आध्यात्मिक जीवन रोमियो अध्याय 8:1-39 रोमियो अध्याय 8:1-39
रोमियो अध्याय 8:1-39 ¹ सो अब जो मसीह यीशु में हैं; उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं; क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं।
² क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की; और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया।
³ क्योंकि जो काम व्यवस्था शरीर के कारण दुर्बल होकर न कर सकी, उस को परमेश्वर ने किया; अर्थात अपने ही पुत्र को पापमय शरीर की समानता में; और पाप के बलिदान होने के लिये भेजकर; शरीर में पाप पर दण्ड की आज्ञा दी।
⁴ इसलिये कि व्यवस्था की विधि हम में जो शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं; पूरी की जाए।
⁵ क्योंकि शरीरिक व्यक्ति शरीर की बातों पर मन लगाते हैं; परन्तु आध्यात्मिक आत्मा की बातों पर मन लगाते हैं।
⁶ शरीर पर मन लगाना तो मृत्यु है; परन्तु आत्मा पर मन लगाना जीवन और शान्ति है।
⁷ क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है; क्योंकि न तो परमेश्वर की व्यवस्था के आधीन है; और न हो सकता है।
⁸ और जो शारीरिक दशा में है; वे परमेश्वर को प्रसन्न नहीं कर सकते।⁹ परन्तु जब कि परमेश्वर का आत्मा तुम में बसता है; तो तुम शारीरिक दशा में नहीं; परन्तु आत्मिक दशा में हो। यदि किसी में मसीह का आत्मा नहीं तो वह उसका जन नहीं।
¹⁰ और यदि मसीह तुम में है; तो देह पाप के कारण मरी हुई है; परन्तु आत्मा धर्म के कारण जीवित है।
¹¹ और यदि उसी का आत्मा जिस ने यीशु को मरे हुओं में से जिलाया तुम में बसा हुआ है; तो जिस ने मसीह को मरे हुओं में से जिलाया; वह तुम्हारी मरनहार देहों को भी अपने आत्मा के द्वारा जो तुम में बसा हुआ है जिलाएगा।
ईश्वर की वारिस रोमियो अध्याय 8:1-39
¹² सो हे भाइयो, हम शरीर के कर्जदार नहीं; ताकि शरीर के अनुसार दिन काटें।
¹³ क्योंकि यदि तुम शरीर के अनुसार दिन काटोगे; तो मरोगे, यदि आत्मा से देह की क्रीयाओं को मारोगे; तो जीवित रहोगे।
¹⁴ इसलिये कि जितने लोग परमेश्वर के आत्मा के चलाए चलते हैं; वे ही परमेश्वर के पुत्र हैं।
¹⁵ क्योंकि तुम को दासत्व की आत्मा नहीं मिली, कि फिर भयभीत हो परन्तु लेपालकपन की आत्मा मिली है; जिस से हम हे अब्बा; हे पिता कह कर पुकारते हैं।
¹⁶ आत्मा आप ही हमारी आत्मा के साथ गवाही देता है, कि हम परमेश्वर की सन्तान हैं।
¹⁷ और यदि सन्तान हैं; तो वारिस भी; वरन परमेश्वर के वारिस और मसीह के संगी वारिस हैं; जब कि हम उसके साथ दुख उठाएं कि उसके साथ महिमा भी पाएं॥
अनंत जीवन की आशा
¹⁸ क्योंकि मैं समझता हूं; कि इस समय के दु:ख और क्लेश उस महिमा के साम्हने; जो हम पर प्रगट होने वाली है; कुछ भी नहीं हैं।
¹⁹ क्योंकि सृष्टि बड़ी आशाभरी दृष्टि से परमेश्वर के पुत्रों के प्रगट होने की बाट जोह रही है।
²⁰ क्योंकि सृष्टि अपनी इच्छा से नहीं पर आधीन करने वाले की ओर से व्यर्थता के आधीन इस आशा से की गई।
²¹ कि सृष्टि भी आप ही विनाश के दासत्व से छुटकारा पाकर; परमेश्वर की सन्तानों की महिमा की स्वतंत्रता प्राप्त करेगी।
²² क्योंकि हम जानते हैं, कि सारी सृष्टि अब तक मिलकर कराहती और पीड़ाओं में पड़ी तड़पती है।
²³ और केवल वही नहीं पर हम भी जिन के पास आत्मा का पहिला फल है, आप ही अपने में कराहते हैं; और लेपालक होने की; अर्थात अपनी देह के छुटकारे की बाट जोहते हैं।
²⁴ आशा के द्वारा तो हमारा उद्धार हुआ है परन्तु जिस वस्तु की आशा की जाती है जब वह देखने में आए; तो फिर आशा कहां रही? क्योंकि जिस वस्तु को कोई देख रहा है उस की आशा क्या करेगा?
²⁵ परन्तु जिस वस्तु को हम नहीं देखते, यदि उस की आशा रखते हैं; तो धीरज से उस की बाट जोहते भी हैं॥
आत्मा की सहायता
²⁶ इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते; कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है; हमारे लिये बिनती करता है।
²⁷ और मनों का जांचने वाला जानता है; कि आत्मा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता है।
²⁸ और हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं; उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं।
²⁹ क्योंकि जिन्हें उस ने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे।
³⁰ फिर जिन्हें उस ने पहिले से ठहराया; उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराया है; और जिन्हें धर्मी ठहराया; उन्हें महिमा भी दी है॥
ईश्वर की प्रेम से हमें कोई अलग नहीं कर सकता।
³¹ सो हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारी ओर है; तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?
³² जिस ने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया; वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्योंकर न देगा?
³³ परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर वह है जो उन को धर्मी ठहराने वाला है।
³⁴ फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह वह है जो मर गया वरन मुर्दों में से जी भी उठा; और परमेश्वर की दाहिनी ओर है; और हमारे लिये निवेदन भी करता है।
³⁵ कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश; या संकट, उपद्रव; या अकाल; नंगाई; या जोखिम; या तलवार?
³⁶ जैसा लिखा है, कि तेरे लिये हम दिन भर घात किए जाते हैं; हम वध होने वाली भेंडों की नाईं गिने गए हैं।
³⁷ परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिस ने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर हैं।
³⁸ क्योंकि मैं निश्चय जानता हूं; कि न मृत्यु; न जीवन; स्वर्गदूत; न प्रधानताएं; वर्तमान; न भविष्य; सामर्थ; न ऊंचाई;
³⁹ न गहिराई और न कोई और सृष्टि; हमें परमेश्वर के प्रेम से; जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है; अलग कर सकेगी॥
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