रोमियो अध्याय 9:1-32 ¹ मैं मसीह में सच कहता हूं, झूठ नहीं बोलता और मेरा विवेक भी पवित्र आत्मा में गवाही देता है।
² कि मुझे बड़ा शोक है; और मेरा मन सदा दुखता रहता है।
³ क्योंकि मैं यहां तक चाहता था, कि अपने भाईयों, के लिये जो शरीर के भाव से मेरे कुटुम्बी हैं; आप ही मसीह से शापित हो जाता।
⁴ वे इस्त्राएली हैं; और लेपालकपन का हक और महिमा और वाचाएं और व्यवस्था और उपासना और प्रतिज्ञाएं उन्हीं की हैं।
⁵ पुरखे भी उन्हीं के हैं; और मसीह भी शरीर के भाव से उन्हीं में से हुआ; जो सब के ऊपर परम परमेश्वर युगानुयुग धन्य है। आमीन।
⁶ परन्तु यह नहीं, कि परमेश्वर का वचन टल गया, इसलिये कि जो इस्त्राएल के वंश हैं; वे सब इस्त्राएली नहीं।
⁷ और न इब्राहीम के वंश होने के कारण सब उस की सन्तान ठहरे; परन्तु लिखा है; कि इसहाक ही से तेरा वंश कहलाएगा।
⁸ अर्थात शरीर की सन्तान परमेश्वर की सन्तान नहीं; परन्तु प्रतिज्ञा के सन्तान वंश गिने जाते हैं।
⁹ क्योंकि प्रतिज्ञा का वचन यह है; कि मैं इस समय के अनुसार आऊंगा, और सारा के पुत्र होगा।
¹⁰ और केवल यही नहीं; परन्तु जब रिबका भी एक से अर्थात हमारे पिता इसहाक से गर्भवती थी।
¹¹ और अभी तक न तो बालक जन्मे थे; और न उन्होंने कुछ भला या बुरा किया था कि उस ने कहा; कि जेठा छुटके का दास होगा।
¹² इसलिये कि परमेश्वर की मनसा जो उसके चुन लेने के अनुसार है; कर्मों के कारण नहीं; परन्तु बुलाने वाले पर बनी रहे।
¹³ जैसा लिखा है; कि मैं ने याकूब से प्रेम किया; परन्तु एसौ को अप्रिय जाना॥
परमेश्वर कभी भी अन्याय नहीं करता है। रोमियो अध्याय 9:1-32
¹⁴ सो हम क्या कहें क्या परमेश्वर के यहां अन्याय है? कदापि नहीं!
¹⁵ क्योंकि वह मूसा से कहता है, मैं जिस किसी पर दया करना चाहूं, उस पर दया करूंगा; और जिस किसी पर कृपा करना चाहूं उसी पर कृपा करूंगा।
¹⁶ सो यह न तो चाहने वाले की; न दौड़ने वाले की परन्तु दया करने वाले परमेश्वर की बात है।
¹⁷ क्योंकि पवित्र शास्त्र में फिरौन से कहा गया; कि मैं ने तुझे इसी लिये खड़ा किया है; कि तुझ में अपनी सामर्थ दिखाऊं; और मेरे नाम का प्रचार सारी पृथ्वी पर हो।
¹⁸ सो वह जिस पर चाहता है; उस पर दया करता है; और जिसे चाहता है, उसे कठोर कर देता है।
परमेश्वर की क्रोध और दया
¹⁹ सो तू मुझ से कहेगा; वह फिर क्यों दोष लगाता है? कौन उस की इच्छा का साम्हना करता है?
²⁰ हे मनुष्य, भला तू कौन है; जो परमेश्वर का साम्हना करता है? क्या गढ़ी हुई वस्तु गढ़ने वाले से कह सकती है कि तू ने मुझे ऐसा क्यों बनाया है?²¹ क्या कुम्हार को मिट्टी पर अधिकार नहीं; कि एक ही लौंदे मे से; एक बरतन आदर के लिये; और दूसरे को अनादर के लिये बनाए? तो इस में कौन सी अचम्भे की बात है?
²² कि परमेश्वर ने अपना क्रोध दिखाने और अपनी सामर्थ प्रगट करने की इच्छा से क्रोध के बरतनों की; जो विनाश के लिये तैयार किए गए थे बड़े धीरज से सही।
²³ और दया के बरतनों पर जिन्हें उस ने महिमा के लिये पहिले से तैयार किया; अपने महिमा के धन को प्रगट करने की इच्छा की
प्रभु अपना वचन पुरा करता है।
²⁴ अर्थात हम पर जिन्हें उस ने न केवल यहूदियों में से वरन अन्यजातियों में से भी बुलाया।
²⁵ जैसा वह होशे की पुस्तक में भी कहता है, कि जो मेरी प्रजा न थी, उन्हें मैं अपनी प्रजा कहूंगा; और जो प्रिया न थी; उसे प्रिया कहूंगा।
²⁶ और ऐसा होगा कि जिस जगह में उन से यह कहा गया था; कि तुम मेरी प्रजा नहीं हो; उसी जगह वे जीवते परमेश्वर की सन्तान कहलाएंगे।²⁷ और यशायाह इस्त्राएल के विषय में पुकारकर कहता है; कि चाहे इस्त्राएल की सन्तानों की गिनती समुद्र के बालू के बारबर हो; तौभी उन में से थोड़े ही बचेंगे।
²⁸ क्योंकि प्रभु अपना वचन पृथ्वी पर पूरा करके; धामिर्कता से शीघ्र उसे सिद्ध करेगा।²⁹ जैसा यशायाह ने पहिले भी कहा था; कि यदि सेनाओं का प्रभु हमारे लिये कुछ वंश न छोड़ता; तो हम सदोम की नाईं हो जाते; और अमोरा के सरीखे ठहरते॥
³⁰ सो हम क्या कहें? यह कि अन्यजातियों ने जो धामिर्कता की खोज नहीं करते थे; धामिर्कता प्राप्त की अर्थात उस धामिर्कता को जो विश्वास से है।
³¹ परन्तु इस्त्राएली; जो धर्म की व्यवस्था की खोज करते हुए उस व्यवस्था तक नहीं पहुंचे।
³² किस लिये? इसलिये कि वे विश्वास से नहीं; परन्तु मानो कर्मों से उस की खोज करते थे; उन्होंने उस ठोकर के पत्थर पर ठोकर खाई।
Today Verses
¹ यरूशलेम के राजा, दाऊद के पुत्र और उपदेशक के वचन।² उपदेशक का यह वचन है; कि व्यर्थ ही व्यर्थ, व्यर्थ ही व्यर्थ! सब कुछ व्यर्थ है।
³ उस सब परिश्रम से जिसे मनुष्य धरती पर करता है; उसको क्या लाभ प्राप्त होता है?
⁴ एक पीढ़ी जाती है, और दूसरी पीढ़ी आती है; परन्तु पृथ्वी सर्वदा बनी रहती है।
⁵ सूर्य उदय हो कर अस्त भी होता है; और अपने उदय की दिशा को वेग से चला जाता है।
⁶ वायु दक्खिन की ओर बहती है; और उत्तर की ओर घूमती जाती है; वह घूमती और बहती रहती है; और अपने चक्करों में लौट आती है।
⁷ सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं; तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं; उधर ही को वे फिर जाती हैं।
⁸ सब बातें परिश्रम से भरी हैं; मनुष्य इसका वर्णन नहीं कर सकता; न तो आंखें देखने से तृप्त होती हैं; और न कान सुनने से भरते हैं।
⁹ जो कुछ हुआ था, वही फिर होगा, और जो कुछ बन चुका है वही फिर बनाया जाएगा; और सूर्य के नीचे कोई बात नई नहीं है।
¹⁰ क्या ऐसी कोई बात है जिसके विषय में लोग कह सकें कि देख यह नई है? यह तो प्राचीन युगों में वर्तमान थी।
¹¹ प्राचीन बातों का कुछ स्मरण नहीं रहा; और होने वाली बातों का भी स्मरण उनके बाद होने वालों को न रहेगा॥
लूक। 9
⁷ और देश की चौथाई का राजा हेरोदेस यह सब सुनकर घबरा गया; क्योंकि कितनों ने कहा; कि यूहन्ना मरे हुओं में से जी उठा है।
⁸ और कितनों ने यह; कि एलिय्याह दिखाई दिया है: औरों ने यह; कि पुराने भविष्यद्वक्ताओं में से कोई जी उठा है।
⁹ परन्तु हेरोदेस ने कहा; युहन्ना का तो मैं ने सिर कटवाया अब यह कौन है; जिस के विषय में ऐसी बातें सुनता हूं? और उस ने उसे देखने की इच्छा की॥
God bless you for reading to continue.