फिलेदिलफिया की कलीसिया को लिखे गए पत्र से पता चलता है, कि जो लोग प्रभु पर संपूर्ण आस्था रखते हैं; उनके साथ प्रभु रहता है और सभी प्रकार की विपरीत समस्या से उनको बाहर निकलता है। क्योंकि प्रभु यीशु के पास स्वर्ग और धरती, समस्या और बीमारी; जीवन और मृत्यु की चाभी है। अगर वह जिसको ताला लगा दे तो उसे कोई भी खोल नहीं सकता और जिसे वह बंद कर दे तो उसे खोलने की सामर्थ किसी में नहीं है। क्योंकि वह सत्य, पवित्र और सर्वशक्तिमान है। क्या आपके भी कुछ ऐसे बंद द्वार हैं? और यह भी चाहते हैं, कि वह आपके लिए खुल जाए; तो प्रकाशित वाक्य 3:7-13 के वचन को जरूर पढ़ने की कष्ट करें। हो सकता है, कि आपके जीवन में भी कुछ ऐसे सवाल होगी और उसकी जवाब इस वचन से आपको मिल जाए।
कलीसियाओं की सामर्थ और सफलता राज
फिलेदिलफिया की कलीसिया के दूत को लिखे गए पत्र बताता है, कि कलीसिया के लोगों के लिए, सामर्थ और सफलताा का द्वार हमेशा प्रभु खोल कर रखते हैं। परन्तु धरती में कुुछ ऐसे लोग हैं, जो कि संसारिक विषय-वस्तु में अपना अधीकार रखना चाहते हैं। परन्तु ईश्वर की आज्ञा मानना, वचन का पालन और प्रभु की सामर्थ पाने की दिलचस्पी दिखाने वाले लोग बहुत कम मिलते हैं। लोग सफलता पाने के लिए न जाने कहां-कहां भटकते फिरते हैं, और बंद किस्मत को खुलवाने के लिए क्या-क्या नहीं करते हैं। परंतु किस्मत ऐसे ही नहीं खुलते, बल्कि वह प्रभु यीशु के नाम और वचन से खुलते हैं। परन्तु शर्त यह है कि, व्यक्ति, प्रभु यीशु के नाम और वचन को अपने जुबान से इंकार न करता हो! प्रभु यीशु और उनका वचन को इनकार करने का मतलब; पाप बुराई और शैतान की प्रत्येक कार्यों में लिप्त रहना है; फिर जो व्यक्ति पाप और बुराई में जीवन गुजारते हैं, उनके लिए अच्छाई का दरवाजा प्रभु की ओर से हमेशा-हमेशा के लिए बंद हो जाता है। परंतु जो लोग प्रभु की आज्ञा और वचन का पालन करते हैं; उनके लिए बंद किस्मत और बंद दरवाजे भी खुल जाते हैं। उनके जीवन में वे, सफलता की बुलंदी पर पहुंचते हैं, और विरोधियों को भी प्रभु उनके कदमों में झुका देता है। जो लोग प्रभु पर भरोसा और प्रेम करते हैं, वह उनका साथ कभी नहीं छोड़ता है। क्योंकि प्रभु सर्वशक्तिमान है, और वह कुछ भी करने में सक्षम है।
धीरज के वचन
फिलेदिलफिया की कलीसिया के दूत को लिखे गए पत्र के प्रकाशित वाक्य 3:10 में लिखा है, तूने मेरे धीरज के वचन को थामा है; अर्थात जो मनुष्य प्रभु के वचनों को अपने हृदय में थामें रहेगा, जैसे कि सारी दीनता, नम्रता और धीरज के साथ जो प्रेम से एक दूसरे को सहेगा; (इफिसियों 4:2) उसे प्रभु बचाए रखेंगे, जिस समय शैतान की ओर से परीक्षा होगी। क्योंकि प्रभु भक्तों को परीक्षा से निकाल लेना और अधर्मीयों को दंड देना भी जानता है। (2 पतरस 2:9)। क्योंकि प्रभु शीघ्र आने वाला है, इसलिए लोगों को अच्छाई और सच्चाई से चलने में ही भलाई है; नहीं तो प्रभु की ओर से मिलने वाला मुकुट उसके हाथ से छीन सकती है। इसलिए सदा ध्यान देते रहें, की बुराई आपके जीवन में घर ना कर पाए।
मंदिर का खंभा
फिलेदिलफिया की कलीसिया के पत्र बताता है, कि जो जय पाएगा अर्थात प्रभु के मार्ग (यूहन्ना 14:6) और सत्य के वचनों पर चलता रहेगा,वह परमेश्वर का खास व्यक्ति होगा। क्योंकि प्रभु कहते हैं, परमेश्वर के पास अर्थात स्वर्ग से उतरने वाली नई यरुशलेम मंदिर में अपना नया नाम लिखूंगा, और वह उसका खंभा होगा। जरा सोच कर देखिए, जिस नये यरूशलेम की कल्पना प्रभु कर चुके हैं, उस में प्रवेश करना एक मनुष्य के लिए कितना सौभाग्य की बात हो सकती है। परंतु क्या मनुष्य ईश्वर की राज्य के लिए कोई चिंता करती हैं, नहीं! बल्कि संसारिकता की मोह-माया में इस कदर बन्धा हुआ रहता है; कि वहां से निकलना उसके लिए मुश्किल बन जाता है। परंतु प्रभु बार-बार लोगों को चेताते रहते हैं, कि वे कुमार्ग को छोड़कर सत्य के मार्ग पर चलें।
निष्कर्ष
फिलेदिलफिया की कलीसिया को लिखें इस पत्र के द्वारा लोगों को प्रभु कहते हैं, कि जिसका कान हो वे सुन ले अर्थात सत्य को सुने समझे और उसके अनुसार जीवन गुजारें। क्योंकि जैसे समय किसी का इंतजार नहीं करता; वैसे ही मनुष्य का जीवन की घड़ी भी कभी नहीं रुकता। पर सोचिए यदि मनुष्य के पास एक अच्छी पदार्थ से बनी खाना और दूसरी जो खाने की योग्य न हो वैसी पदार्थों से बना हुआ खाना रखा जाए; तो वह उसमें से किसे चुनेगा! हमेशा वह अच्छा को ही चुनेगा है ना। परंतु अपने जीवन की बात जब आती है, तो मनुष्य सत्य को छोड़कर पाप बुराई को हमेशा ही चुन लेता है। क्योंकि पाप की लड्डू लोगों को मीठा लगता है, और सत्य उनको कड़वाहट जान पड़ता है। परंतु एक बात जान लेना अति आवश्यक है, कि भले ही पाप का लड्डू मीठा लगे, पर उसका अंत जोखिम भरा हो सकता है; और सत्य जितनी भी कड़वाहट हो, फिर भी उसका अंत अच्छा ही होता है। क्योंकि लोग कहते हैं अंत भला तो सब भला। इसलिए समझदार व्यक्ति बने। हाल्लेलुय्याह।।