ईस्टर डे यीशु की पुनरुत्थान यानी पास्का पर्व सिर्फ ईसाइयों के लिए नहीं; बल्कि यह मानव जाति के लिए; जन्म; मृत्यु और जी उठने का पैगाम है। धरती के इतिहास में यीशु मसीह को छोड़कर मरने के तीन दिन बाद; जी उठने का प्रमाण कहीं पर भी; नहीं मिलता है। क्योंकि इस संसार का एक ऐसा नियम है; की जो कोई भी यहां पर जन्म लिया है; उसे मरना ही पड़ता है। चाहे वह रेंगने वाले; तैरने वाले; या तो फिर उड़ने वाले; किसी भी प्रकार की जीव-जंतु या प्राणी क्यों ना हो; अंत में उनका मृत्यु होना स्वाभाविक है।
ईस्टर पर्व की महत्व को समझने के लिए; तीन बात पर ध्यान देना चाहिए; क्योंकि उसकी महत्व; मनुष्य का जन्म; मृत्यु और पुनरुत्थान से जुड़ी है।
मनुष्य का जन्म से ईस्टर डे का संबंध
आम तौर पर देखा जाए तो; किसी का जन्म होने का मतलब जीवन का अस्तित्व को समझा जाता है। क्योंकि संसार में जन्म होने वाले प्रत्येक प्राणी (मनुष्य) में जीवन रहता है। जन्म और पुनर्जन्म एक चेन की तरह जुड़ा है। क्योंकि जन्म के बाद मृत्यु और फिर पुनर्जन्म होता है। ईस्टर डे भी यही संदेश लोगों को बताता है; की जिसने भी संसार में जन्म लिया है; मृत्यु के पश्चात उन सबों की पुनर्जन्म होना अनिवार्य है; चाहे वह अनंत दंड के लिए हो या तो फिर अनंत जीवन के लिए। यह किसी की इच्छा पर निर्भर नही करता; बल्कि ईश्वर के द्वारा ठहराए गए; विधान के अनुसार घटित होता है। ईस्टर डे भी यीशु का पुनर्जन्म की कथा बताता है।
यीशु की मृत्यु का बलिदान
कोई भी व्यक्ति नहीं चाहता कि उसका मृत्यु हो; परंतु जैसे एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया; और पाप के द्वारा मृत्यु; फिर इस प्रकार से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई; क्योंकि सब ने पाप किया। (रोमियो 5:12 ) आदम के आज्ञा न मानने के कारण जो पाप हुआ; उसका परिणाम इतना भयानक था; कि सारे मानव जाति को मृत्यु के आगोश में धकेल दिया। मनुष्य आदम के वंश होने के नाते; उन पर पहली मृत्यु (शारीरिक) और दूसरी मृत्यु (आत्मा) की जिसे हम नर्क का दंड भी कहते हैं; वह राज्य करता है। इस बड़ी मृत्यु से बचाने के लिए; ईश्वर लोगों को अनुग्रह करता है; और अपने पुत्र को क्रुस पर चढ़ा देता है। ताकि विश्वास करने वाले लोग अनंत जीवन पा सकें। (यूहन्ना 3:15)
यीशु की पुनरुत्थान दिवस ईस्टर डे
ईस्टर डे यीशु की पुनरुत्थान दिवस है; क्योंकि प्रभु यीशु मरने के 3 दिन बाद; जी उठ कर मनुष्य जाति को; अनंत मृत्यु के विनाश से बचाए थे। इस पवित्र पर्व अर्थात प्रभु यीशु की मृत्यु और जी उठने में सहभागी होने के लिए; ईसाई लोग 40 दिन की उपवास; प्रार्थना और धर्म-कर्म में लिप्त रहते हैं। लोगों की जानकारी के लिए मैं यहां पर बता देना चाहता हूं; की सिर्फ ईस्टर डे के लिए; उपवास प्रार्थना और धर्म-कर्म करने की बजाय; आजीवन के लिए पाप को त्याग कर दें तो अच्छा होगा।
क्योंकि प्रभु यीशु लोगों की पाप के लिए; क्रुस पर एक बार मरे और वह बार-बार नहीं मरेंगे। इसलिए जब भी कोई मनुष्य उपवास और प्रार्थना के द्वारा अपने आपको शुद्ध और पवित्र करता है; तो बार-बार पाप में नहीं पड़ना चाहिए। नहीं तो यीशु की मृत्यु और पुनरूत्थान उस मनुष्य के लिए बेकार हो जाएगा।
निष्कर्ष
अंत में मैं यही कहना चाहूंगाा; कि जैसे गुड फ्राइडे के दिन प्रभु यीशु की मृत्यु पर शोक दिवस मनाते हैं; उसी प्रकार ईस्टर डे या ईस्टर संडे को यीशु की मरने के तीन दिन बाद मुर्दों में से जी उठने की खुशी में त्योहार मनाया जाता है। इसलिए सिर्फ शारीरिक खुशी पर सीमित न रखकर; आत्मिक तौर पर भी खुशी मनाना चाहिए। क्योंकि शारीरिक खुशी शरीर की अभिलाषाओं को पूर्ण करना चाहती है; परंतु आत्मिक खुशी ईश्वर की आज्ञाओं को मानना सिखाती है। क्योंकि प्रभु यीशु मनुष्य जाति के लिए बार-बार नहीं; बल्कि एक बार और हमेशा-हमेशा के लिए मर कर जी उठ चुके हैं। इसलिए यीशु मसीह का पुनरुत्थान मनुष्य जाति के लिए; ईश्वर की ओर से एक तोहफा है। इसे खोना नहीं; बल्कि सम्भाल कर रखना चाहिए।हाल्लेलूया।
ईस्टर डे क्या है?
ईस्टर डे यीशु की पुनरुत्थान दिवस है; क्योंकि प्रभु यीशु मरने के 3 दिन बाद; जी उठ कर मनुष्य जाति को; अनंत मृत्यु के विनाश से बचाए थे।
ईस्टर संडे क्युं मनाया जाता है?
जैसे गुड फ्राइडे दिन प्रभु यीशु की मृत्यु पर शोक दिवस मनाते हैं; उसी प्रकार ईस्टर डे या ईस्टर संडे को यीशु की मरने के तीन दिन बाद मुर्दों में से जी उठने की खुशी में त्योहार मनाया जाता है।