Bible study in hindi | हिंदी बाइबल प्रचार

Bible study in hindi. आप निजी जीवन में बुद्धिमान, शिक्षित और बड़े ही ज्ञानी व्यक्ति हो सकते हैं। संसार के तमाम किताब भी पढ़ चुके होंगे। आपकी बुद्धिमानी की चर्चा भी पूरे मुल्क में होती होगी। पर यदि Bible study नहीं की है। प्रभु यीशु के बारे में नहीं जानते हैं। तो आप hero होकर भी zero हैं। क्योंकि Bible संसार के ज्ञानीजनों को मूर्ख कहता है। यदि आप जानना चाहते हैं, कि सारे संसार के लोग यीशु मसीह के पिछे क्यों चल रहें हैं, तो मेरे साथ अंत तक जरूर बने रहें।

Bible study 1 यीशु मसीह का अद्भुत जन्म

हम Bible study में यह बताना चाहते हैं, कि संसार की उत्पत्ति से लेकर आज तक न जाने जितने भी लोगों का जन्म हुआ है, सब का जन्म साधारण तरीके से ही हुआ है। पर प्रभु यीशु का जन्म इस युग और सदैव के लिए, अनोखा ही रहेगा। क्योंकि प्रभु यीशु का जन्म मनुष्य की इच्छा से नहीं! बल्कि पिता परमेश्वर की इच्छा से हुआ था। Bible के अनुसार ( लूका 1:26-38 ) की वचन में लिखा है, कि प्रभु यीशु का जन्म से पहले स्वर्गदूत जिब्राईल माता मरियम के पास जाकर संदेश दिया था, जिसकी मंगनी दाऊद के घराने के एक पुरूष यूसुफ के साथ हुआ था। इनके एक साथ रहने से पहले ही स्वर्गदूत के संदेश के अनुसार माता मरियम गर्भवती होती है।

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और उसके द्वारा जिस बच्चे का जन्म होता है, वह साधारण नहीं! बल्कि असाधारण और वह प्रभु यीशु है। क्योंकि प्रभु यीशु का जन्म और नामकरण मनुष्य से नहीं हुआ, बल्कि स्वर्ग से हुआ था। ( मत्ती 1:21 ) महत्वपूर्ण बात यह है, कि प्रभु यीशु का जन्म इस पापमय युग में ही हुआ था। पाप तो सभी करते हैं, परन्तु उसका जन्म पाप को हरने के लिए हुआ था।

Bible study 2 क्या यीशु की परिक्षा मनुष्य को पतन से बचा सकता है।

संसार में रहने वाले सभी मनुष्य का उत्थान और पतन होते हुए, आप लोगों ने देखा ही होगा। पर क्या आप यह जानते हैं, कि किसी का उत्थान या पतन होने से पूर्व उसके निजी जिंदगी में कुछ ऐसी घटना घटती है। जिसे आप कुदरत का एक इशारा कह सकते हैं। बाइबल के अनुसार देखा जाए तो, ईश्वर मनुष्य को कुछ देने से पुर्व परखना पसंद करते हैं। जैसे कि ( उत्पत्ति 22:1-2 ) की वचन में ईश्वर इब्राहिम की परिक्षा ली थी। परिक्षा में खरा उतरने ने के बाद ईश्वर इब्राहिम को बड़ी आशिर्वाद दिया और वह ( उत्पत्ति 17:5 ) की वचन के अनुसार जातियों के मूल पिता बन गया।

यह न कहना की ईश्वर मनुष्य को परखता है। क्योंकि संसारिक मनुष्य भी किसी को नौकरी और बड़े पद के अधिकारी बनाने से पूर्व उसकी अच्छी तरह से जांच परख कर कार्य सोंपते हैं। यूं कहे तो उसकी इंटरव्यू या कुछ बेसिक परीक्षाएं ली जाती है। पर आज की Bible study के माध्यम से एक व्यक्ति खुद की पतन को कैसे रोक सकता है। उसे हम प्रभु यीशु कि परिक्षा की शिक्षा के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं।

ऊपर अपने देख लिया है, कि किसी भी व्यक्ति की उत्थान या कुछ पदाधिकार मिलने से पूर्व ईश्वर और मनुष्य दोनो की ओर से परीक्षा अवश्य आती है। परंतु जिस प्रकार शैतान के द्वारा प्रभु यीशु की परीक्षा हुई थी। इससे यह बात साफ साफ पता चलता है, कि मनुष्य का पतन के लिए भी शैतान की ओर से परीक्षा होते रहता है। पर उस घड़ी को समझने की जरूरत है। अन्यथा मनुष्य का पतन अर्थात मान सम्मान मिट्टी में मिल सकता है। पर कोईयों के मन में यह सवाल जरूर उठता होगा कि, भाई साहब जरा बताइए कि मनुष्य की पतन के लिए किस प्रकार की परीक्षा हो सकता है?

मैं आपकी जानकारी के लिए, यह बता देना चाहता हूं, कि जब भी शैतान की ओर से मनुष्य का पतन के लिए परीक्षा होता है, तो शैतान का एक ही मकसद रहता है कि मनुष्य को ईश्वर से अलग किया जाए। अर्थात प्रलोभन की परीक्षा, मनुष्य को पाप में गिराने की परीक्षा शैतान करता है। जैसे कि ( मत्ती 4:1-11 ) की वचन में शैतान प्रभु यीशु को परखने का दुस्साहस किया था। इस परीक्षा को प्रभु यीशु अपने ऊपर आने इसलिए दिया। क्योंकि इस परिक्षा के जरिए से मनुष्य को पतन से बचाया जा सकता है।

आज कि Bible study में पाप की वजह से होने वाली पतन का कारण जानने के लिए मैं यहां पर कुछ उदाहरण देना चाहता हूं। जैसे कि जवान युवक और युवती तथा किसी भी पुरुष या स्त्री को ग़लत संबंध बनाने के लिए अवसर मिलना। गंदी वीडियो को देखने की चाहत होना। दोस्तों के साथ मस्ती करने के लिए दारु पीने का ऑफर मिलना। देखो शराब को छोटे मत समझना। क्योंकि शराब पीने के पश्चात एक मनुष्य बहुत सारे पापों को बेवजह ही कर लेता है। जैसे की चोरी, दुष्कर्म, झगड़ा, हत्या, गलत संगति, और न जाने एक शराबी और क्या-क्या कर लेता है। फिर जितने भी ग़लत काम जो ईश्वर को अप्रिय लगता है, वह मनुष्य का पतन का कारण बनता है।

इसलिए जब भी कोई पाप या गलत काम जीवन में कार्य करना चाहता है, तब यह बात स्मरण कर लें की पाप या गलत काम आपको नहीं करना है। आप उसे चुनौती दे सकते हैं। क्योंकि ( यूहन्ना 16:33 ) की वचन में प्रभु यीशु कहता है, कि मैंने जगत को जीत लिया है। प्रलोभन या पतन के निमित्त आपकी परीक्षा न हो इसलिए आपको एक काम हमेशा करते रहना पड़ेगा। और वह है, सावधान रहकर प्रार्थना करते रहना चाहिए। क्योंकि ( मत्ती:26:41 ) की वचन में प्रभु यीशु कहते हैं, कि परीक्षा से बचने के लिए सावधानी के साथ साथ प्रार्थना भी करते रहना चाहिए।

देखिए जब भी सच्चाई और ईमानदारी से चलते हुए किसी व्यक्ति के उपर कुछ परीक्षा आता है, तो यह समझ लीजिए कि उस व्यक्ति से परमेश्वर अधिक इमानदारी और धार्मिकता की आशा कर रहा है। पाप, बुराई और गलत काम के लिए परीक्षा होना यह दर्शाता है, कि मनुष्य के लिए पतन की घंटी बज रही है। इसलिए जिस प्रकार प्रभु यीशु ने शैतान के खिलाफ वचन का इस्तेमाल किया था, उसी प्रकार आपको भी वचन और प्रार्थना में हमेशा मग्न रहना चाहिए। पर यह समझने की गलती न करें कि मुझे प्रभु का वचन स्मरण है। पर मैं आपको यह बात बता देना चाहता हूं, कि आपसे ज्यादा प्रभु का वचन को शैतान जानता है। इसलिए ज्यादा सावधानी बरतें।

Bible study 3 सुसमाचार का प्रचार

( मरकुस 16:15 ) की वचन में प्रभु यीशु यह कहते हैं, तुम सारे जगत में जाकर सारी सृष्टि के लोगों को सुसमाचार प्रचार करो। अर्थात परमेश्वर की बातें लोगों को बताओ। सुसमाचार सुनाओ, पाप के मार्ग से फिर कर ईमानदारी और सच्चाई के मार्ग पर चलना सिखाओ। देखिए सबको भले और बुरे का ज्ञान के बारे में पता है। पर मनुष्य पापी स्वभाव के कारण न चाहते हुए भी पाप की ओर खिंचा चला जाता है। और उस स्वभाव को बदलने की क्षमता केवल परमेश्वर के वचन में है। क्योंकि इससे पहले परमेश्वर लोगों को बदलने के लिए, भविष्यद्वक्ताओं के द्वारा लोगों को सुसमाचार सुनाते थे। और अब के दिनों में परमेश्वर अपने पुत्र के द्वारा लोगों से बात करते हैं।

Bible study in hindi
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जिस तरह पिता परमेश्वर ने प्रभु यीशु को इस जगत में भेजा। वैसे ही प्रभु यीशु भी लोगों को सुसमाचार प्रचार करने के लिए भेजते हैं। जैसे उसने ( लूका 9:1-6 ) की वचन में अपने शिष्यों को भेजा था। यहां पर समझने वाली बात यह है, कि जब दो लोग इकट्ठे होने पर किसी न किसी बातों की चर्चा करते हैं। फिर लोग जीवन भर कुछ न कुछ चर्चा करते रहते हैं।

पर उस चर्चा में परमेश्वर का वचन नहीं होता है! बल्कि संसारिक विषय पर चर्चा होती है। इसलिए परमेश्वर ने अपने वचन को लोगों तक पहुंचाने के लिए, स्वयं अपने पुत्र को इस जगत में भेजा। प्रभु यीशु वचन बनकर इस जगत में आए। इसलिए जो कोई प्रभु यीशु की सुसमाचार को ग्रहण करता है। वह प्रभु यीशु को ग्रहण करता है। सुसमाचार परमेश्वर का है। इसलिए परमेश्वर जिसे चुनता है, उसे वह अपना सेवक बना देता है। फिजूल की बातों को सुनने से अच्छा यह है, कि सुसमाचार सुनें। क्योंकि अन्त में मनुष्य को प्रभु के पास जाना ही है, तो क्यों इधर उधर भटकते रहना है।

Bible study 4 प्रभु यीशु की प्रचार का सारांश। मन फिराओ

जब भी किसी व्यक्ति की अपने होश संभालने के पश्चात, यदि उससे कोई भी पाप नहीं हुआ है, तो उसे बदलने की जरूरत नहीं है। पर ऐसा धर्मी आदमी इस संसार में एक भी नहीं है। क्योंकि ( रोमियो 3:10:11 ) की वचन में लिखा है, कोई भी धर्मी नहीं है, और न ही परमेश्वर को खोजने वाला व्यक्ति है। ( रोमियो 3:23 ) की वचन कहता है, कि सबने पाप किया है, और परमेश्वर की महिमा, कृपा और आशीष से वंचित रह गए हैं। यदि संसार में एक भी धर्मी नहीं है, तो आप ही बताइए कि क्या पापी आदमी स्वर्ग जा सकता है? बिल्कुल नहीं! है, न।

तो फिर स्वर्ग जाने लिए लोगों को क्या करना चाहिए? इस सवाल का जवाब ( मत्ती :3:2 ) ( मत्ती 4:17 ) की वचन में देखने को मिलता है। क्योंकि खासकर इस वचन में मन फिराने, या मन परिवर्तन के बारे में कहा जाता है। ऐसा कहने का कारण यह है, कि मनुष्य का मन की स्वभाव स्वर्गलोक के अनुरूप नहीं है। इसलिए प्रभु कहते हैं, कि

मन फिराओ अर्थात खुद की स्वभाव को बदलो, पाप करना छोड़ दो, शरीर से, मन से,सोच से, आंख से, कान से पाप करना छोड़ दो, मुंह से गालियां देना छोड़ दो, चोरी, व्यभिचार, दुष्कर्म, लड़ाई हत्या छोड़ दो। तभी स्वर्ग राज्य में प्रवेश मिलेगा। अन्यथा खुद को धर्मी मानने वाले कोई भी जाति या धर्म के लोग क्यों न हों। पाप तो पाप ही होता है। पाप करके कोई भी धर्मी नहीं बनता है। इसलिए बिना पाप को छोड़े कोई भी मनुष्य स्वर्ग राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता है।

देखिए, लोगों के लिए पाप करना तो आसान होता है। पर पाप को छोड़ना इतना आसान नहीं होता है। क्योंकि वैसे भी लोग खुद को धर्मी तो मानते हैं, लेकिन परमेश्वर को सही मायने से न जान पाने की वजह से पाप पर पाप करते रहते हैं। इसका प्रमुख कारण आदमी कि घमंड की वजह से ही होता है। इसलिए सभी लोगों को मन परिवर्तन करना चाहिए। क्योंकि अच्छे और बुरे सोच मनुष्य के मन से ही तो बाहर आता है।

मनुष्य को अपने मन की परिवर्तन के लिए, अपने शरीर को वश में रखना जरूरी है। क्योंकि मन में उठने वाली हरेक ख्याल शरीर के माध्यम से कार्यान्वित होता है। ( 1 कुरिन्थियों 9:27 ) में लिखी संत पौलुस की एक बात मुझे हमेशा याद आती है। क्योंकि उसने कहा था, कि

परन्तु मैं अपनी देह को मारता कूटता, और वश में लाता हूं; ऐसा न हो कि औरों को प्रचार करके, मैं आप ही किसी रीति से निकम्मा ठहरूं।

इस वचन से हमें यह पता चलता है, कि संत पौलुस सिद्ध पुरुष होकर भी, अपने आप को, खुद की शरीर को कष्ट देकर वश में रखना जरूरी समझते थे। अर्थात यदि आप अपने शरीर को वश में नहीं रख पाएंगे, तो मन में उठने वाली हर प्रकार की बुरे ख्याल शारीरिक इच्छा में बदलकर पाप करवाने में सक्षम हो जाएगा। इसलिए यदि आप अपने मन को परिवर्तन कर लेंगे, अर्थात पाप के व्यतीत यदि अच्छी सोच सोचेंगे, तो अपने सोच के अनुसार अच्छे काम भी कर पाएंगे और सबको पता है, कि अच्छे कर्मों का फल स्वर्ग राज्य की ओर ले जाता है। क्योंकि मनुष्य की अच्छाई से परमेश्वर प्रसन्न रहता है। इसलिए मन फिराने या मन परिवर्तन करना जरूरी है।

Bible study 5 प्रभु यीशु की शिक्षा में पापी, दलित का स्थान

( मत्ती 9:9-13 ) कि वचन में लिखित सुसमाचार के अनुसार देखा जाए तो, वहां पर प्रभु यीशु महसूल लेने वाला मत्ती को अपने पीछे चलने के लिए कहते हैं। फिर वह प्रभु का पीछे हो लेता है। जब वह घर में प्रवेश करके भोजन के लिए बैठते हैं, तो वहां पर बहुत से पापी लोग आकर प्रभु के साथ भोजन करने के लिए बैठ जाते हैं। यह सब देखकर फरीसियों ने प्रभु का चेलों से कहते हैं, कि तुम्हारा गुरु क्यों महसूल लेने वाले और पापियों के साथ भोजन करते हैं। यहां पर समझने वाली बात यह है, कि फरीसियों ने महसूल लेने वाले लोगों को, अर्थात जिसे (tax collector) कहा जाता है। समाज के दृष्टि में सबसे नीच तबके के लोग समझते थे। खासकर फरीसि लोग उन्हें घृणा करते थे।

Bible study में प्रभु की तर्क को समझने की आवश्यकता है। प्रभु यीशु यहां पर फरीसियों को एक सीख देना चाहते थे, कि परमेश्वर को घृणा और प्रेम दोनों में से क्या पसंद है। मैं तो यह कहना चाहूंगा कि इस शिक्षा को प्रभु यीशु सिर्फ फरीसियों को ही नहीं! बल्कि संपूर्ण धरती के लोगों को देना चाहते थे। इसलिए इसका प्रमाण स्वरूप उन्होंने महसूल लेने वाले और पापियों के साथ भोजन करके अपना मंशा प्रकट किए थे, कि परमेश्वर को प्रेम पसंद है।

क्योंकि फरीसियों के द्वारा पूछे गए सवाल, महसूल लेने वाले और पापियों के साथ तुम्हारा गुरु क्यों भोजन करते हैं? इसका जवाब देते हुए प्रभु यीशु कहते हैं, कि भले लोगों को वैद्य की आवश्यकता नहीं है। परंतु बीमारों को वैद्य की जरूरत पड़ती है। अर्थात धर्मियों से ज्यादा पापियों को पश्चाताप के लिए प्रभु की आवश्यकता है। क्योंकि जो खुद को धर्मी और बड़े मानते हैं, परमेश्वर उनसे प्रसन्न नहीं होता है। कारण कि प्रभु यीशु बलिदान नहीं पर दया चाहते हैं। क्योंकि वह धर्मियों को नहीं बल्कि पापियों को पश्चाताप के लिए, बुलाने आए थे।

इस संसार में भी बहुत से ऐसे लोग हैं, जो खुद को धर्मी तथा सबसे बड़ा मानते हैं, परन्तु परमेश्वर सबके लिए समान हैं, वह किसी का पक्षपात नहीं करते हैं। क्योंकि ( लूका 20:21 ) की वचन के अनुसार प्रभु यीशु किसी का पक्षपात नहीं करते हैं। खास करके उपेक्षित और तिरस्कृत लोगों को प्रभु दया करते हैं।

Bible study 6 प्रभु यीशु राजाधिराज हैं

बाइबल कहता है, कि प्रभु यीशु राजाओं का राजा और प्रभु का प्रभु है। क्योंकि ( प्रकाशित वाक्य 17:14 ) लिखा है,कि “ये मेम्ने से लड़ेंगे, और मेम्ना उन पर जय पाएगा; क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु, और राजाओं का राजा है: और जो बुलाए हुए, और चुने हुए, ओर विश्वासी उसके साथ हैं, वे भी जय पाएंगे।”

यहां पर मेम्ने का मतलब प्रभु यीशु हैं। और अन्त के दिनों में शैतान मेम्ने से लडेगा, पर मेम्ना की जीत होगी। क्योंकि वह प्रभुओं का प्रभु और राजाओं का राजा है। वह राजाधिराज है, उसके तुल्य कोई नहीं है। इसलिए लोगों को प्रभु यीशु की शिक्षा पर चलना चाहिए। क्योंकि उसके शिक्षा में कोई मिलावट नहीं है। ( 1 तीमुथियुस 6:15 ) की वचन भी कहता है,“जिसे वह ठीक समयों में दिखाएगा, जो परमधन्य और अद्वैत अधिपति और राजाओं का राजा, और प्रभुओं का प्रभु है।” अर्थात प्रभु यीशु के पास सम्पूर्ण अधिकार है। इसलिए लोगों को उसके शरण आकर उसके आज्ञाओं को मानकर सच्चाई की राह पर चलते हुए जीवन गुजारना चाहिए।

पहले के जमाने में लोग राजाओं के शरण में रहते थे। राजाओं के हुक्म मानते थे। पर प्रभु यीशु राजाओं का राजा प्रभुओं का प्रभु है। अर्थात संसारिक राजा और अधिपतियों से भी महान है। फिर भी लोग प्रभु की आज्ञाओं को न मानकर पाप के मार्ग पर चलते रहते हैं। यहां पर मैं लोगों को एक बात बता देना चाहता हूं, कि इस संसार के लोग साधारण मनुष्य को, दुष्ट जन को, शैतान और भूत प्रेत को डरते हैं। पर परमेश्वर का प्रेम, करुणा और सहनशीलता को कमजोरी समझने की भुल करते हैं। जो असाधारण, सर्वश्रेष्ठ और सर्वशक्तिमान है। इसलिए लोगों को सर्वप्रथम प्रभु की प्रेम को समझने की जरूरत है।

Bible study 7 प्रभु यीशु की महान प्रेम

प्रभु यीशु की तरह महान प्रेम किसी ने नहीं किया है, न कर सकता है। क्योंकि ( लूका 23:34 ) की वचन में उसने मृत्यु की आखिरी घड़ी में भी अपने दुश्मन को क्षमा कर दिया था। इससे यह शिक्षा मिलती है, कि लोगों को अपने अपराधियों को क्षमा करना चाहिए। क्योंकि न्याय करना मनुष्य का काम नहीं! बल्कि परमेश्वर का काम है। क्योंकि ( मत्ती 5:44 ) की वचन में प्रभु यीशु कहते हैं, कि अपने बैरियों से प्रेम रखो और अपने सताने वालों के लिये प्रार्थना करो।

पर आजकल के लोग बिना कारण से झगड़ा और दुश्मनी कर बैठते हैं। सोचने वाली बात यह है, कि लोगों को क्रोध, झगड़ा और दुश्मनी से कोई भी लाभ नहीं मिलता है। इसलिए लोगों को दुष्टतापूर्ण व्यबहार और बुरे कर्म को छोड़कर सच्चाई के मार्ग पर चलना चाहिए। मैं जानता हूं, कि यदि कोई किसी को प्रेम, दिखाता है, सम्मान करता है, तो उसे लोग कमजोर समझने लगते हैं। वैसे विपरीत परिस्थितियों में लोगों को धीरज धर कर चलना चाहिए।

क्योंकि लोग सिर्फ मुंह से सत्य बोलते हैं, पर सत्य के अनुसार चलते नहीं हैं। देखिए प्रभु यीशु ने दुश्मनों को प्रेम करने की बात सिर्फ मुंह से नहीं कही थी, बल्कि मृत्यु के अंतिम घड़ी में, सूली पर चढ़कर भी दुश्मनों को क्षमा करके प्रेम करना सिखाया था। क्या ऐसा प्रेम कोई कर सकता है। मैं तो कहूंगा की ऐसा प्रेम करना इस धरती के लोगों के लिए असम्भव है।

Bible study 8 यीशु पुनरूत्थान और जीवन है

( यूहन्ना 11:25 ) की वचन में यीशु ने उस से कहा, पुनरुत्थान और जीवन मैं ही हूं, जो कोई मुझ पर विश्वास करता है वह यदि मर भी जाए, तौभी जीएगा।”जब भी किसी की मृत्यु होती है, तो मरने वाले के सिवा और किसी को पता नहीं होता कि मरने के पश्चात उसका क्या हुआ। पर ( मत्ती 28 ) अध्याय में बाइबल बताती है की प्रभु यीशु मरने के बाद भी अपने वचन के अनुसार जी उठे थे। इससे प्रभु यीशु पर विश्वास करने वाले लोगों को यह हियाब होता है, कि उनका भी पुनरुत्थान होगा। जिस तरह प्रभु ने 4 दिन के मरे हुए लाजार को जिंदा कर के दिखा दिया कि वह पुनरुत्थान और जीवन है। जो उस पर विश्वास करेगा वह मरने पर भी जीवित रहेगा। दोस्तों शारीरिक मृत्यु तो सबकी होती है। पर प्रभु यीशु को विश्वास करके उनकी शिक्षाओं पर चलने से,आत्मा की मृत्यु अर्थात नरक में जाने से बच सकते हैं।

दोस्तों संसार का कानून भी पापी को दंड देता है। तो जरा सोचिए परमेश्वर का कानून क्या पापियों को छोड़ देगा। अर्थात यदि आप इस संसार में पाप गुनाह, अपराध करते हैं, और कानून के हाथ में पड़ जाते हैं, तो सजा के कारण जीते जी मृत्यु की सी हालत हो जाती है। जरा सोचिए, कि जिस पाप को करने के लिए परमेश्वर मना कर रहा है। फिर यदि कोई उस पाप को करता है, तो उसके लिए किस प्रकार की दंड होगी, वह तो परमेश्वर ही जानता है। यदि आप प्रभु पर विश्वास करते हैं, तो उसकी वचनों को भी मान कर चलना पड़ेगा। फिर यदि आप प्रभु के वचन को मानते हैं, तो डेफिनेटली आपको उसके वचन के अनुसार जीवन भी मिलेगा।

Bible study 9 यीशु मसीह का पुनरागमन

बाइबल बताती है, कि प्रभु यीशु फिर आएंगे। ( प्रेरितों के काम 1:10-11 ) की वचन बताती है, कि जब चेलों ने प्रभु यीशु को स्वर्ग की ओर जाते वक्त ताकते रह गये, तो दो स्वर्ग दूत यह कहते हैं, कि जिस प्रकार से तुम ने उसे स्वर्ग को जाते देखा है, उसी तरह से वह फिर आएगा। फिर ( मत्ती 16:27 ) की वचन भी कहता है। मनुष्य का पुत्र अर्थात प्रभु यीशु अपने स्वर्गदूतों के साथ अपने पिता की महिमा में आएगा। और उस समय वह हर एक को अपने-अपने कामों के अनुसार प्रतिफल देगा। फिर ( प्रकाशित वाक्य 1:7 ) की वचन कहता है, कि प्रभु यीशु बादलों पर आने वाला है।

इन सारे वचनों से यह प्रमाणित होता है, कि प्रभु यीशु अपने कहे वचनों के अनुसार जरूर आएंगे। वचन कहता है, कि जब वह आएंगे तो सारी सृष्टि का न्याय होगा। यदि कोई मनुष्य प्रभु की न्याय से बचना चाहते हैं, तो ईमानदारी और सच्चाई से जीवन जीने की जरूरत है। क्योंकि जब प्रभु ने पहली बार आया था, तो अपना जीवन हम सब मनुष्य के लिए कुर्बान कर दिया कि हम उसके प्रेम को देखकर अपने अपने पाप से फिरकर उसकी शिक्षा के अनुसार चलें। पर उसका दूसरा आगमन प्रेम का नहीं! बल्कि न्याय का होगा। यदि आप परमेश्वर की न्याय से बचना चाहते हैं, तो उसकी आगमन से पहले पाप को छोड़कर सच्चाई और खराई से जीवन जीना प्रारंभ कर दीजिए।

निष्कर्ष

दोस्तों हमने आपके जीवन की उपकार लिए, आपको मार्ग दिखाने के लिए, इस Bible study में जो वचन को रखा है, हम उम्मीद करते हैं, कि वह आपके जीवन के कठिन परिस्थितियों में काम आ सकेगा। मनुष्य हर पल अपने मन की सुनता है, पर यहां पर समझने वाली बात यह है, की लोगों को परमेश्वर की भी सुनने की जरूरत है।

क्योंकि यदि आप मनुष्य के द्वारा लिखी गई इतिहास की किताब को पढ़ते हैं, फिर नाना प्रकार की मनोरंजन की किताब को पढ़ते हैं, फिल्में देखते हैं, सीरियल देखते हैं, तथा अनेकानेक सांसारिक मनोरंजन का लुफ्त उठाते हैं। पर बाइबिल में लिखी गई प्रभु यीशु की जीवन देने वाली वचन को नहीं पड़ते हैं, तो आप बहुत पीछे हैं, मैं कहता हूं कि आप बहुत पीछे हैं। समझदार को इशारा काफी है। दोस्तों यदि आपको वचन अच्छा लगा हो तो कमेंट जरूर कीजिएगा। धन्यवाद।।

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