प्रभु यीशु की राह पर चलें। रोमियो अध्याय 15:1-33
रोमियो अध्याय 15:1-33 ¹ निदान हम बलवानों को चाहिए; कि निर्बलों की निर्बलताओं को सहें; न कि अपने आप को प्रसन्न करें।
² हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उस की भलाई के लिये सुधारने के निमित प्रसन्न करे।
³ क्योंकि मसीह ने अपने आप को प्रसन्न नहीं किया; पर जैसा लिखा है; कि तेरे निन्दकों की निन्दा मुझ पर आ पड़ी।
⁴ जितनी बातें पहिले से लिखी गईं, वे हमारी ही शिक्षा के लिये लिखी गईं हैं कि हम धीरज और पवित्र शास्त्र की शान्ति के द्वारा आशा रखें।
⁵ और धीरज; और शान्ति का दाता परमेश्वर तुम्हें यह वरदान दे; कि मसीह यीशु के अनुसार आपस में एक मन रहो।
⁶ ताकि तुम एक मन और एक मुंह होकर हमारे प्रभु यीशु मसीह के पिता परमेश्वर की बड़ाई करो।
⁷ इसलिये; जैसा मसीह ने भी परमेश्वर की महिमा के लिये तुम्हें ग्रहण किया है; वैसे ही तुम भी एक दूसरे को ग्रहण करो।
यीशु सभी जातियों का प्रभु है। रोमियो अध्याय 15:1-33
⁸ मैं कहता हूं; कि जो प्रतिज्ञाएं बाप दादों को दी गई थीं; उन्हें दृढ़ करने के लिये मसीह; परमेश्वर की सच्चाई का प्रमाण देने के लिये खतना किए हुए लोगों का सेवक बना।
⁹ और अन्यजाति भी दया के कारण परमेश्वर की बड़ाई करें; जैसा लिखा है; कि इसलिये मैं जाति जाति में तेरा धन्यवाद करूंगा; और तेरे नाम के भजन गाऊंगा।
¹⁰ फिर कहा है; हे जाति जाति के सब लोगों; उस की प्रजा के साथ आनन्द करो।
¹¹ और फिर हे जाति जाति के सब लागो; प्रभु की स्तुति करो; और हे राज्य राज्य के सब लोगो; उसे सराहो।
¹² और फिर यशायाह कहता है, कि यिशै की एक जड़ प्रगट होगी; और अन्यजातियों का हाकिम होने के लिये एक उठेगा; उस पर अन्यजातियां आशा रखेंगी।
¹³ सो परमेश्वर जो आशा का दाता है तुम्हें विश्वास करने में सब प्रकार के आनन्द और शान्ति से परिपूर्ण करे; कि पवित्र आत्मा की सामर्थ से तुम्हारी आशा बढ़ती जाए॥
पाउल अन्य जातियों की सेवक है। रोमियो अध्याय 15
¹⁴ हे मेरे भाइयो; मैं आप भी तुम्हारे विषय में निश्चय जानता हूं; कि तुम भी आप ही भलाई से भरे और ईश्वरीय ज्ञान से भरपूर हो और एक दूसरे को चिता सकते हो।
¹⁵ तौभी मैं ने कहीं कहीं याद दिलाने के लिये तुम्हें जो बहुत हियाव करके लिखा, यह उस अनुग्रह के कारण हुआ; जो परमेश्वर ने मुझे दिया है।
¹⁶ कि मैं अन्याजातियों के लिये मसीह यीशु का सेवक होकर परमेश्वर के सुसमाचार की सेवा याजक की नाईं करूं; जिस से अन्यजातियों का मानों चढ़ाया जाना; पवित्र आत्मा से पवित्र बनकर ग्रहण किया जाए।
¹⁷ सो उन बातों के विषय में जो परमेश्वर से सम्बन्ध रखती हैं; मैं मसीह यीशु में बड़ाई कर सकता हूं।
¹⁸ क्योंकि उन बातों को छोड़ मुझे और किसी बात के विषय में कहने का हियाव नहीं; जो मसीह ने अन्यजातियों की आधीनता के लिये वचन, और कर्म।
¹⁹ और चिन्हों और अदभुत कामों की सामर्थ से; और पवित्र आत्मा की सामर्थ से मेरे ही द्वारा किए; यहां तक कि मैं ने यरूशलेम से लेकर चारों ओर इल्लुरिकुस तक मसीह के सुसमाचार का पूरा पूरा प्रचार किया।
²⁰ पर मेरे मन की उमंग यह है, कि जहां जहां मसीह का नाम नहीं लिया गया; वहीं सुसमाचार सुनाऊं; ऐसा न हो कि दूसरे की नींव पर घर बनाऊं॥
²¹ परन्तु जैसा लिखा है; वैसा ही हो; कि जिन्हें उसका सुसमाचार नहीं पहुंचा; वे ही देखेंगे और जिन्हों ने नहीं सुना वे ही समझेंगे॥
रोम जाने के लिए पाउल की इच्छा। रोमियो अध्याय 15
²² इसी लिये मैं तुम्हारे पास आने से बार बार रूका रहा।
²³ परन्तु अब मुझे इन देशों में और जगह नहीं रही; और बहुत वर्षों से मुझे तुम्हारे पास आने की लालसा है।
²⁴ इसलिये जब इसपानिया को जाऊंगा तो तुम्हारे पास होता हुआ जाऊंगा क्योंकि मुझे आशा है; कि उस यात्रा में तुम से भेंट करूं; और जब तुम्हारी संगति से मेरा जी कुछ भर जाए; तो तुम मुझे कुछ दूर आगे पहुंचा दो।
²⁵ परन्तु अभी तो पवित्र लोगों की सेवा करने के लिये यरूशलेम को जाता हूं।
²⁶ क्योंकि मकिदुनिया और अखया के लोगों को यह अच्छा लगा; कि यरूशलेम के पवित्र लोगों के कंगालों के लिये कुछ चन्दा करें।
²⁷ अच्छा तो लगा; परन्तु वे उन के कर्जदार भी हैं; क्योंकि यदि अन्यजाति उन की आत्मिक बातों में भागी हुए; तो उन्हें भी उचित है; कि शारीरिक बातों में उन की सेवा करें।
²⁸ सो मैं यह काम पूरा करके और उन को यह चन्दा सौंप कर तुम्हारे पास होता हुआ इसपानिया को जाऊंगा।
²⁹ और मैं जानता हूं, कि जब मैं तुम्हारे पास आऊंगा; तो मसीह की पूरी आशीष के साथ आऊंगा॥
³⁰ और हे भाइयों; मैं यीशु मसीह का जो हमारा प्रभु है और पवित्र आत्मा के प्रेम का स्मरण दिला कर; तुम से बिनती करता हूं; कि मेरे लिये परमेश्वर से प्रार्थना करने में मेरे साथ मिलकर लौलीन रहो।
³¹ कि मैं यहूदिया के अविश्वासियों बचा रहूं, और मेरी वह सेवा जो यरूशलेम के लिये है; पवित्र लोगों को भाए।
³² और मैं परमेश्वर की इच्छा से तुम्हारे पास आनन्द के साथ आकर तुम्हारे साथ विश्राम पाऊं।
³³ शान्ति का परमेश्वर तुम सब के साथ रहे। आमीन॥
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²⁰ सुन, मैं एक दूत तेरे आगे आगे भेजता हूं जो मार्ग में तेरी रक्षा करेगा; और जिस स्थान को मैं ने तैयार किया है उस में तुझे पहुंचाएगा। ²¹ उसके साम्हने सावधान रहना, और उसकी मानना; उसका विरोध न करना; क्योंकि वह तुम्हारा अपराध क्षमा न करेगा; इसलिये कि उस में मेरा नाम रहता है। ²² और यदि तू सचमुच उसकी माने और जो कुछ मैं कहूं वह करे; तो मैं तेरे शत्रुओं का शत्रु और तेरे द्रोहियों का द्रोही बनूंगा। ²³ इस रीति मेरा दूत तेरे आगे आगे चलकर तुझे एमोरी; हित्ती, परज्जी; कनानी; हिब्बी; और यबूसी लोगों के यहां पहुंचाएगा; और मैं उन को सत्यनाश कर डालूंगा। निर्गमन 23:20-23
मत्ती 18:1-10
¹ उसी घड़ी चेले यीशु के पास आकर पूछने लगे; कि स्वर्ग के राज्य में बड़ा कौन है? ² इस पर उस ने एक बालक को पास बुलाकर उन के बीच में खड़ा किया। ³ और कहा; मैं तुम से सच कहता हूं; यदि तुम न फिरो और बालकों के समान न बनो; तो स्वर्ग के राज्य में प्रवेश करने नहीं पाओगे। ⁴ जो कोई अपने आप को इस बालक के समान छोटा करेगा; वह स्वर्ग के राज्य में बड़ा होगा। ⁵ और जो कोई मेरे नाम से एक ऐसे बालक को ग्रहण करता है वह मुझे ग्रहण करता है। ⁶ पर जो कोई इन छोटों में से जो मुझ पर विश्वास करते हैं एक को ठोकर खिलाए, उसके लिये भला होता; कि बड़ी चक्की का पाट उसके गले में लटकाया जाता; और वह गहिरे समुद्र में डुबाया जाता।
⁷ ठोकरों के कारण संसार पर हाय! ठोकरों का लगना अवश्य है; पर हाय उस मनुष्य पर जिस के द्वारा ठोकर लगती है।⁸ यदि तेरा हाथ या तेरा पांव तुझे ठोकर खिलाए; तो काटकर फेंक दे; टुण्डा या लंगड़ा होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है; कि दो हाथ या दो पांव रहते हुए तू अनन्त आग में डाला जाए। ⁹ और यदि तेरी आंख तुझे ठोकर खिलाए, तो उसे निकालकर फेंक दे। ¹⁰ काना होकर जीवन में प्रवेश करना तेरे लिये इस से भला है; कि दो आंख रहते हुए तू नरक की आग में डाला जाए।
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