4 प्रकार की प्रार्थना के बारे में जानना क्यों important है। देखिए, प्रार्थना सर्वशक्तिमान ईश्वर से की जाती है। जल थल नभ तथा सारे कायनात को रचने वाले ईश्वर के आगे, पूरी सृष्टि को झुकना पड़ता है। क्योंकि वह महा प्रतापी और सर्वशक्तिमान है। स्वर्ग में दूत और संत ईश्वर की महिमा करते हैं, परंतु क्या आप जानते हैं, ईश्वर मनुष्य को सब जीवो में सर्वश्रेष्ठ इसलिए बनाया और बोलने की वाणी दी है, कि वे ईश्वर की उपासना करें। परन्तु जिस तरह की दुआ मनुष्य के द्वारा की जाती है; क्या इससे परमेश्वर प्रसन्न होता है? या क्या आप कभी जानने की कोशिश किए हैं; कि परमेश्वर को किस प्रकार की प्रार्थना से प्रसन्नता मिलती है? अगर आप जानना चाहते हैं, कि लोगों के द्वारा किस प्रकार की दुआ की जाती है, इसे जानना चाहते हैं, तो इस विषय को जरूर पढ़ने की कष्ट करें।
साधारण प्रार्थना
4 प्रकार की प्रार्थना में से, यह एक ऐसी प्रार्थना है, जिसको लोग चलते-फिरते उठते-बैठते, नाचते-गाते; सोते-जागते, खाते-पीते और सभी समय में करते हैं। कहने का मतलब जब मर्जी प्रभु का नाम ले लेते हैं। क्योंकि लोग अकारण और असमय में भी हे यीशु, हे प्रभु, हे ईश्वर; हे भगवान और हे खुदा इत्यादि इत्यादि कह कर परमेश्वर का नाम को लेते हैं। परंतु बाइबल में लिखी 10 आज्ञा में से दूसरी आज्ञा यह कहता है; (निर्गमन 20:7) परमेश्वर का नाम व्यर्थ न लेना। क्योंकि परमेश्वर आम इंसान नहीं है; बल्कि वह सर्वशक्तिमान और सम्मान का योग्य है। उसका नाम से बड़े बड़े आश्चर्य कर्म होते हैं, इसलिए लोगों को बड़ी भक्ति के साथ ईश्वर की नाम को उच्चारण करना चाहिए।
संसारिक प्रार्थना
4 प्रकार की प्रार्थना से यह एक ऐसी प्रार्थना है, जिसका उद्देश्य सिर्फ लोगों को दिखाने के लिए, की जाती है। प्रार्थना के जरिए से लोग ईश्वर को धन्यवाद देने के साथ-साथ प्रतिफल पाने की भी आशा करते हैं। परन्तु कुछ लोग चिल्ला-चिल्लाकर और लोगों के भिड़ में दुआ करके सोचते हैं; कि उनकी प्रार्थना ईश्वर के द्वारा जल्दी सुनी जाएगी। परंतु उन्हें यह भी नहीं पता; कि ऐसी प्रार्थना से उन्हें सिर्फ लोगों से प्रशंसा मिल सकती है; परंतु ईश्वर से नहीं। क्योंकि वे अपना प्रतिफल लोगों की प्रशंसा के द्वारा पा चुके हैं। (मत्ती 6:5) इसलिए यह जानना जरूरी है, कि इस प्रकार की प्रार्थना के द्वारा ईश्वर से फल प्राप्ति की आशा करना बेवकूफी है। क्योंकि दिखावा की प्रार्थना आत्मिक लोग नहीं! बल्कि सांसारिक चिंता धारा के लोग करते हैं।
भ्रमित प्रार्थना
4 प्रकार की प्रार्थना की बात करें तो यह एक ऐसी प्रार्थना है, जिसे सुख शांति में रहने वाले लोग करते हैं। सुख शांति में रहकर वे यह भूल जाते हैं, की किसके लिए और किस विषय को लेकर ईश्वर से प्रार्थना करना चाहिए। क्योंकि प्रार्थना करने के समय, शैतान उनके दिमाग को इधर उधर की चीजों से भरकर भटकाते रहता है। वैसे लोग प्रार्थना करने के लिए तो खड़े होते हैं; परंतु उनका मन ईश्वर से कोसों दूर रहता है। इसलिए (मत्ती 15:8) और (यशायाह 29:13) की वचन कहता है, कि ये लोग मुंह से मेरी भक्ति तो करते हैं, परंतु इनका मन मुझसे बहुत दूर रहता है। इसलिए स्मरण रखें कि जब भी प्रार्थना करने के लिए खड़े हों, तो तन मन से ईश्वर की आराधना करें। वरना ईश्वर से प्रतिफल की आशा करना व्यर्थ है।
सच्ची प्रार्थना
4 प्रकार की प्रार्थना में से सच्ची प्रार्थना की भूमिका अहम रहती है। क्योंकि लोगों के जेहन में हमेशा यही सवाल रहता है? कि प्रार्थना क्यों किया जाता है? अपनी मन की संतुष्टि के लिए, लोगों को दिखाने के लिए या ईश्वर तक सुने जाने के लिए। परंतु सबको पता है कि प्रार्थना करने का एक ही उद्देश्य होता है, कि वह ईश्वर तक पहुंचे। (मत्ती 6:6) के वचन के अनुसार प्रभु यीशु का कहना है, कि जब भी कोई प्रार्थना करें तो वह अपनी कमरे में जाकर पिता परमेश्वर से प्रार्थना करें, जो गुप्त में रहकर सब कुछ देखता है; वह उसे प्रतिफल देगा। बंद कमरे में जाकर प्रार्थना करने के लिए प्रभु यीशु इसलिए कहते हैं, कि वहां disturb करने के लिए कोई नहीं रहेगा। क्योंकि प्रार्थना करते समय बाधा उत्पन्न होने से ध्यान भटकता है।
- बाइबल कहता है, मनुष्य के मांगने से पहले ही ईश्वर जानते हैं, की लोगों को किन-किन चीजों की आवश्यकता है। क्योंकि परमेश्वर सब मनुष्य का उठना-बैठना, और चलना-फिरना जानते हैं। (भजन संहिता 139:2-3) इसलिए सच्चे मन से ईश्वर की आराधना करना चाहिए। भक्ति इतना हो कि आंखों से आंसू निकलने लगे।
- जब कभी भी मनुष्य के सामने समस्या संकट बीमारी की स्थिति पड़ती है तब वे ईश्वर से प्रार्थना करते हैं। परंतु ईश्वर से किस तरह की प्रार्थना करना चाहिए जिससे वह प्रसन्न हो जाए? (2 इतिहास 7:14) के वचन से यह ज्ञात होता है की ईश्वर को घमंडी लोग नहीं, बल्कि बुरी चाल चलन को छोड़कर, दीन होकर प्रार्थना करके परमेश्वर को ढूंढने वालों से वह प्रसन्न होता है। अपनी सभी पापों के लिए, क्षमा मांग कर विनम्र के साथ की जाने वाली प्रार्थना से ईश्वर प्रसन्न होता है। तभी वह स्वर्ग से सुन कर लोगों का पाप क्षमा करके दुआ को कबूल करेगा। क्योंकि लोगों की प्रार्थना ईश्वर तक पहुंचने में पाप बाधा उत्पन्न करती है। इसलिए सबसे पहले आपने किए हुए पाप गुनाहों के लिए ईश्वर से क्षमा मांगना चाहिए।
निष्कर्ष
जब भी प्रार्थना करने के लिए खड़े होते हैं, तो सबसे पहले दूसरों की गुनाहों को माफ करते हुए; अपने गुनाहों के लिए भी ईश्वर से माफी मांग कर ईश्वर से प्रार्थना करें। मेरा यकीन मानिए, कि ईश्वर आपकी प्रार्थना को सुनने में देर नहीं करेगा। क्योंकि जो कोई भी संपूर्ण मन से ईश्वर को पुकारता है, उसकी प्रार्थना वह सुनता है। (यिर्मयाह 29:12)। सबको पता है, कि किसी भी काम को मन लगाकर न करने से उसमें सफलता नहीं मिलती है। यदि कोई चाहता है, कि उसकी प्रार्थना ईश्वर तक पहुंचे; तो उसे संपूर्ण मन से ईश्वर को पुकारना पड़ेगा। मैं आशा करता हूं, की 4 प्रकार की प्रार्थना को पढ़कर प्रार्थना के विषय में चल रही मन की लघुशंका दूर हो गई होगी। धन्यवाद।।