क्या तुम्हें विश्राम चाहिए? मत्ती 11:28-30 bible study

परिश्रम करने के पश्चात हर किसी को विश्राम लेना आवश्यक होता है। क्योंकि अत्यधिक परिश्रम करने के कारण लोगों को थकावट महसूस होता है। इसलिए लोग विश्राम लेते हैं। पर आज हम जानेंगे कि बाइबल का वचन लोगों को कैसे विश्राम देता है? किस लिए और किस विषय पर विश्राम देता है? क्या लोगों को बाइबल के वचन पर आधारित विश्राम मिल सकता है कि नहीं? यह जानने के लिए मेरे साथ इस वीडियो पर अंत तक बने रहें।

सबसे पहले हम वचन को पढ़ते हैं, क्योंकि वचन के बिना इस प्रश्न का उत्तर जानना आसान नहीं होगा। यह मत्ती 11 अध्याय वचन संख्या 28 में इस प्रकार लिखा है, हे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। प्रभु का वचन 100 प्रतिशत सत्य है, पर सबसे पहले यह जानने की आवश्यकता है कि लोग किस प्रकार की परिश्रम करते हैं?

प्रभु यीशु लोगों को किस प्रकार का विश्राम दे सकते हैं?

मनुष्य को इस धरती पर जीवन निर्वाह करने के लिए कर्म करना अनिवार्य है। पर कर्म बुराई की नहीं बल्कि अच्छाई की होना चाहिए। क्योंकि जैसे परिवार में माता-पिता मुख्य होने के नाते, वे कभी नहीं चाहते हैं की उनके पुत्र पुत्रियां बुराई के रास्ते पर चलें। वैसे ही प्रभु भी नहीं चाहता कि कोई मनुष्य बुरे कर्म करके अपराध का मार्ग को अपनाएं। परमेश्वर की दृष्टि में जो बुराई के लिए परिश्रम करता है। बुरे कर्म को चुनता है, पाप करता है, वैसे व्यक्ति पाप की बोझ में दब जाता है। जैसे जैसे वह पाप करते रहता है, उसके ऊपर पाप का भार भी बढ़ते रहता है।

जैसे बाल्टी में पानी लेते वक्त आपको समझ में आ जाता है, कि बोझ कितना है। यदि बाल्टी पर आधा पानी लेकर जाते हैं, तो उसका बोझ थोड़ा हल्का लगता है। परंतु बाल्टी भर के पानी लेने से उसका बोझ ज्यादा होता है। पर उस बाल्टी के पानी को आप किसी निश्चित स्थान पर ले जाकर रखते हैं। अर्थात अपना बोझ को उतारते हैं। परंतु पाप के क्षेत्र में ऐसा नहीं होता है, कि कोई पाप करने के पश्चात अपना पाप की बोझ को उतार के रख दें। क्योंकि मनुष्य के पाप को क्षमा करना और पाप की बोझ को उतारने के लिए, सामर्थ केवल परमेश्वर के पास ही है।

यदि कोई व्यक्ति अपने आप को पाप के बोझ में दबा हुआ समझता है, खुद को पापी समझता है, और मत्ती 11:28 में लिखा हुआ वचन को ग्रहण करता है, तो प्रभु यीशु उस व्यक्ति को सचमुच पाप के बोझ से विश्राम दे सकते हैं। क्योंकि पाप मनुष्य के लिए सबसे बड़ा स्राप है। क्योंकि जब परमेश्वर ने प्रथम मनुष्य आदम और हव्वा को बनाया तो उसने उत्पत्ति अध्याय 2 16 और 17 की वचन में अदन वाटिका की सभी वृक्षों के फल खाने का आदेश दिए थे। पर भले और बुरे के ज्ञान की वृक्ष के फल का खाना मना किए थे। परन्तु आदम और हव्वा उस वृक्ष का फल खाकर ईश्वर के विरुद्ध आज्ञा न मानने का पाप किया था।

यहां पर इस बात को समझने की कोशिश कीजिए, क्योंकि जब तक आदम और हव्वा पाप नहीं किए थे तब तक उनके जीवन में किसी भी प्रकार की संकट, समस्या, पाप का बोझ, मृत्यु का भय नहीं था। परंतु जैसे ही उन्होंने परमेश्वर की आज्ञा न मान कर पाप किए, उनके जीवन से खुशहाल जिंदगी, सब कुछ का अधिकार छीन गया और समस्या, संकट और मृत्यु उनके पीछा करने लगा। उसी प्रकार पाप की वजह से, आज भी लोगों के ऊपर अकाल मृत्यु, बीमारी, समस्या, संकट पीछा करते रहता है।

एक तरफ लोग खुशी से रहना चाहते हैं, शांति से जीवन बिताना चाहते हैं, पर दूसरी तरफ वे पाप पर पाप करते रहते हैं। लोगों को यह समझना अत्यंत आवश्यक है, की जहां पाप होता है, पाप की कर्म होता है, वहां परमेश्वर नहीं रहता और जहां परमेश्वर नहीं वहां शांति नहीं। और यह भी समझना होगा, कि जहां शांति नहीं है, वहां लोग पाप के बोझ के तले दब चुके हैं। देखिए लोगों को अपने किए हुए, पाप और अपराध का भार उठाना पड़ता है कि नहीं इसे हम वचन से ही बताएंगे।

इसे समझने के लिए हमें यहेजकेल 33:10 की वचन को पढ़ने की आवश्यकता है। क्योंकि उसमें इस प्रकार लिखा है, “फिर हे मनुष्य के सन्तान, इस्राएल के घराने से यह कह, तुम लोग कहते हो, हमारे अपराधों और पापों का भार हमारे ऊपर लदा हुआ है और हम उसके कारण गलते जाते हैं; हम कैसे जीवित रहें?”

देखिए इस वचन से यह साफ-साफ पता चलता है, कि मनुष्य को अपने अपराध और पाप का बोझ स्वयं को उठाना पड़ता है। फिर अपराध और पाप का भार लगातार उठाना मनुष्य के लिए मुश्किल है। क्योंकि पाप की क्षमा के बगैर मनुष्य के ऊपर से पाप का बोझ या भार नहीं हट सकता है। यदि कोई अपने ऊपर से पाप का भार उतारना चाहता है, तो प्रभु यीशु के पास आना जरूरी है।

क्या तुम्हें विश्राम चाहिए?

क्या विश्राम पाने के लिए प्रभु यीशु का जूआ उठाना होगा?

यदि पाप के कारण आपके जीवन में अशांति, समस्या, संकट, बीमारी और तरह तरह की परेशानी है, तो प्रभु यीशु के पास आएं और प्रभु का भार को अपने ऊपर उठा लें। क्योंकि मत्ती 11:29 की वचन में प्रभु कहते हैं, मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। अर्थात प्रभु का कहना है, कि यदि आप पाप को छोड़ते हैं, प्रभु का भार उठाते हैं, अपने जीवन में प्रभु से सीखते हैं, प्रभु का जैसा स्वभाव को अपनाते हैं, नम्र और दीनता से जीवन जीते हैं, तो आप निश्चित रूप से आपकी जीवन में उठने वाली हरेक समस्याओं से, हर प्रकार की परेशानी से, अशांति से मन में विश्राम पाऐंगे।

मत्ती 11:30 की वचन में प्रभु कहते हैं, क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हल्का है। देखिए प्रभु यीशु की आज्ञाओं का बोझ इतना भारी नहीं है कि आपको इसे उठाने में परेशानी हो। प्रभु की स्वभाव में जीना इतना कठिन नहीं है, जिसे आप न जी सको। बहुत से ऐसे लोग हैं, कि जीवन में शांति पाने के लिए संसारिक चीजों के पीछे भागते हैं। पर जरा सोचिए क्या संसारिक चीजें लोगों को विश्राम या शान्ति दे सकती है? क्या सांसारिक चीजें पाप के बोझ को उतार सकती है? इंपॉसिबल! क्योंकि यहां पर लोगों को प्रभु यीशु के पास जाने की आवश्यकता है। हमने ऊपर में मत्ती 11:28 की वचन को पढ़ा था, जिसमें प्रभु यीशु कहते हैं, कि मेरे पास आओ मैं तुम्हें विश्राम दूंगा।

यदि आप विश्राम पाना चाहते हैं। पाप की बोझ को उतारना चाहते हैं। तो आपको प्रभु यीशु के पास आना होगा। पर आपको किस तरह प्रभु के पास आना है। इसके लिए योएल अध्याय 2:12 की वचन को पढ़ते हैं। जिसमें लिखा है, “तौभी यहोवा की यह वाणी है, अभी भी सुनो, उपवास के साथ रोते-पीटते अपने पूरे मन से फिरकर मेरे पास आओ।

देखिए यहां पर प्रभु यहोवा कह रहे हैं, कि सुनो अभी भी समय है। उपवास के साथ कहने का मतलब यहां पर पेट को खाली करके नहीं! बल्कि मन को पाप, बुराई की सोच विचार से खाली रखना है। रोते-पीटते कहने का मतलब खुद को प्रभु के चरणों में दुखी समझकर, अपने संपूर्ण मन से प्रभु के पास फिरकर आना है। और होशे अध्याय 12:6 की वचन के अनुसार आपको गलत काम से फिर कर कृपा और न्याय की काम को करते रहना है। सत्य के मार्ग पर चलना है। सच्चाई और अच्छाई से जीवन गुजारना है। तब जाकर प्रभु की ओर से आपको शांति या विश्राम मिल सकता है।

और यदि कोई अपने जीवन में शांति चाहता है। पापों के बोझ से विश्रान्ति चाहता है, तो वह पश्चाताप करे जिससे उसके पाप क्षमा हो जाए। क्योंकि जब तक किसी मनुष्य का पाप क्षमा नहीं हो जाता है, तब तक वह पाप के बोझ से लदा हुआ रहता है। इसलिए यदि आपको विश्राम चाहिए पाप की बोझ से मुक्ति चाहिए, तो पश्चाताप करके प्रभु के सम्मुख आ जाएं। क्योंकि जो सच्चे मन से प्रभु की ओर फिरता है, उसे प्रभु निश्चित रूप से क्षमा कर देते हैं।

निष्कर्ष

दोस्तों मैं उम्मीद करता हूं, कि आप को प्रभु की वचन से कुछ नया सीखने को मिला होगा। क्योंकि जो प्रभु यीशु के पास आता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता है। पर प्रभु के पास आने वाले लोगों को पाप से दूरी बनाए रखना चाहिए। क्योंकि पाप ही परमेश्वर और मनुष्य के प्रेम में विघ्न उत्पन्न करता है। यदि मनुष्य इस बात को अच्छी तरह समझ जाता, तो उसके लिए समस्या ही नहीं होता। पर दोस्तो परमेश्वर दयालु है, इसलिए अपने किए हुए पापों के लिए, क्षमा मांगे और पवित्र जीवन जीएं। आपका दिन मंगलमय हो। परमेश्वर आपको बहुतायत से आशीष प्रदान करता रहे। धन्यवाद।।

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