बाइबल के वचन के अनुसार लोगों को यीशु मसीह की तरह असली प्रार्थना करना चाहिए। क्योंकि यदि लोगों की प्रार्थना परमेश्वर को बेसुरा लगें, तो क्या वह उसे सुनेंगे। आप ही बताइए, यदि कोई बात करते वक्त निरर्थक बात करता है, तो क्या आप उसे सुनना पसंद करते हैं? निश्चय ही नहीं है, न। क्योंकि यदि आप एक साधारण मनुष्य हो कर, निरर्थक बात सुनना पसंद नहीं करते हैैं, तो सर्वोच्च परमेश्वर निरर्थक और बेसुरा प्रार्थना कैसे सुन सकते हैं। तो आज मैं आपको बाइबल के वचन से प्रभु यीशु की शिक्षा के आधार पर असली प्रार्थना करना सिखाउंगा। यदि आप इसे जानना चाहते हैं, धिरज से पढ़ने की कष्ट करें।
यीशु मसीह की प्रार्थना कैसे करें
देखिए यदि हमें प्रार्थना करना है, तो लोगों की तरह नहीं, बल्कि यीशु मसीह की तरह असली प्रार्थना करना चाहिए। यीशु मसीह प्रभु होकर प्रार्थना करते थे। फिर उनकी प्रार्थना करने का तात्पर्य यह था, कि प्रार्थना करके लोगों को प्रार्थना करने की शिक्षा दी जाए। अन्यथा आप लोग देखे होंगे कि जैसे गुरु वैसे चेले भी होते हैं।
अर्थात यदि प्रभु यीशु प्रार्थना नहीं करते या प्रार्थना करना नहीं सिखाते, तो कोई कोई ओभरस्मार्ट लोग कहते, कि हमने तो प्रभु यीशु को कभी भी प्रार्थना करने की शिक्षा देते नहीं देखा है। क्योंकि लोग अच्छाई की गुण को कम पर बुराई की गुण को ज्यादा ग्रहण करते हैं। इसलिए लोगों को प्रभु यीशु की तरह असली प्रार्थना करना सिखना और सिखाना भी चाहिए।
प्रभु यीशु की तरह कैसे प्रार्थना करें
यदि कोई व्यक्ति चाहता है, कि उसकी प्रार्थना प्रभु तक पहुंचे, तो प्रभु यीशु की तरह प्रार्थना करने का तरीका को अनुसरण करना चाहिए। तो चलिए आज हम इसे बाइबल वचन से देखते हैं, कि प्रभु यीशु कैसे प्रार्थना करते थे? दोस्तों इस से पहले मैं आपको एक बात स्पष्ट कर देना चाहता हूं, कि प्रभु यीशु प्रार्थना करते थे, इसका मतलब यह नहीं कि वह किसी दूसरे से प्रार्थना करते थे। यहां पर प्रभु यीशु की प्रार्थना करने का मतलब, वह पिता परमेश्वर से बातचीत करने को समझा जाता है। ( मरकुस 1:35 ) की वचन कहता है, कि प्रभु यीशु भोर को उठकर एक जंगली स्थान अर्थात निर्जन स्थान पर जाकर प्रार्थना करने लगे।
देखिए, पहली बात इस वचन के माध्यम से प्रभु यीशु लोगों को भोर के समय में प्रार्थना करने का इशारा कर रहे हैं। क्योंकि भोर के समय में लोगों का मन शांत रहता है। और शांत मन से की गई प्रार्थना परमेश्वर तक पहुंच सकता है। दूसरी बात यह है, कि लोगों को निर्जन स्थान जहां पर सुनसान जगह होता है, लोगों को वैसे स्थान पर प्रार्थना करना चाहिए।
क्योंकि प्रार्थना के वक्त यदि एकाग्रता भंग हो तो, सही तरह से प्रार्थना करना संभव नहीं होता है। फिर ( मरकुस 6:46 ) की वचन में भी देखा जाता है, कि प्रभु यीशु संध्या के समय भी प्रार्थना करते थे। वैसे ही लोगों को भी सुबह और शाम को प्रभु यीशु की तरह असली प्रार्थना करते रहना चाहिए।
प्रार्थना करने का तरीका
( लूका 18:1-14 ) की वचन में प्रभु यीशु की दो दृष्टांत देखने को मिलता है। पहला दृष्टांत में, किसी नगर की एक न्यायाधीश की बात कही गई है, जो न तो परमेश्वर से डरता था, और न ही लोगों की परवाह करता था। वहां पर एक विधवा भी थी, जो उस न्यायाधीश से न्याय मांगने जाती थी। पर विधवा की पुकार को उस न्यायाधीश अनदेखा करता था।
क्योंकि उसे किसी का भी डर नहीं था। परंतु बार-बार विधवा की पुकार से उस न्यायाधीश अपने मन में सोचता है, कि मैं तो परमेश्वर से भी नहीं डरता और न ही लोगों की परवाह करता हूं। पर इस विधवा मुझे बार-बार सताती है। इसलिए मैं इसका न्याय चुकाऊंगा, अन्यथा यह बार-बार आकर मेरे नाक में दम करते रहेगा।
अर्थात प्रभु यीशु का ये वचन लोगों को यह शिक्षा देती है, कि प्रार्थना सुनने में देर होने पर भी हियाव नहीं छोड़ना चाहिए, बल्कि नित्य प्रार्थना करते रहना चाहिए। क्योंकि यदि स्वयं परमेश्वर जो सब का बाप है, किसी कारण से प्रार्थना सुनने में देर कर रहे हैं, तो यह सोच कर प्रार्थना करना न छोड़ना कि मेरी प्रार्थनाओं का उत्तर नहीं मिल रहा है। पर उस विधवा की तरह मन में यह ठान लें कि प्रार्थनाओं का उत्तर मिले या न मिले, लोगों को नित्य प्रार्थना करते रहना चाहिए। यदि अधर्मी न्यायाधीश उस विधवा की पुकार सुन कर न्याय कर सकता है। तो हमारा परमेश्वर अपने लोगों की प्रार्थना सुनने में कभी भी देर नहीं करेंगे।।
( लूका 18:10-14 ) की वचन में प्रभु यीशु की दूसरा दृष्टांत में दो लोगों की प्रार्थना करने के बारे में दर्शाया गया है। इसमें फरीसी और दूसरा चुंगी लेने वाला प्रार्थना करने मंदिर जाते हैं। पर यहां पर फरीसी प्रार्थना करते वक्त खुद को धर्मी होने का दावा करके चुंगी लेने वाले को पापी समझता है।
इसके विपरित चुंगी लेने वाला व्यक्ति खुद को पापी मानता है, और वह स्वर्ग की ओर भी आंख उठाने का साहस नहीं करता है, और कहता है, हे प्रभु मुझ पापी को क्षमा कर। यहां पर प्रभु यीशु इन दोनों में से चुंगी लेने वाले व्यक्ति को धर्मी ठहराया जाने के बात करते हैं। क्योंकि फरीसी खुद को बड़ा मान कर, चुंगी लेने वाले के ऊपर दोष लगाया की वह पापी हैं।
प्रभु यीशु लोगों को इस वचन के माध्यम से यह शिक्षा देना चाहते हैं, कि बहुत से ऐसे लोग खुद की गलती को नजरअंदाज करके दूसरे की गलतियां ढूंढते हैं। खुद पापमय जीवन जी कर दुसरे को पापी कहते हैं। क्या परमेश्वर फरीसी के हृदय को नहीं जानते थे, जो प्रार्थना में बताने की आवश्यकता थी, कि मैं अच्छा आदमी हूं। जो लोग अपने आप को धर्मी मान कर दूसरे को तुच्छ जानते हैं। क्या वैसे लोगों से परमेश्वर प्रसन्न हो सकते हैं? क्या उनकी प्रार्थना परमेश्वर सुनेंगे? यदि उस फरिसी की प्रार्थना नहीं सुनी गई ,तो प्रभु भी वैसे लोगों की प्रार्थना नहीं सुनेंगे।
प्रभु की वचन के अनुसार प्रार्थना
( मत्ती 6:5-6 ) की वचन में प्रभु यीशु कहते हैं। मनुष्य की प्रार्थना लोगों को दिखाने के लिए, नहीं! बल्कि परमेश्वर के लिए होना चाहिए। अन्यथा प्रतिफल की आशा करना व्यर्थ है। इसलिए यदि कोई प्रभु से प्रार्थना का उत्तर चाहता है, प्रार्थनाओं का प्रतिफल चाहता है। तो अपने घर के अंदर द्वार बन्द करके परमेश्वर से प्रार्थना करें। इसका मतलब आपकी प्रार्थना, लोगों को दिखाने के लिए नहीं! बल्कि अदृश्य रूपी परमेश्वर के लिए होना चाहिए, जिससे आपको प्रतिफल मिल सके।
( मत्ती 6:7-13 ) की वचन में लिखा है, जो लोग परमेश्वर को नहीं जानते हैं, उनकी नाईं आपकी प्रार्थना नहीं होना चाहिए। क्योंकि वे बेवजह चिल्ला कर, बक बक करके बहुत बोल कर प्रार्थना करके यह सोचते हैं, कि परमेश्वर उनकी जल्दी सुनेंगे। पर परमेश्वर मांगने से पहले लोगों का मन की बात जानते हैं। इसलिए लोगों को बक बक करना छोड़ कर असली प्रार्थना करना चाहिए। जैसे प्रभु यीशु ने हमें सिखाया है।
” सो तुम प्रभु की प्रार्थना इस रीति से करना; हे हमारे पिता, तू जो स्वर्ग में है; तेरा नाम पवित्र माना जाए। तेरा राज्य आए; तेरी इच्छा जैसी स्वर्ग में पूरी होती है, वैसे पृथ्वी पर भी हो । हमारी दिन भर की रोटी आज हमें दे। और जिस प्रकार हम ने अपने अपराधियों को क्षमा किया है, वैसे ही तू भी हमारे अपराधों को क्षमा कर। और हमें परीक्षा में न ला, परन्तु बुराई से बचा; क्योंकि राज्य और पराक्रम और महिमा सदा तेरे ही हैं। आमीन।”
यह एक संपूर्ण प्रार्थना है, जिस में परमेश्वर पिता का नाम की स्तुति, स्वर्ग राज्य की तरह इस धरती पर भी शांति के लिए निवेदन, दिन भर के भोजन के लिए भी निवेदन, और पिता के सामने, लोगों को अपने अपराधियों को क्षमा करने का स्विकार के साथ, खुद की अपराध की क्षमा के लिए, निवेदन।
क्योंकि मनुष्य न चाहते हुए, भी बार-बार पाप करते रहता है। इसलिए प्रार्थना परमेश्वर तक पहुंचने के लिए अपने अपराध की क्षमा तथा दूसरों के अपराधों को भी क्षमा करने की जरूरत है। नाना प्रकार की परीक्षा, शैतान की जाल और बुराई से बचाने की निवेदन, इसलिए करना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर की राज्य, पराक्रम और महिमा सदा स्थिर रहती है।
इसलिए यदि किसी को प्रार्थना करना नहीं आता है, तो बड़बड़ाने से अच्छा यह है, कि प्रभु यीशु की असली प्रार्थना, जिसे उसने सिखाया है, करना चाहिए। इसके साथ आप यीशु यीशु यीशु कह कर भी प्रभु का नाम को हर पल ले सकते हैं। क्योंकि प्रभु यीशु का नाम लोगों को पाप और बुराई से बचाता है, इसलिए आप निश्चित रूप से प्रभु यीशु का नाम अपने मन में ले सकते हैं।
मनुष्य के लिए अपने जीवन से बढ़कर और कुछ मूल्यवान वस्तु नहीं है। इसलिए प्रभु यीशु की शिक्षा के अनुसार असली प्रार्थना करते हुए, अपने जीवन दाता परमेश्वर से जुड़े रहना चाहिए। उपर आपने देखा कि प्रभु यीशु की प्रार्थना में संपुर्णता झलकती है।
कलीसिया की प्रार्थना में प्रभु यीशु की उपस्थिति
एक व्यक्ति को कैसे प्रार्थना करना चाहिए, इसे आप उपर लिखी वचन में देख लिये। पर कलीसिया की सामुहिक प्रार्थना अर्थात जहां दो या तीन लोग एकत्रित होते हैं, ( मत्ती 18:19-20 ) की वचन के अनुसार प्रभु यीशु वहां उपस्थित होते हैं। परन्तु समझने वाली बात यह है, कि क्या संसार के लोग भले कामों के लिए, एकत्रित होते हैं? इसका जवाब आपको मालूम है। क्योंकि भले कामों के लिए लोगों को एकजुट होने में तकलीफ होती है। पर शारीरिक अभिलाषा की पूर्ति के लिए लोगों को कोई परेशानी नहीं होती है।
प्रभु यीशु के नाम से अर्थात सत्य की चर्चा के लिए जहां भी दो या तीन लोग एकत्रित होते हैं, वहां स्वयं प्रभु यीशु उपस्थित रहते हैं। इसलिए लोगों को असली प्रार्थना करना चाहिए। जिसे प्रभु यीशु ने सिखाया है। लोग तरह-तरह से प्रार्थना करते हैं। पर प्रभु की असली प्रार्थना करना जरूरी है। क्योंकि यदि कोई अर्थहीन तरीके से बड़बड़ाने लगता है, और वह जो भी बोल रहा है, उसका अर्थ खुद भी नहीं जानता है। तो वैसी प्रार्थना से क्या लाभ। इसलिए लोगों को प्रभु यीशु की असली प्रार्थना करना ही बेहतर है।
निष्कर्ष
दोस्तों असली प्रार्थना कैसा करना चाहिए, इसके बारे में प्रभु यीशु बहुत सुन्दर तरीके से समझा दिये हैं। पर प्रभु यीशु की शिक्षा के अनुसार प्रार्थना करने के बजाय, यदि कोई अपनी मर्जी से बड़बड़ा कर बेसुरा ढंग से चिल्ला-चिल्ला कर प्रार्थना की जाती है, तो आप ही बताइए, क्या वह प्रभु का ग्रहण योग्य होगा।
आप बुद्धिमान और समझदार व्यक्ति हैं। मैं जानता हूं, कि आप निश्चित रूप से प्रभु यीशु की असली प्रार्थना, को ही करेंगे, जिसे उसने आपको, हमको और सारी सृष्टि के लोगों को बाइबल के वचन के माध्यम से सिखाया है। शांति का परमेश्वर आपको बहुतायत से आशीष प्रदान करता रहे। आपका दिन मंगलमय हो। धन्यवाद।
प्रभु, में प्रिय,
बहुत सुन्दर जानकारी के लिए आपको धन्यवाद |
प्रभु आपको आशीष दे |
आमीन