क्या पाप की वजह से ईश्वर मनुष्य का सबकुछ छीन सकता है?

सृष्टि के इतिहास को देखा जाए तो, एक ऐसा अधिकार ईश्वर ने मनुष्य को दिया था, जिसकी वजह से मनुष्य सारी सृष्टि पर हुकूमत कर सकता था। पर उस अधिकार को मनुष्य अपने पास ज्यादा देर रखने में नाकामयाब रहा। क्योंकि मनुष्य पाप के आगे बेबस और लाचार बन जाता है। मनुष्य पाप के आगे इतना कमजोर और निर्बल क्यों बन जाता है? या पाप से मिलने वाली खुशियों को पाने के लिए मनुष्य क्यों लालायित होते रहता है? इन सब के बारे जानने के लिए आपको इस विषय को पढ़ने की कष्ट करना होगा। क्योंकि किसी विषय के बारे में जानने के लिए, लोगों को पढ़ना और सुनना जरूरी है।

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क्या पाप की वजह से ईश्वर मनुष्य का सारे आशीष और अधिकार छीन सकता है?

क्या पाप की वजह से ईश्वर मनुष्य का सबकुछ छीन सकता है?

जी हां बिल्कुल आपने सही सुना है। क्योंकि आशीष और अधिकार मनुष्य से नहीं बल्कि ईश्वर की ओर से मिलता है। जब मनुष्य पाप करने लग जाए, तब जिसे लोग शुभ कहते हैं, वह मनुष्य से बहुत दूर चला जाता है। लोग हमेशा चाहते हैं, कि उनके जीवन में अच्छाई ही अच्छाई हो। पर इसके बदले में लोग पाप को अपने जीवन से संपूर्ण रूप से परित्याग करना नहीं चाहते हैं। क्योंकि एक मात्र पाप ही है जो ईश्वर से मिलने वाली आशीष और अधिकार को छीन सकता है।

(उत्पत्ति 1:26-28) के वचन में बाइबल बताती है, की ईश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप में बनाकर सारे प्राणियों के ऊपर अधिकार दिया था। पर मनुष्य शैतान के वश में आकर, परमेश्वर की आज्ञाओं का उलंघन करके पाप करता है, और पाप का परिणाम के स्वरूप सारे अधिकार तथा आशीष उस से छीन लिया जाता है।

जब तक आदम और हव्वा ईश्वर की आज्ञाओं पर चलते रहे, तब तक उनके पास परमेश्वर की आशीष और सारे अधिकार था। पर ज्यों ही वे पाप कर दिए, अदन की वाटिका से बेघर होकर, दर-दर भटकने के साथ साथ असुरक्षा की भावनाओं को महसूस करते रहे। वैसा ही जब भी लोग पाप करते हैं, तो उनके के जीवन से पद पदवी, अधिकार और आशीष चली जाती है।

इसलिए कोई भी पद के अधिकारी, शासक, न्याय कर्ता, नेता और मंत्री, लोगों के विरुद्ध अन्याय, अत्याचार, घमंड और पाप नहीं करना चाहिए। क्योंकि ईश्वर लोगों के बीच इस धरती पर भी आधिपत्य रखता है, और वह जिसे चाहे उसे दे देता है। क्योंकि यह दानिय्येल 4:17 की वचन में लिखा है, कि यह आज्ञा पहरूओं के निर्णय से, और यह बात पवित्र लोगों के वचन से निकली, कि जो जीवित हैं, वे जान लें कि परमप्रधान परमेश्वर मनुष्यों के राज्य में प्रभुता करता है, और उसको जिसे चाहे उसे दे देता है, और वह छोटे से छोटे मनुष्य को भी उस पर नियुक्त कर देता है।

” क्योंकि दानिय्येल 5:18-21 की वचन भी यह कहता है कि, परमेश्वर ने राजा नबुकदनेस्सर को बड़ाई, प्रतिष्ठा और प्रताप दिया था। परन्तु जब उसने अपने आत्मा से कठोर होकर, तथा घमंडी बन कर पाप किया, तो उसकी राजगद्दी चली गई और प्रतिष्ठा भी भंग हो गई। जब तक वह जान न लिया कि परमप्रधान परमेश्वर मनुष्यों के राज्य में प्रभुता करता है। तब तक सिंहासन पर दुबारा बैठ न सका। अर्थात इस धरती के सब प्रकार की अधिकार, पद, पदवी, नौकरी, शासन कर्ता, न्याय कर्ता सबकुछ ईश्वर के वश में है, और वह जिसे चाहे उसे दे सकता है। शर्त यह है, कि पाप नहीं करना चाहिए।

क्योंकि पाप मनुष्य का सर्वस्व छीन लेता है। सत्य का मार्ग कठिन जरूर है, पर पाप का फल क्षणस्थाई सुख प्रदाता और अत्यंत दुखदाई है। ईश्वर को सत्य और न्याय से प्रेम है, वह पाप से बैर करता है। इसलिए पाप से सावधान रहें। एक बात हमेशा याद रखें कि धार्मिकता मनुष्य को परमेश्वर के करीब रखता है, और पाप परमेश्वर से अलग कर देता है।

अत्यधिक पाने की लालसा करना भी पाप है

एक बात तो यह समझने की कोशिश सभी को करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य के पास जितने भी धन दौलत या कुछ भी हो फिर भी उन्हें कम ही लगता है। क्योंकि मनुष्य थोड़े ही से संतुष्ट होना नहीं चाहता है, उन्हें ज्यादा से ज्यादा चाहिए। इस बात इतनी दूर चली जाती है, कि खुदा का दिया हुआ तोहफा भी मनुष्य को मूल्यहीन और छोटा लगने लगता है।

जैसे अदन वाटिका की बात किया जाए तो उसमें आदम और हव्वा को किसी वस्तु की कोई कमी नहीं थी। वे जीवन के वृक्ष के फल भी तो खा सकते थे, पर मृत्यु की और ले जाने वाली ज्ञान वृक्ष की फल ही क्यों खाए? जिसे ईश्वर ने उन्हें सख्त हिदायत दी थी कि उसे खाने से तुम मर जाओगे।

पर आजकल भी देखा जाता है, कि लोग कुछ पाने के लिए बुरी लालसा रखते हैं। जिस तरह सामने अमरत्व का फल जीवन वृक्ष रहते हुए भी; आदम और हव्वा को ईश्वर जैसे बनने की लालसा रखना मुर्खतापूर्ण बात थी। वैसे ही आज भी लोग गलत संगति, गलत परामर्श का शिकार हो कर सच्चाई और ईमानदारी की ओर आंख मूंद कर पाप की ओर दृष्टि कर रहे हैं। पर अच्छे बनने के लिए, अच्छा काम करना कोई बुरी बात नहीं है। पर कुछ हासिल करने के लिए पाप करना और करवाना महापाप है।

निष्कर्ष

दोस्तों यदि आप अपनी अधिकार, नौकरी, पद, पदवी और प्रतिष्ठा बचाना चाहते हैं, तो पाप कभी न करें। क्योंकि पाप मनुष्य को ईश्वर की ओर से मिलने वाली समस्त प्रकार की अधिकार से बेदखल और वंचित करके कंगाल बना देता है। यदि आप इसे अच्छी तरह से समझ लेंगे, तो नईं मुकाम को हासिल करने में कोई परेशानी नहीं होगी। दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं कि आज इस वचन को आप अच्छी तरह से समझ गए होंगे। और एक बात यदि आपको वचन अच्छा लगे, तो कमेंट जरूर कीजिएगा। धन्यवाद।।

प्रार्थना

से सृष्टिकर्ता परमेश्वर, इस संसार में जितने भी लोग जन्म लिएं हैं, वे आदम और हव्वा के वंशज होने के नाते, मनुष्य अवश्य पाप करते हैं, और आपके आशीष और कृपा से वंचित हो जातें हैं। पर प्रभु परमेश्वर यदि आप कृपा नहीं करेंगे तो इस संसार में कौन जीवित रह सकता है। क्योंकि सत्य, न्याय और पवित्र केवल आपके पास है, और वह सिर्फ आप ही हैं। इसलिए पिता ईश्वर विशेष करके हमारे अपराधों को माफ करना और आपकी आशीष और कृपा से हमें वंचित न होने देना। क्योंकि हे पिता हम लोग पहले भी पापी थे, और आज भी हैं। इसलिए यह निवेदन यीशु मसीह के नाम से मांगते हैं आमिन।

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