पिरगमुन की कलीसिया के दूत को यीशु मसीह की ओर से यूहन्ना के द्वारा लिखे गए पत्र । यह तो सत्य है; कि मनुष्य होने के नाते हर कोई तन मन वचन से कभी भी कुछ ना कुछ पाप जरूर करते हैं। परंतु समय से पहले ही, सुधर जाना लोगों के लिए; बेहतर हो सकता है। क्योंकि प्रकाशित वाक्य 2:12-17 के वचन में कुछ ऐसी शिक्षाओं के बारे में कलीसिया को प्रभु के द्वारा अगाह किया गया है; जिस पर चलते रहना मनुष्य के लिए; अन्त के दिनों में घातक हो सकता है। अगर आप पिरगमुन की कलीसिया को लिखे गए पत्र के द्वारा; खुद की स्थिति के बारे में जानना चाहते हैं; तो अवश्य इस लेख को पढ़ने की कष्ट करें। हो सकता है; आपके जीवन की किसी भी अंधियारे स्थान पर परमेश्वर कि वचन का रोशनी पड़ जाए और आपका भविष्य बदलने में देर ना लगे।
शैतान का सिंहासन
पिरगमुन की कलीसिया के दूत को लिखे गए पत्र में; प्रभु शैतान का सिंहासन की जिक्र करते हैं। अर्थात पिरगमुन की कलीसिया के क्षेत्र में शैतान की कार्यकलाप ज्यादा थी। और उस समय अन्तिपास नामक प्रभु की साक्षी को मार देने के बावजूद पिरगमुन की कलीसिया के दूत प्रभु के नाम से स्थिर रहा, इसलिए प्रभु उसकी तारीफ करते हैं। परन्तु यह जान लें; की ज़हां शैतान का सिंहासन रहता है; वहां प्रभु की नाम और वचन का विरोध ज्यादा किया जाता है। पर शैतान अपना सिंहासन कैसे बनाता है? देखिए, शैतान सबसे पहले, लोगों के दिमाग को अपने वश में कर लेता है; फिर वह उनको सत्य के खिलाफ इस्तेमाल करता है। जैसे कि हत्या, चोरी; व्यभिचार; दुर्नीति; कुकर्म और प्रभु की वचन को रोकना इत्यादि इत्यादि के बहुत सारे पाप करवाता है। खाली दिमाग शैतान का घर होता है; इसलिए अपने दिमाग को कभी भी खाली नहीं रखना चाहिए; बल्कि सच्चाई और अच्छाई के लिए, उसका इस्तेमाल; बराबर करते रहना चाहिए।
बिलाम की शिक्षा
पिरगमुन की कलीसिया को लिखे गए पत्र में प्रभु के द्वारा बिलाम की शिक्षा का उदाहरण देखने को मिलता है। (गिनती 22) क्योंकि उन दिनों पतोर नगर में बोर के पुत्र बिलाम नामक एक भविष्यद्वक्ता रहता था। जिसको वह आशीर्वाद करता था; उसे आशीष मिलती थी; और जिसको वह शाप देता था; उसके लिए सब कुछ स्रापित हो जाता था। जब इस्राइली लोग मिस्र देश से आ कर मोवाब देश में पहुंचे, तब सप्पोर का पुत्र बालाक; इस्राइलियों को अभिशाप देने के लिए; बिलाम को दक्षिणा देकर बुलवा भेजता है। ईश्वर की अनिच्छा के चलते बिलाम पहली बार तो राजा के लोगों को उनके साथ जानने के लिए मना करता है। परंतु दूसरी बार जब वे लोग आते हैं; तो दुबारा उनको अपने यहां ठहराता है; जिसकी की आवश्यकता; बिलाम को नहीं थी। ईश्वर उनके साथ जाने की तो आज्ञा देते हैं; परंतु बिलाम की उल्टी चाल से ईश्वर अत्यंत क्रोधित होकर; रास्ते में उसे मार डालना चाहते थे। परन्तु गदही रास्ता रोकने वाले दूत को देख कर इधर उधर दौड़ने लगता है; फिर भी बिलाम इसका अर्थ समझने के बजाय गदही को बारंबार मारते रहता है। आखिर में ईश्वर बिलाम को सही रास्ते में लाने के लिए; बेजुबान गदही से भी बात करवाते हैं।
- बिलाम ईश्वर की भविष्यद्बक्ता होने के नाते इस्राइलीओं के लिए; ठोकर का कारण बनने के बजाय; उनके लिए उद्धार का कारण बनना चाहिए था। परंतु वह मोवाबी राजा बालाक के द्वारा चढ़ाए गए; मूरत के बलिदान और सम्मान से प्रसन्न था। बिलाम की शिक्षा से यह मालूम चलता है; कि लोगों को अपने काम-धंधा; बातचीत और चाल-चलन में सर्वदा सावधानी बरतना चाहिए। क्योंकि इस संसार में एक मनुष्य दूसरे मनुष्यों की चरित्र का अनुसरण करते हैं। इसलिए लोगों को गंदी बात, बुरी चाल-चलन; गंदी आदत और कुकर्मों से सर्वदा दूर रहना चाहिए। बिलाम की तरह सच्चाई के मार्ग से भटक कर तथा अच्छाई के खिलाफ जा कर दूसरों के लिए ठोकर का कारण नहीं बनना चाहिए। यही बात पिरगमुन की कलीसिया के द्वारा प्रभु लोगों बताना चाहते हैं।
मूरत के बलिदान खाने का व्यभिचार
पिरगमुन की कलीसिया को लिखे गए इस पत्र में प्रभु मसीही लोगों को बताना चाहते हैं; कि मूर्तियों के आगे झुकना और उनको चढ़ाए गए बली प्रसाद खाना भी पाप है। क्योंकि ईश्वर इसकी इजाजत नहीं देता और प्रभु की आज्ञा को न मानना भी पाप है। (निर्गमन 20:23) कहता है; तुम सोने चांदी का देवता बना कर मेरे साथ उनको सम्मिलित ना करना। इसलिए ईश्वर की ही आराधना करनी चाहिए। कभी-कभी बहुत लोगों से यह सुनने को मिलता है; कि प्रभु हमारी प्रार्थना नहीं सुनते। परंतु यह भी जानना अति आवश्यक है; कि क्या आप जाने अनजाने में ईश्वर की उन आज्ञाओं को अमान्य कर रहे हैं; जिसके द्वारा आपके जीवन में आशीष के बदले स्राप मिल रहा है। क्योंकि कलीसिया के लोगों को इन सारी बातों के बारे में जानना जरूरी है। इसलिए मसीही लोगों को ईश्वर के अलावा अन्य देवी देवता और मूर्तियों के आगे चढ़ाया गया प्रसाद नहीं खाना चाहिए? बाइबल बताती है; की मूर्तियों के आगे चढ़ाए गए; बली प्रसाद खाने से वह ईश्वर के विरुद्ध व्यभिचार कहलाता है। (निर्गमन 34:15) इसलिए ऐसे कर्मों से खुद को दूर रखना जरूरी है। (गिनती 25:1-9) मनुष्य के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है; की वह प्रभु के वचन को सही से अध्ययन करे। इसलिए न ही मूर्ति पूजने वाले बने और न व्ययभिचा करेें। (1कुरिन्थियों 10:7-8)
सुधर कर अपना तैयारी करें
प्रभु कहते हैं सुधर जाओ मन फिरा लो वरना मैं शीघ्र आकर अपने मुंह की तलवार से उनको नाश कर दूंगा। उनको नाश करने का मतलब; जो लोग प्रभु की आज्ञा को नहीं मानते। देखिए प्रभु की क्रोध कितना भड़क उठा है; यह बात उनके वचनों से पता चलता है; क्योंकि अब प्रभु यीशु न्याय के सिंहासन पर बैठ चुके हैं। लोगों का न्याय करने से पहले वह सबको अन्तिम अवसर देना चाहते हैं? ताकि लोग सुधर जाएं और अपने जीवन को नाश होने से बचा सकें। प्रभु लोगों से; यह उम्मीद करता है; की पिरगमुन की कलीसिया को लिखे गए पत्र को पढ़कर; अपना तैयारी करे, अर्थात मन फिराओ कर पाप से दूर रहें और प्रभु की पुनःरागमन के समय खुद को निर्दोष रखने में कामयाब बनें। मैं उम्मीद करता हूं; कि प्रभु का वचन लोगों के उस स्थान पर भी पहुंचे, जहां पर लोग; झूठे शिक्षा से कैद हैं। क्योंकि सत्य को जानना सबके लिए, अनिवार्य है; तभी सत्य से लोग स्वतंत्र हो सकेंगे। (यूहन्ना 8:32)। हाल्लेलूइया।।
स्वर्गलोक की पुरस्कार
प्रभु कहते हैं जिसका कान है वह सुन ले। कान तो सब की है; परंतु सुनने वालों की मर्जी पर निर्भर करता है; कि वे क्या सुनना चाहते हैं। प्रभु कहते हैं; जीतने वालों को गुप्त मन्ना में से खाने को दूंगा। (यूहन्ना 6-49-50) के वचन में लिखा है; कि पहले भी लोग मन्ना खाए थे; पर वे मर गए; परंतु प्रभु के द्वारा दी जाने वाली मन्ना खाने से अनंत जीवन मिलेगा। ईश्वर इसराइली लोगों को पहले भी मन्ना खिलाए थे। (गिनती 16) परंतु प्रभु जिस मन्ना की बात कह रहे हैं; उसे पाप पर जीत हासिल करने वाले लोगों के लिए; गुप्त रखा गया है। फिर प्रभु कह है; की जीतने वाले लोगों को मैं एक श्वेत पत्थर दूंगा जिसमें एक नाम लिखा होगा। देखिए उस पत्थर में क्या नाम लिखा होगा उसे प्रभु तथा पाने वाले लोगों के सिवा और कोई नहीं जानता। अगर आप भी स्वर्ग राज्य की उस महान पुरस्कार को पाना चाहते हैं; तो तैयारी जरूर करें। वरना आप पीछे रह सकते हैं।
निष्कर्ष
प्रभु की वचन उन लोगों को कड़वा लगता है; जो लोग बुराई की रास्ते पर चलते हैं। क्योंकि शैतान कभी नहीं चाहेगा कि उसकी राज्य का अंत हो। प्रभु अच्छी मार्ग पर चलने के लिए; किसी को जबरदस्ती नहीं करते हैं; क्योंकि वह मनुष्य को संपूर्ण अधिकार देकर रखे हैं; की वह अपना फैसला खुद करें। सही मार्ग दिखाना प्रभु का काम है; पर उस रास्ते पर चलना; या न चलना मनुष्य के हाथ में है। यह तय है; की सारी सृष्टि के लोगों को एक न एक दिन प्रभु के पास निश्चित जाना है; तो इससे बेहतर और क्या हो सकता है; कि मनुष्य अपनी सभी पाप और बुराई को जड़ से खत्म कर दें; फिर निष्कलंक और निष्पाप होकर प्रभु के पास जाए। मैं आशा करता हूं; की प्रभु के द्वारा, पिरगमुन की कलीसिया के दूत को लिखे गए पत्र से आपके जीवन में नई परिवर्तन होने वाला है।। हाल्लेलुइया।