स्मुरना की कलीसिया के दूत को प्रभु यीशु मसीह के द्वारा यूहन्ना को पत्र लिखने को कहा जाता है। ज्ञात हो कि मनुष्य के जीवन का सुख और दुख सिक्के के दो पहलू की तरह ही होता है। परंतु दुःख; सहना धार्मिकता और ईश्वर की महिमा के लिए हो तो अच्छा है, पर अगर मनुष्य को, अपने कुकर्म के लिए; दुख सहना पड़े; तो वह उसके लिए दुखदायक हो सकता है। और इस बात को प्रभु स्मुरना की कलीसिया के दूत को अवगत करवाना चाहते हैं। प्रकाशित वाक्य 2:9-11 के इस भाग में मनुष्य की दुख तकलीफ और परीक्षा के बारे में जानने को मिल सकता है। अगर आप प्रभु के वचन से; अपने जीवन में होने वाले, हर प्रकार की दुःख तकलीफ और समस्याओं के बारे में जानना चाहते हैं; तो कृपया इस वचन को पढ़ने की कष्ट करें।
स्मुरना की कलीसिया के दूत को जीवित परमेश्वर का पत्र
वर्तमान के समय में, अपने से दूर रहने वाले किसी भी व्यक्ति को अगर कोई कुछ कहना चाहता है; तो उसके लिए मोबाइल फोन एक आसान सा माध्यम है। फोन कल के अलावा अगर कोई लिखकर कुछ कहना चाहे; तो उसके लिए ई-मेल, व्हाट्सएप, फेसबुक या कोई भी प्रकार की चैटिंग प्लेटफार्म से उसके साथ कनेक्ट हो सकते हैं। परंतु पहले ऐसे नहीं था, दूर-दूर के लोग दूसरों से पत्र के माध्यम से बातें किया करते थे। पर जरा सोचिए, इस तकनीकी युग में परमेश्वर आपको एक मोबाइल फोन का इस्तेमाल करने के लिए दिया है; और अगर आप उस मोबाइल फोन का इस्तेमाल प्रभु के वचन को देखने-सुनने; पढ़ने तथा अच्छे कामों में इस्तेमाल करने के बजाय, यदि आप अपनी शारीरिक अभिलाषाओं को पूर्ण करते हैं, तो सोचिए आप कितने निचे गिर चुके हैं। सदा जीवित रहने वाले प्रभु इस वचन से यही बात आपको तथा स्मुरना की कलीसिया के दूत को अवगत करवाना चाहता है।
क्लेश के बारे में स्मुरना की कलीसिया को आगाह
इस पत्र पर प्रभु स्मुरना की कलीसिया के दूत को कहते हैैं; मैं तेरी क्लेश और दरिद्रता से भलीभांति परिचित हूं। परंतु तू दरिद्र नहीं धनी है। उन दिनों यीशु मसीह के सामर्थ के बारे में अन्य जाति के लोगों को मालूम नहीं था; इसलिए सुसमाचार प्रचार करते वक्त मसीही लोगों का विरोध करते हुए उन्हें क्लेश पहुंचाते थे। यह बात प्रभु जानते थे; कि उनकी कलीसिया को क्लेश का सामना करना पड़ रहा है। परंतु सत्य का मुंह को कोई भी बंद नहीं कर सकता है; जितने भी लोग प्रभु की सामर्थ और सुसमाचार को मिटाने चले थे, वे खुद-ब-खुद मिट गए। कलीसिया की शुरुआती दौर में शिष्यों को सताने वालों में से शाऊल का नाम, सबसे आगे आता है; (प्रेरितों के काम 22:3-16) परंतु अंत में वह भी प्रभु का शिष्य बन जाता है। क्योंकि यीशु मसीह कल जैसे थे; आज भी वैसे ही हैं; और भविष्य में अर्थात युगानुयुग एक जैसा ही रहेंगे। उनका परिवर्तन होना असम्भव है; क्योंकि वह अपरिवर्तनीय प्रभु है। (इब्रानियों 13:8) दिन, महीना तथा वर्ष का अंत और शुरुआत लोगों के लिए बार-बार होते रहता है। परंतु ईश्वर के लिए वर्षों का अंत कभी नहीं होता है। (भजन संहिता 102:27)
प्रभु को स्मुरना की कलीसिया के दूत कि धनी और दरिद्रता के बारे में ज्ञात था
प्रभु को स्मुरना की कलीसिया के दूत कि दरिद्रता के बारे में ज्ञात था; फिर भी उसने कहा कि तू धनी है। देखिए एक विश्वासी सेवक के पास भले ही कुछ ना हो; परंतु वह संपूर्ण तन मन के साथ, सच्चाई और ईमानदारी से चलने वाला इंसान हो; तो उसके साथ स्वयं प्रभु रहते हैं; और जिसके साथ प्रभु हो; तो उसकी कोई चीज की घटी नहीं हो सकती। क्योंकि (भजन संहिता 34:10) के वचन कहता है; भले ही जवान सिंहो को घटी हो सकती है; परंतु ईश्वर को ढूंढने वाले लोगों को किसी भी चीज की घटी नहीं होगी। (भजन संहिता 23:1) पर आधा अधूरा विश्वास करने वाले लोगों की बात, मैं नहीं कर रहा हूं। यहां पर संपूर्णणतरह से विश्वास करने वालों की बात चल रही है।
सच्चे और झूठे मसीह लोग
प्रभु का कहना है; कि स्मुरना की कलीसिया में कुछ ऐसे लोग थे; जो अपने आप को यहूदी मानते थे; परंतु वे यहूदी न होकर भीड़ में इकट्ठे होने वाले शैतान की सभा थे। दिलचस्प बात तो यह है; कि वर्तमान की कलीसिया में भी इस तरह की झूठे मसीह कहलाने वाले लोग बहुत हैं। क्योंकि वैसे लोग खुद को मसीही तो मानते हैं; परंतु यीशु मसीह की आज्ञा के अनुसार चलते नहीं। उनका मन पाप और बुराई से भरा हुआ रहता है। मेरा कहने का मतलब यह है; कि यदि मसीह कहलाने वाले लोग व्यभिचारी, लोभी; मूर्तिपूजक, गाली देने वाले; पियक्कड़, या अन्धेर करने वाले होकर, (1 कुरिन्थियों 5:11) प्रभु की सभा में उपस्थित रहते हैं; तो वह ईश्वर की सभा न होकर शैतान की सभा बन जाता है। (प्रकाशित वाक्य 2:9)। इसीलिए हमें पाप और बुराई को त्याग करके अच्छे मसीही बनना चाहिए। यह न हो कि मुंह में सिर्फ यीशु यीशु नाम और चाल चलन में शैतान के काम।
मनुष्य का परखा जाना
कभी कभार ऐसा होता है, कि मनुष्य जिसकी कल्पना नहीं करता; वह घटना उसके जीवन में घटने लगता है। भले ही वह सच्चाई; न्याय, धार्मिकता और प्रार्थनामय जीवन गुजारता हो। ऐसा क्यों होता है? इसलिए ऐसा होता है; ताकि तुम परखे जाओ। शैतान अनेक किस्म की समस्या उत्पन्न करता है; ताकि लोगों का विश्वास प्रभु पर से उठ जाए। परंतु स्मुरना की कलीसिया को लिखी गई पत्र के द्वारा; प्रभु लोगों को याद दिलाना चाहते हैं; की परखे जाने के समय में; बिना डरे और अन्त तक उसका सामना करना है। तभी जीवन का मुकुट मिलेगा। अक्सर देखा जाता है; संसारिक विषय वस्तु की प्रतियोगिता को जीतने के लिए लोग जी जान लगा देते हैं; परंतु; जरा सोच कर देखिए; अपनी जीवन की मुकुट के लिए हार जाना; क्या उचित होगा।
निष्कर्ष
अंत में मैं एक बात कहना चाहूंगा; की लोग यह न सोचें कि प्रभु हमें नहीं; बल्कि स्मुरना की कलीसिया के दूत को कहा है। स्मरण रहे कि प्रभु यह जिम्मेदारी कलीसिया के प्रचारकों को दिया है; और प्रचारक प्रभु का वचन को आपको; हमें और लोगों को सुनाते हैं। इसलिए पवित्रात्मा के द्वारा कलीसियाओं; को कहा गया वचन पर ध्यान देना चाहिए। वचन कहता है; जय पाने वालों पर दूसरी मृत्यु का प्रभाव नहीं पड़ेगी। अवश्य है; कि मनुष्य जन्मा है; तो मृत्यु भी होगी। परंतु इस वचन से ज्ञात होता है; कि यदि मनुष्य सत्यता पर न चले तो उसकी दूसरी मृत्यु हो सकती है। जिसे हम नर्क का यातनाएं कह सकते हैं। हाल्लेलूइया।। धन्यवाद।।
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