प्रकाशित वाक्य 2:1-7 में इफिसुस कलीसिया के नाम भेजे गए पत्र, उनका सुधार तथा प्रभु की शिकायत और चेतावनी के बारे में देखने को मिलता है। प्रभु अपनी मंशा को कलीसिया में स्पष्ट कर देना चाहते हैं। क्योंकि मनुष्य गिरगिट की तरह बार बार रंग बदल कर पाप करते रहते हैं। इसलिए जिस तरह घर का मुखिया, कभी नहीं चाहता कि, अपनी दास दासी और उनसे जुड़े हुए लोग अपने कर्तव्य से भटक कर दिशाहीन हो जाए। वैसे ही प्रभु भी नहीं चाहताा; कि मनुष्य सच्चाई के मार्ग से भटक कर पाप के दलदल में फंस जाएं। अगर आप भी धर्म और सत्य के मार्ग से भटक कर; पाप और बुराई से प्रीति रखते हैं, तो इस वचन को जरूर पढ़ें; और जानें कि प्रभु कलीसिया से क्या कहना चाहता है।
इफिसुस की कलीसिया प्रकाशित वाक्य 2:1-7
प्रकाशित वाक्य 2:1-7 के अन्दर लिखा है, कि जिनके दाहिने हाथ में सात तारे और जो सोने के सात दिवटों के बीच फिरता है वह सर्वशक्तिमान प्रभु इफिसुस की कलीसिया से यह कहता है, मैं तेरे काम परिश्रम और धीरज को जानता हूं। यहां पर तीन बातों की जिक्र हो रही है, काम, परिश्रम और धीरज। क्या आप अपने काम से परमेश्वर को प्रसन्न करते हैं, अर्थात अच्छे और बुरे कामों में से क्या आप अच्छे कामों को करते हैं। क्योंकि अच्छे काम से परमेश्वर प्रसन्न होता है। परंतु चोरी, लूटपाट, धोखा-धड़ी और कालाबाजारी जैसी कामों से परमेश्वर सख्त नफरत करता है।
परिश्रम का जिक्र प्रकाशित वाक्य 2:1-7 के अन्दर किया गया है
संसार में दो तरह के परिश्रम करने वाले लोग रहते हैं। 1: सच्चे मन से परमेश्वर का भय मन कर परिश्रम करने वाले लोग। दूसरा काम चोर और ठग किस्म के लोग रहते हैं। सच्चे मन के लोग, अपनी परिश्रम के लिए निर्धारित समय के अन्दर सौ फीसदी काम में योगदान देते हैं। परंतु ठग किस्म के लोग अपने मालिक के सामने अच्छे परिश्रम करने का दिखावा करते हैं, परंतु वहां से मालिक हट जाने के बाद उनकी लापरवाही शुरू हो जाती है। क्या आपका भी परिश्रम इस प्रकार तो नहीं है। स्मरण रहे कि प्रभु परिश्रमी लोगों से प्रसन्न होते हैं।
प्रभु की शिकायत को प्रकाशित वाक्य 2:1-7 से जाने
प्रकाशित वाक्य 2:1-7 के बीच इफिसुस की कलीसिया के दूत के विरुद्ध प्रभु की शिकायत से हमें ज्ञात होना चाहिए, कि क्या हमारे विरुद्ध भी प्रभु की शिकायत है? वचन कहता है, कि प्रभु प्रेम के लिए शिकायत करते हैं। यह औरत मर्द या किसी विषय वस्तु वाली प्रेम नहीं है, बल्कि यह ईश्वर और मनुष्य के बीच का पवित्र प्रेम संबंध को दर्शाता है। प्रेम बहुत प्रकार की हो सकता है, परंतु ईश्वर के साथ प्रेम संबंध का अर्थ, ईश्वर को समय देना, अर्थात प्रार्थना और सुसमाचार में ध्यान देना। यूं कहें तो सत्य और धार्मिकता के मार्ग पर चलकर संपूर्ण रूप से ईश्वरीय जीवन जीना चाहिए। इसलिए प्रभु शिकायत कर रहा है, कि लोगों के पास मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना, फिल्म और सीरियल देखने के लिए तो, पर्याप्त समय मिलता है, परंतु सृष्टि कर्ता ईश्वर के लिए लोगों के पास 1 मिनट का भी समय नहीं है। खुद को समीक्षा करने का समय आ गया है? क्या सच में मनुष्य इतना बिगड़ चुका है?
मन फिराओ करना
क्या सचमुच मनुष्य परमेश्वर को छोड़ दिया है? या ईश्वर के लिए मनुष्य के पास समय नहीं है? आखिर इस प्रकार मनुष्य ईश्वर से क्यों विमुख होते जा रहा है? इसके पीछे कारण क्या है? इसका कारण जानने के लिए, (1 यूहन्ना 4:5 ) के वचन को पढ़ना होगा। जिसमें लिखा है, वे संसार के हैं; इसलिए संसार की बातें करते हैं। संसारिक विषय वस्तु पर उलझे रहते हैं। क्योंकि परमेश्वर का प्रेम छोड़ कर; संसारिक विषय वस्तु से प्रेम रखना भी ईश्वर की दृष्टि में पाप है। इसलिए प्रभु कहते हैं, कि अपने किए हुए हर एक गुनाहों की माफी के लिए मन फिराव कर ले तो अच्छा होगा। क्योंकि प्रभु कभी भी झूठ नहीं बोलते।
चेतावनी
भले ही एक व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति को धमकाने से डर जाता है, या बिमारी, संकट और भुत प्रेत आदि से लोग डरते हैं। परंतु मनुष्य इतना हटीला हो चुके हैं, की वे मनुष्य और भूत प्रेत और बिमारी से तो डरते हैं; परंतु सर्वशक्तिमान ईश्वर पर लोगों का भय नहीं; बल्कि आज्ञा न मान कर और बारंबार पाप करते हुए, ईश्वर को चुनौती दे रहे हैं। जीवन और मृत्यु के अधिकारी को लोग ललकार रहे हैं। इफिसुस की कलीसिया के दूत को दी गई चेतावनी से यह समझ सकते हैं, की मन फिरना जरूरी है। वरना हम सबका जीवन के दीपक को वह अपने स्थान से हटा सकते हैं। प्रभु की यह चेतावनी को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
प्रभु की घृणा
सत्य के खिलाफ होने वाली किसी भी प्रकार की शिक्षा या गतिविधि से ईश्वर घृणा करता है, क्योंकि सत्य ही ईश्वर है। यहां पर इफिसुस कलीसिया के दूत को प्रभु यीशु आगाह करते हैं; की नीकुलगयों की काम और शिक्षा से उन्हें नफरत है। नीकुलइयों की काम और शिक्षा को घृणा करने का प्रमुख कारण यह है, कि उनकी शिक्षा प्रभु की शिक्षा से मेल नहीं खाती थी। क्योंकि मनुष्य और ईश्वर की शिक्षा में जमीन आसमान का फर्क होता है। क्योंकि मनुष्य की शिक्षा में संसारिक विषय वस्तु का मिश्रण रहता है, परंतु ईश्वर की शिक्षा संपूर्ण सत्य पर आधारित है। चुनाव करना मनुष्य के हाथ में है, सच और झूठ में से वह किसे चुनता है।
निष्कर्ष
ईश्वर की ओर से चेतावनी देने के बावजूद भी मनुष्य का बारंबार पाप करना, ईश्वर की धीरज का परीक्षा लेने के बराबर है। सच तो यह है; कि अगर ईश्वर धीरज न धरता तो , अब तक कोई भी मनुष्य जीवित न बचता। इसलिए हमें परमेश्वर की कृपा, सहनशीलता और धीरज रूपी धन को तुच्छ समझने की गलती नहीं करना चाहिए; बल्कि मन फिराओ करके परमेश्वर की इच्छा के मुताबिक जीवन गुजारना चाहिए (रोमियो2:4)। विडंबना की बात तो यह है; कि मनुष्य शारीरिक लाभ के लिए ईश्वर के द्वारा मिलने वाला अनंत जीवन को ठुकराना चाहता है। इसलिए प्रभु कहते हैं; जिसका कान हो वह सुन ले, कि जय पाने वाले को स्वर्गलोक में स्थित, जीवन की वृक्ष में से वह फल खाने को मिलेगा।। हााल्लेलूईया। धन्यवाद।।