किसी का विचार न करो। रोमियो अध्याय 14:1-23
रोमियो अध्याय 14:1-23 ¹ जो विश्वास में निर्बल है, उसे अपनी संगति में ले लो; परन्तु उसी शंकाओं पर विवाद करने के लिये नहीं।
² क्योंकि एक को विश्वास है, कि सब कुछ खाना उचित है, परन्तु जो विश्वास में निर्बल है, वह साग पात ही खाता है।
³ और खानेवाला न-खाने वाले को तुच्छ न जाने; और न-खानेवाला खाने वाले पर दोष न लगाए; क्योंकि परमेश्वर ने उसे ग्रहण किया है।
⁴ तू कौन है जो दूसरे के सेवक पर दोष लगाता है? उसका स्थिर रहना या गिर जाना उसके स्वामी ही से सम्बन्ध रखता है, वरन वह स्थिर ही कर दिया जाएगा; क्योंकि प्रभु उसे स्थिर रख सकता है।
⁵ कोई तो एक दिन को दूसरे से बढ़कर जानता है, और कोई सब दिन एक सा जानता है; हर एक अपने ही मन में निश्चय कर ले।
⁶ जो किसी दिन को मानता है, वह प्रभु के लिये मानता है: जो खाता है, वह प्रभु के लिये खाता है; क्योंकि वह परमेश्वर का धन्यवाद करता है; और जो नहीं खाता; वह प्रभु के लिये नहीं खाता और परमेश्वर का धन्यवाद करता है।
ईश्वर के लिए जियें। रोमियो अध्याय 14:1-23
⁷ क्योंकि हम में से न तो कोई अपने लिये जीता है, और न कोई अपने लिये मरता है।
⁸ क्योंकि यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं; तो प्रभु के लिये मरते हैं; सो हम जीएं या मरें; हम प्रभु ही के हैं।
⁹ क्योंकि मसीह इसी लिये मरा और जी भी उठा कि वह मरे हुओं और जीवतों, दोनों का प्रभु हो।¹⁰ तू अपने भाई पर क्यों दोष लगाता है? या तू फिर क्यों अपने भाई को तुच्छ जानता है? हम सब के सब परमेश्वर के न्याय सिंहासन के साम्हने खड़े होंगे।
¹¹ क्योंकि लिखा है; कि प्रभु कहता है; मेरे जीवन की सौगन्ध कि हर एक घुटना मेरे साम्हने टिकेगा; और हर एक जीभ परमेश्वर को अंगीकार करेगी।
¹² सो हम में से हर एक परमेश्वर को अपना अपना लेखा देगा॥
ठोकर का करण ना बने
¹³ सो आगे को हम एक दूसरे पर दोष न लगाएं पर तुम यही ठान लो कि कोई अपने भाई के साम्हने ठेस या ठोकर खाने का कारण न रखे।
¹⁴ मैं जानता हूं; और प्रभु यीशु से मुझे निश्चय हुआ है; कि कोई वस्तु अपने आप से अशुद्ध नहीं; परन्तु जो उस को अशुद्ध समझता है, उसके लिये अशुद्ध है।
¹⁵ यदि तेरा भाई तेरे भोजन के कारण उदास होता है; तो फिर तू प्रेम की रीति से नहीं चलता; जिस के लिये मसीह मरा उस को तू अपने भोजन के द्वारा नाश न कर।¹⁶ अब तुम्हारी भलाई की निन्दा न होने पाए।
¹⁷ क्योंकि परमेश्वर का राज्य खाना पीना नहीं; परन्तु धर्म और मिलाप और वह आनन्द है;
¹⁸ जो पवित्र आत्मा से होता है और जो कोई इस रीति से मसीह की सेवा करता है; वह परमेश्वर को भाता है और मनुष्यों में ग्रहण योग्य ठहरता है।
¹⁹ इसलिये हम उन बातों का प्रयत्न करें जिनसे मेल मिलाप और एक दूसरे का सुधार हो।
²⁰ भोजन के लिये परमेश्वर का काम न बिगाड़; सब कुछ शुद्ध तो है, परन्तु उस मनुष्य के लिये बुरा है; जिस को उस के भोजन करने से ठोकर लगती है।
²¹ भला तो यह है; कि तू न मांस खाए; और न दाख रस पीए; न और कुछ ऐसा करे; जिस से तेरा भाई ठोकर खाए।
²² तेरा जो विश्वास हो; उसे परमेश्वर के साम्हने अपने ही मन में रख; धन्य है वह; जो उस बात में; जिसे वह ठीक समझता है; अपने आप को दोषी नहीं ठहराता।
²³ परन्तु जो सन्देह कर के खाता है; वह दण्ड के योग्य ठहर चुका; क्योंकि वह निश्चय धारणा से नहीं खाता; और जो कुछ विश्वास से नहीं; वह पाप है॥
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⁵⁷ जब वे मार्ग में चले जाते थे, तो किसी न उस से कहा; जहां जहां तू जाएगा, मैं तेरे पीछे हो लूंगा। ⁵⁸ यीशु ने उस से कहा; लोमडिय़ों के मांद और आकाश के पक्षियों के बसेरे होते हैं; पर मनुष्के पुत्र को सिर धरने की भी जगह नहीं। ⁵⁹ उस ने दूसरे से कहा; मेरे पीछे हो ले; उस ने कहा; हे प्रभु, मुझे पहिले जाने दे कि अपने पिता को गाड़ दूं। ⁶⁰ उस ने उस से कहा; मरे हुओं को अपने मुरदे गाड़ने दे; पर तू जाकर परमेश्वर के राज्य की कथा सुना। ⁶¹ एक और ने भी कहा; हे प्रभु; मैं तेरे पीछे हो लूंगा; पर पहिले मुझे जाने दे कि अपने घर के लोगों से विदा हो आऊं। ⁶² यीशु ने उस से कहा; जो कोई अपना हाथ हल पर रखकर पीछे देखता है; वह परमेश्वर के राज्य के योग्य नहीं॥ लुका 9:57-62
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