमान के कलीसियाओं में भी वही इजेबेल अर्थात शैतान की आत्मा काम कर रही है। क्योंकि लोग चर्च में प्रभु की आराधना तो करते हैं; परंतु वहां से लौट जाने के बाद अन्य देवी-देवता और खुदी हुई मूर्तियों की उपासना करके बलि प्रसाद खा कर व्यभिचार करते हैं। इस बात से लोग अनजान रहते हैं, कि ऐसा करके वे ईश्वर की क्रोध को भड़काते हैं। इजेबेल की आत्मा, साधारण मनुष्य से लेकर प्रभु के दासों को भी शारीरिक और आत्मिक व्यभिचार करवाती है। इसके अलावा लोगों को प्रभु से अलग करने के लिए, मूरतों की बलि प्रसाद खाने के लिए भी भरमाती रहती है।
क्रोध से बचने का उपाय
प्रभु थूआतीरा की कलीसिया के पत्र के माध्यम से लोगों को यह बताना चाहते हैं, कि जो मन न फिराएगा और मूर्तियों के आगे झुक कर उसकी उपासना तथा बलि प्रसाद खाने का काम करता रहेगा; तो उसे बड़ी क्लेश मिलने वाला है। यहां तक कि मन परिवर्तन न करने से उनकी बाल बच्चों के उपर भी मौत का संकट आ सकती है; जिससे कलीसिया के लोग जान जाएंगे की, ह्रदय और मन को जांचने वाला प्रभु; लोगों की कर्मों के मुताबिक फल प्रदान करते हैं। जरा सोचिए लोगों की क्रोध से तो कहीं भी, छिप कर या भाग कर बच सकते हैं; परंतु ईश्वर की क्रोध से बचने का कोई स्थान नहीं है। ईश्वर की क्रोध से बचने का एक ही उपाय है; मन फिराओ और अपने किए हुए सभी गुनाहों के लिए प्रभु से क्षमा मांगो, तभी प्रभु का क्रोध शांत होगा।
शैतान की शिक्षा
थूआतीरा की कलीसिया के इस पत्र में बाकी लोगों को जो शैतान की शिक्षा को नहीं मानते थे; अर्थात अन्याय तरीके से धन कमाना, अपने अधिकार का इस्तेमाल गलत कामों के लिए करना; अपने स्वार्थ के लिए दूसरों का गला घोंटना, दुष्कर्म, दुर्नीति और सभी प्रकार के पाप की गतिविधि में सम्मिलित होने से इनकार करते थे। यूं कहें तो शैतान की शिक्षा से की जाने वाली कर्म का फल पाप के स्वरूप में प्राप्त होता है; और उस से वे दूर रहते थे। क्योंकि पाप का फल या मजदूरी मृत्यु है। ( रोमियो 6:23) इसलिए शैतान की शिक्षा से दूर रहना बेहतर है।
शैतान की गहरी बातें
थूआतीरा की कलीसिया के पत्र के जरिए से प्रभु लोगों को बताना चाहते हैं, कि शैतान की गहरी बातें जो व्यभिचार है, चाहे वह आत्मिक, शारीरिक या मानसिक कोई भी प्रकार की व्यभिचार क्यों ना हो। ईश्वर से मनुष्य को अलग करने के लिए, शैतान की गहरी चाल और गहरी बात व्यभिचार ही है। जिसे ईश्वर नहीं चाहता कि मनुष्य करेे; अर्थात व्यभिचार जिसे शैतान अपना गहरी चाल चल कर करवाना चाहता है, और मनुष्य को ईश्वर से अलग करता है। सभी पाप तो शरीर के बाहर होते हैं; परंतु व्यभिचार मनुष्य के खुद की अंग के विरुद्ध होता है। (1 कुरिन्थियों 6:18)
- इसलिए थूआतीरा की कलीसिया ही नहीं, बल्कि सभी कलीसिया के लोग यह जान लें कि शैतान की गहरी बात व्यभिचार है, वह शादी से पहले और शादीशुदा वाले लोगों के जीवन में भी इसका इस्तेमाल करके पाप करवाता है। आजकल तो मूवी में, आइटम सॉन्ग की नाच और ऐसे बहुत सारे वीडियो भी बनाया जा रहा है; जिसकी वजह से शैतान आसानी से लोगों को व्यभिचार करवाने में कामयाब हो रहा है।
- इसलिए विश्वासियों को मूवी और वीडियो देखने जैसी गंदी आदत से अपने को बचाए रखना चाहिए। क्योंकि इन सारी चिज़ें मनुष्य को उनकी आंख और दिमाग के जरिए से, व्यभिचार करवाती है। इसलिए लोगों को व्यभिचार से दूर भागना चाहीए। जैसे कि (उत्पति 39:12) के वचन में यूसुफ भागा था। इजेबेल की शिक्षा को न मानने वाले लोगों पर प्रभु बोझ डालना नहीं चाहते हैं, पर वह चाहते हैं; की लोग अन्त तक प्रभु की शिक्षा पर चलते रहें।
धार्मिक लोगों को राज्य करने की अधिकार मिलेगा
थूआतीरा की कलीसिया को लिखे गए वचन के द्वारा प्रभु कहते हैं, जो व्यक्ति सच्चाई और अच्छाई के अनुसार अंत तक चलता रहेगा, उसको जाति जाति के लोगों के ऊपर राज्य करने के लिए लोहे का राजदण्ड दिया जाएगा। जिस तरह कुम्भार के द्वारा मिट्टी से बना बर्तन गिरने से चकनाचूर हो जाता है, ऐसे ही अधिकार प्रभु यीशु को भी पिता से मिला है; और जय पाने वाले लोगों को प्रभु इस प्रकार के अधिकार देने वाले हैं। इसलिए उचित यह है, की परमेश्वर की वचन को बारीकी से समझना चाहिए। इसके लिए प्रभु का वचन को सिर्फ मुंह से न पढ़कर दिल से भी पढ़ना चाहिए। क्योंकि प्रभु सिर्फ मनुष्य के लिए अच्छाई चाहते हैं, परंतु मनुष्य सदा से ही बुराई से प्रीति रखते आया है।
निष्कर्ष
थूआतीरा की कलीसिया के पत्र से मालूम चलता है; कि लोगों को इजेबेल यानी शैतान की शिक्षा और उसकी गहरी बातों से दूरी बनाए रखना चाहिए, जो भांति-भांति के पाप और व्यभिचार कहलाता है। क्योंकि शैतान इस प्रकार की पाप के द्वारा लोगों को अपना मोहरा बनाकर ईश्वर के विरुद्ध पाप करवाता है। वह जानता है, कि लोग इस पाप में आसानी से फंस जाते हैं। इसलिए सावधान रहें और अपने जीवन की पवित्रता का लक्ष्य को परमेश्वर से मिलने वाली सम्मान पर टिकाए रखें। ऐसा ना हो कि क्षणस्थायी खुशी पाने के चक्कर में ईश्वर की ओर से मिलने वाली खुशी से वंचित रह जाएं।। धन्यवाद।